ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 96/ मन्त्र 8
ऋषिः - कुत्सः आङ्गिरसः
देवता - द्रविणोदा अग्निः शुद्धोऽग्निर्वा
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
द्र॒वि॒णो॒दा द्रवि॑णसस्तु॒रस्य॑ द्रविणो॒दाः सन॑रस्य॒ प्र यं॑सत्। द्र॒वि॒णो॒दा वी॒रव॑ती॒मिषं॑ नो द्रविणो॒दा रा॑सते दी॒र्घमायु॑: ॥
स्वर सहित पद पाठद्र॒वि॒णः॒ऽदाः । द्रवि॑णसः । तु॒रस्य॑ । द्र॒वि॒णः॒ऽदाः । सन॑रस्य । प्र । यं॒स॒त् । द्र॒वि॒णः॒ऽदाः । वी॒रऽव॑तीम् । इष॑म् । नः॒ । द्रव॒ि॒णः॒ऽदाः । रा॒स॒ते॒ । दी॒र्घम् । आयुः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
द्रविणोदा द्रविणसस्तुरस्य द्रविणोदाः सनरस्य प्र यंसत्। द्रविणोदा वीरवतीमिषं नो द्रविणोदा रासते दीर्घमायु: ॥
स्वर रहित पद पाठद्रविणःऽदाः। द्रविणसः। तुरस्य। द्रविणःऽदाः। सनरस्य। प्र। यंसत्। द्रविणःऽदाः। वीरऽवतीम्। इषम्। नः। द्रविणोऽदाः। रासते। दीर्घम्। आयुः ॥ १.९६.८
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 96; मन्त्र » 8
अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
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अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।
अन्वयः
यो द्रविणोदास्तुरस्य द्रविणसः प्रयंसत्। यो द्रविणोदा सनरस्य प्रयंसत्। यो द्रविणोदा वीरवतीमिषं प्रयंसत् यो द्रविणोदा नोऽस्मभ्यं दीर्घमायू रासते तमीश्वरं सर्वे मनुष्या उपासीरन् ॥ ८ ॥
पदार्थः
(द्रविणोदाः) यो द्रविणांसि ददाति सः (द्रविणसः) द्रव्यसमूहस्य विज्ञानं प्रापणं वा (तुरस्य) शीघ्रं सुखकरस्य (द्रविणोदाः) विभागविज्ञापकः (सनरस्य) संभज्यमानस्य। अत्र सन्धातोर्बाहुलकादौणादिकोऽरन् प्रत्ययः। (प्र) (यंसत्) नियच्छेत् (द्रविणोदाः) शौर्य्यादिप्रदः (वीरवतीम्) प्रशस्ता वीरा विद्यन्तेऽस्याम् (इषम्) अन्नादिप्राप्तीष्टाम् (नः) अस्मभ्यम् (द्रविणोदाः) जीवनविद्याप्रदः (रासते) रातु ददातु। लेट्प्रयोगो व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (दीर्घम्) बहुकालपर्य्यन्तम् (आयुः) विद्याधर्मोपयोजकं जीवनम् ॥ ८ ॥
भावार्थः
हे मनुष्या यूयं येन परमगुरुणेश्वरेण वेदद्वारा सर्वपदार्थविज्ञानं कार्य्यते तमाश्रित्य यथायोग्यव्यवहाराननुष्ठाय धर्मार्थकाममोक्षसिद्धये चिरजीवित्वं संरक्षत ॥ ८ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह जगदीश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (द्रविणोदाः) धन आदि पदार्थों का देनेवाला (तुरस्य) शीघ्र सुख करनेवाले (द्रविणसः) द्रव्यसमूह के विज्ञान को (प्र, यंसत्) नियम में रक्खे वा जो (द्रविणोदाः) पदार्थों का विभाग जतानेवाला (सनरस्य) एक-दूसरे से जो अलग किया जाय उस पदार्थ वा व्यवहार के विज्ञान को नियम में रक्खे वा जो (द्रविणोदाः) शूरता आदि गुणों का देनेवाला (वीरवतीम्) जिससे प्रशंसित वीर होवें उस (इषम्) अन्नादि प्राप्ति की चाहना को नियम में रक्खे वा जो (द्रविणोदाः) आयुर्वेद अर्थात् वैद्यकशास्त्र का देनेवाला (नः) हम लोगों के लिये (दीर्घम्) बहुत समय तक (आयुः) जीवन (रासते) देवे उस ईश्वर की सब मनुष्य उपासना करें ॥ ८ ॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! तुम जिस परमगुरु परमेश्वर ने वेद के द्वारा सर्व पदार्थों का विशेष ज्ञान कराया है, उसका आश्रय करके यथायोग्य व्यवहारों का अनुष्ठान कर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि के लिये बहुत काल पर्य्यन्त जीवन की रक्षा करो ॥ ८ ॥
