ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 88/ मन्त्र 2
ते॑ऽरु॒णेभि॒र्वर॒मा पि॒शङ्गैः॑ शु॒भे कं या॑न्ति रथ॒तूर्भि॒रश्वैः॑। रु॒क्मो न चि॒त्रः स्वधि॑तीवान्प॒व्या रथ॑स्य जङ्घनन्त॒ भूम॑ ॥
स्वर सहित पद पाठते । अ॒रु॒णेभिः॑ । वर॑म् । आ । पि॒शङ्गैः॑ । शु॒भे । कम् । या॒न्ति॒ । र॒थ॒तूःऽभिः॑ । अश्वैः॑ । रु॒क्मः । न । चि॒त्रः । स्वधि॑तिऽवान् । प॒व्या । रथ॑स्य । ज॒ङ्घ॒न॒न्त॒ । भूम॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तेऽरुणेभिर्वरमा पिशङ्गैः शुभे कं यान्ति रथतूर्भिरश्वैः। रुक्मो न चित्रः स्वधितीवान्पव्या रथस्य जङ्घनन्त भूम ॥
स्वर रहित पद पाठते। अरुणेभिः। वरम्। आ। पिशङ्गैः। शुभे। कम्। यान्ति। रथतूःऽभिः। अश्वैः। रुक्मः। न। चित्रः। स्वधितिऽवान्। पव्या। रथस्य। जङ्घनन्त। भूम ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 88; मन्त्र » 2
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
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अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
तैस्ते किं प्राप्नुवन्तीत्युपदिश्यते ॥
अन्वयः
यथा शिल्पविदो विद्वांसः शुभे अरुणेभिः पिशङ्गै रथतूर्भिरश्वै रथस्य पव्या स्वधितीवान् रुक्मश्चित्रो नेव जङ्घनन्त ते वरं कमायान्ति प्राप्नुवन्ति तथा वयमपि भूम ॥ २ ॥
पदार्थः
(ते) शिल्पविद्याविचक्षणाः (अरुणेभिः) आरक्तवर्णैरग्निप्रयोगजैः (वरम्) श्रेष्ठम् (आ) आभिमुख्ये (पिशङ्गैः) अग्निजलसंयोगजैर्वाष्पैः पीतैः (शुभे) श्रेष्ठाय व्यवहाराय (कम्) सुखम् (यान्ति) गच्छन्ति (रथतूर्भिः) ये रथान् विमानादियानानि तूर्वन्ति शीघ्रं गमयन्ति तैः (अश्वैः) आशुगमनहेतुभिरग्निजलकलागृहरूपैरश्वैः (रुक्मः) देदीप्यमानः (न) इव (चित्रः) शौर्यादिगुणैरद्भुतः (स्वधितीवान्) स्वधितिः प्रशस्तो वज्रो विद्यते यस्य (पव्या) वज्रतुल्यया चक्रधारया (रथस्य) विमानादियानसमूहस्य (जङ्घनन्त) अत्यन्तं घ्नन्ति। लडर्थे लङ्। छन्दस्युभयथेति आर्द्धधातुसंज्ञयाऽकारयकारयोर्लोपः अडभावश्च। (भूम) भवेम। अत्र लुङ्यडभावश्च ॥ २ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा शूरवीरः सुशस्त्रवान् पुरुषो वेगेन गत्वागत्य शत्रून् हन्ति, तथैव मनुष्या वेगवत्सु यानेषु स्थित्वा देशदेशान्तरं गत्वा शत्रून् विजयन्ते ॥ २ ॥
हिन्दी (4)
विषय
उक्त कामों से वे क्या पाते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थ
जैसे कारीगरी को जाननेहारे विद्वान् लोग (शुभे) उत्तम व्यवहार के लिये (अरुणेभिः) अच्छे प्रकार अग्नि के ताप से लाल (पिशङ्गैः) वा अग्नि और जल के संयोग की उठी हुई भाफों से कुछेक श्वेत (रथतूर्भिः) जो कि विमान आदि रथों को चलानेवाले अर्थात् अति शीघ्र उनको पहुँचाने के कारण आग और पानी की कलों के घररूपी (अश्वैः) घोड़े हैं, उनके साथ (रथस्य) विमान आदि रथ की (पव्या) वज्र के तुल्य पहियों की धार से (स्वधितीवान्) प्रशंसित वज्र से अन्तरिक्ष वायु को काटने (रुक्मः) और उत्तेजना रखनेवाले (चित्रः) शूरता, धीरता, बुद्धिमत्ता आदि गुणों से अद्भुत मनुष्य के (न) समान मार्ग को (जङ्घनन्त) हनन करते और देश-देशान्तर को जाते-आते हैं (ते) वे (वरम्) उत्तम (कम्) सुख को (आयान्ति) चारों ओर से प्राप्त होते हैं, वैसे हम भी (भूम) इसको करके आनन्दित होवें ॥ २ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे शूरवीर अच्छे शस्त्र रखनेवाला पुरुष वेग से जाकर शत्रुओं को मारता है, वैसे मनुष्य वेगवाले रथों पर बैठ देश-देशान्तर को जा-आ के शत्रुओं को जीतते हैं ॥ २ ॥
विषय
'अरुण पिशंग' अश्व
पदार्थ
१. (ते) = वे, गतमन्त्र में वर्णित प्राणसाधक पुरुष (अरुणेभिः) = [ऋ+उनन] गतिशील अतएव तेजस्वी (पिशंगैः) = [पिश् to light, irradiate] प्रकाश को प्राप्त करनेवाले, उज्ज्वल, (रथतूर्भिः) = शरीररूप रथ को त्वरा से मार्ग पर ले - चलनेवाले (अश्वैः) = इन्द्रियरूप अश्वों को (शुभे) = शोभा के लिए (वरम्) = श्रेष्ठ कर्मों को और (कम्) = [light, splendour] ज्ञान के प्रकाश को (आयान्ति) = सर्वथा प्राप्त होते हैं । 'अरुण' शब्द कर्मेन्द्रियों का संकेत करता है तो 'पिशंग' शब्द ज्ञानेन्द्रियों को सूचित करता है । कर्मेन्द्रियों से 'वरम्' श्रेष्ठ कर्मों को प्राप्त होते हैं तो ज्ञानेन्द्रियों से 'कम्' ज्ञान प्राप्त होता है । २. इस प्रकार यह प्राणसाधक पुरुष (रुक्मः न) = स्वर्ण के समान (चित्रः) = अद्भुत ज्ञान की दीप्तिवाला होता है । (स्वधितीवान्) = [स्व] आत्मतत्त्व के [धिती] धारण करनेवाला बनता है । ये प्राणसाधक पुरुष (रथस्य) = इस शरीररूपी रथ की (पव्या) = चक्रधारा से (भूम) = खुब ही (जङ्घनन्त) = गतिवाले होते हैं । ये अनथक श्रमशील होते हैं । एवं प्राणसाधना से [क] ज्ञान बढ़ता है, [ख] आत्मतत्त्व का साक्षात्कार होता है, [ग] क्रियाशीलता बढ़ती है ।
भावार्थ
भावार्थ = प्राणसाधना से ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों दोनों ही प्रशस्त होती हैं । ज्ञान व क्रिया दोनों प्रशस्त होकर आत्मतत्व का दर्शन होता है ।
विषय
वीर पुरुषों और विद्वानों के कर्तव्यों का उपदेश ।
भावार्थ
( रुक्मः ) तेजस्वी ( चित्रः ) अद्भुत, ( स्वधितीवान् ) खड्ग धर योद्धा ( न ) जिस प्रकार ( पव्या ) शस्त्र से शत्रु सेना का नाश कर देता है उसी प्रकार ( ते ) वे वीर विद्वान् गण ( रथस्य ) रथ की ( पव्या ) चक्रधारा से ( भूम ) भूमि को ( जंघनन्त ) पीड़ित करते हैं। ( ते ) वे ( अरुणेभिः ) लाल ( पिशङ्गैः ) पीले ( रथतूर्भिः अश्वैः ) रथों को वेग से ले जाने वाले अश्वों से ( शुभे) उत्तम शोभा प्राप्त करने के लिये ( वरम् ) श्रेष्ठ, ( कं ) सुखकारी प्रजापालक राजा को ( आयान्ति ) प्राप्त होते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतमो राहूगणपुत्र ऋषिः ॥ मरुतो देवता ॥ छन्द:—१ पंक्तिः । २ भुरिक्पंक्तिः । ५ निचृत्पंक्तिः । ३ निचृत् त्रिष्टुप् । ४ विराट्त्रिष्टुप् । ६ निचृद्बृहती ॥
विषय
विषय (भाषा)- शिल्प विद्या के कामों से वे क्या पाते हैं, इस विषय को इस मन्त्र में कहा है ॥
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- यथा शिल्पविदः विद्वांसः शुभे अरुणेभिः पिशङ्गै रथतूर्भिः अश्वैः रथस्य पव्या स्वधितीवान् रुक्मः चित्रः न इव जङ्घनन्त ते वरं कम् आयान्ति प्राप्नुवन्ति तथा वयम् अपि भूम ॥२॥
पदार्थ
पदार्थः- (यथा)=जिस प्रकार से, (शिल्पविदः)= शिल्प विद्या में निपुण, (विद्वांसः)=विद्वान् लोग, (शुभे) श्रेष्ठाय व्यवहाराय=श्रेष्ठ व्यवहार के लिये, (अरुणेभिः) आरक्तवर्णैरग्निप्रयोगजैः=लाल रंग की अग्नि के प्रयोग से उत्पन्न, (पिशङ्गैः) अग्निजलसंयोगजैर्वाष्पैः पीतैः=अग्नि और जल के संयोग से उत्पन्न वाष्प के द्वारा, (रथतूर्भिः) ये रथान् विमानादियानानि तूर्वन्ति शीघ्रं गमयन्ति तैः=जो विमान आदि यान शीघ्रता से जाते हैं, उनके द्वारा, (अश्वैः) आशुगमनहेतुभिरग्निजलकलागृहरूपैरश्वैः= शीघ्रता से जाने के लिये यंत्रों के गृहरूप अश्वों के द्वारा, अथवा अश्व शक्ति से चलनेवाले, (रथस्य) विमानादियानसमूहस्य= विमान आदि यानों के समूह के, (पव्या) वज्रतुल्यया चक्रधारया= वज्र के समान या चक्र, अर्थात् पहिये के द्वारा, (स्वधितीवान्) स्वधितिः प्रशस्तो वज्रो विद्यते यस्य= प्रशस्त वज्रवाले, (रुक्मः) देदीप्यमानः= बार-बार अतिशय रूप से प्रकाशित होनेवाले, (चित्रः) शौर्यादिगुणैरद्भुतः= शौर्य आदि अद्भुत गुणोंवालों के, (न) इव=समान, (जङ्घनन्त) अत्यन्तं घ्नन्ति= अत्यन्त हिंसा करते हैं, (ते) शिल्पविद्याविचक्षणाः= शिल्प विद्या में निपुण, (वरम्) श्रेष्ठम्=श्रेष्ठ, (कम्) सुखम्=सुख को, (आ) आभिमुख्ये=सामने से, (यान्ति) गच्छन्ति=जाते हुए, (प्राप्नुवन्ति)=प्राप्त करते हैं, (तथा)=वैसे ही, (वयम्) =हम, (अपि)=भी, (भूम) भवेम=होवें ॥२॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे शूरवीर उत्तम शस्त्रवाला पुरुष वेग से जाकर और आकर शत्रुओं को मारता है, वैसे ही मनुष्य वेगवाले रथों पर बैठ करके, एक स्थान से दूसरे स्थान को जा करके शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं॥२॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
पदार्थान्वयः(म.द.स.)- (यथा) जिस प्रकार से (शिल्पविदः) शिल्प विद्या में निपुण (विद्वांसः) विद्वान् लोग (शुभे) श्रेष्ठ व्यवहार के लिये, (अरुणेभिः) लाल रंग की अग्नि के प्रयोग से उत्पन्न (पिशङ्गैः) अग्नि और जल के संयोग से उत्पन्न वाष्प के द्वारा, (रथतूर्भिः) जो विमान आदि यान शीघ्रता से जाते हैं, उनके द्वारा (अश्वैः) शीघ्रता से जाने के लिये यंत्रों के गृहरूप अश्वों के द्वारा, अथवा अश्व शक्ति से चलनेवाले (रथस्य) विमान आदि यानों के समूह के (पव्या) वज्र के समान या चक्र, अर्थात् पहिये के द्वारा (स्वधितीवान्) प्रशस्त वज्रवाले और (रुक्मः) बार-बार अतिशय रूप से प्रकाशित होनेवाले, (चित्रः) शौर्य आदि अद्भुत गुणोंवालों के (न) समान (जङ्घनन्त) अत्यन्त हिंसा करते हैं, (ते) शिल्प विद्या में निपुण [विद्वान् लोग] (वरम्) श्रेष्ठ (कम्) सुख को (आ) सामने से (यान्ति) जाते हुए ((प्राप्नुवन्ति) प्राप्त करते हैं, (तथा) वैसे ही (वयम्) हम (अपि) भी (भूम) होवें ॥२॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा शूरवीर चांगली शस्त्रे बाळगून वेगवान बनून शत्रूंचे हनन करतो. तशी माणसेही वेगवान रथात बसून देशदेशांतरी जाणे येणे करून शत्रूंना जिंकतात. ॥ २ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Maruts, heroes of the speed of winds, come to high comfort for the sake of noble work by chariots powered by red flaming and yellow fire power and used for horses on the wing. The troop of heroes, brilliant as well as wonderful, commanding the force of thunder- bolt, arrives striking and breaking the ground with the felly of the chariot wheel.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What do the Maruts gain thereby is taught in the second Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
As learned persons well-versed in various arts and crafts, destroy their foes with tawny (on account of the use of fire) and some what yellow steams produced by the combination of fire and water which accelerates the speed of the Vehicles like the aeroplanes with the horses in the form of fire, water and machines for good dealing, and they enjoy happiness, so let us also do. So do it like a bright brave and wonderful person who is armed with strong weapons and who annihilates his enemies with sharp edge of the wheel which is like a thunderbolt.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(स्वधितिवान्) स्वधितिः प्रशस्तो वज्रो विद्यते यस्य सः = Who possesses a good strong thunderbolt or other mighty weapon. (पव्या) वज्तुरल्यया चक्रधारया = y the sharp edge of the wheel like the thunderbolt.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As a brave person armed with good weapons quickly going to distant places, destroys his adversaries in the same manner, men conquer their foes soon by travelling to dis tant countries seated in swift vehicles.
Translator's Notes
स्वधितिरिति वज्रनाम (निघ० २.२० ) पविरिति वज्रनाम (निघ० २.२०)
Subject of the mantra
What they get from the works of craftsmanship has been discussed in this mantra.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
(yathā)= In the way, (śilpavidaḥ)=expert in craftsmanship, (vidvāṃsaḥ) =scholars, (śubhe)= for the best behaviour, (aruṇebhiḥ)= produced by using red fire, (piśaṅgaiḥ)= through the steam produced by the combination of fire and water, (rathatūrbhiḥ) = those aircraft and other vehicles which move quickly, by them, (aśvaiḥ)= to move quickly, the home form of machines is through horses, or those driven by horse power, (rathasya)=of group of aircraft, (pavyā)= like a thunderbolt or by means of a wheel, (svadhitīvān) =the mighty thunderbolt and, (rukmaḥ)= repeatedly shining in abundance, (citraḥ)=people with amazing qualities like bravery etc., (na) =like, (jaṅghananta)=commit extreme violence, (te) =expert in craftsmanship [vidvān loga]=scholars, (varam) =best, (kam) =to happiness, (ā) =from front, (yānti) =while going, ((prāpnuvanti) =obtain, (tathā) =similarly, (vayam) =we, (api) =also, (bhūma) =be.
English Translation (K.K.V.)
In the way, learned people adept in craftsmanship, for best behaviour, use red coloured fire and the steam generated by the combination of fire and water, which planes etc. travel quickly; to move quickly through them, by means of horses in the form of instruments, or by a group of vehicles like aircraft etc. powered by horse power, having thunderbolts spread by means of chakras, i.e. wheels and repeatedly shining extremely bright, like the people having amazing qualities like bravery etc., they commit extreme violence, the learned people who are skilled in crafts while going get the best happiness, let us also be like them.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
There is silent vocal simile as a figurative in this mantra. Just as a brave man armed with excellent weapons kills his enemies by going and coming back, similarly people ride on fast chariots and go from one place to another and conquer their enemies.
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