विषय
स्थावर व जंगम धन
पदार्थ
१. (द्रविणोदाः) = जीवन - यात्रा के लिए (द्रविणों) = धन का देनेवाला वह प्रभु (तुरस्य) = गतिशील (द्रविणसः) = धन के (प्रयंसत्) = भाग को हमें दे । प्रभुकृपा से हमें जीवन - यात्रा में आवश्यक ‘गौ , अश्व , अजा व अवि’ आदि जंगम धनरूप पशु प्राप्त हों । हम प्रजा व पशुओं से बढ़ें । प्रजा से हमें वंश - सन्तान के द्वारा अमृतत्व प्राप्त होता है और उन सन्तानों की उत्तम पालना के लिए पशुओं की उपयोगिता होती है ।
२. वे (द्रविणोदाः) = धनों को देनेवाले प्रभु हमें (सनरस्य) = [सन - संभक्तौ] संविभाग के योग्य स्थावर सम्पत्ति को - भूमि व सोना - चाँदी को (प्रयंसत्) = देनेवाले हों । प्रभुकृपा से जहाँ हम पशुधन को प्राप्त करें , वहाँ भूमि व धन - धान्य को भी प्राप्त करनेवाले हों ।
३. (द्रविणोदाः) = द्रविण को देनेवाले प्रभु वीरवती (इषम्) = वीरता की वृद्धि करनेवाली अन्नादि सम्पद् को (नः) = हमें दें । शक्तिवर्धक और अतएव (आद्य) = खाने योग्य अन्न हमें प्राप्त हों ।
४. इस प्रकार स्थावर - जंगम धनों को व शक्तिवर्धक अन्नों को प्राप्त कराके वे (द्रविणोदाः) = सब द्रविणों को देनेवाले प्रभु (दीर्घं आयुः) = दीर्घ जीवन (रासते) = देते हैं । दीर्घजीवन के लिए सब साधनों को वे प्रभु उपस्थित कर देते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ - स्थावर - जंगम द्रविणों को तथा शक्तिवर्धक अन्नों को देनेवाले वे प्रभु सचमुच द्रविणोदा हैं । इनके द्वारा वे हमें दीर्घजीवन प्राप्त कराते हैं ।
विषय
विद्वानों का नायक के प्रति और उसका प्रजाजनों के प्रति कर्तव्य ।
भावार्थ
( द्रविणोदाः ) वह ऐश्वर्यों का दाता राजा और परमेश्वर (तुरस्य) शीघ्र गति करने वाले ( द्रविणसः ) वेगवान् रथ आदि वा जंगम धन, पशु आदि का ( नः प्र यंसत् ) हमें दान दे । वह ( सनरस्य प्रयंसत् ) परस्पर बांट लेने योग्य स्थावर धन सुवर्ण रजतादि का प्रदान करे । वह ( वीरवतीम् इषम् ) वीर पुरुषों से युक्त सेना (नः प्रयंसत् ) हमें दे । और वह (नः दीर्घम् आयुः) हमें दीर्घ जीवन (रासते) प्रदान करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कुत्स आङ्गिरस ऋषिः॥ द्रविणोदा अग्निः शुद्धोग्निर्वा देवता ॥ त्रिष्टुप् छन्दः ॥ नवर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! ज्या परमगुरू परमेश्वराने वेदाद्वारे सर्व पदार्थांचे विशेष ज्ञान करविलेले आहे, त्याचा आश्रय घेऊन यथायोग्य व्यवहाराचे अनुष्ठान करून धर्म, अर्थ, काम, मोक्षाच्या सिद्धीसाठी पुष्कळ काळापर्यंत जीवनाचे रक्षण करा. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Agni, universal creator and giver of universal and omnipresent wealth, may, we pray, grant us the wealth of knowledge and piety. The creator and giver of social wealth may, we pray, grant us our share of material wealth. The creator and giver of food and energy may, we pray, grant us the food and energy which gives rise to a community of heroes. The creator and giver of life and health may, we pray, grant us our full share of life and age with health and plenty.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How is He (God) is taught in the 8th Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
May God who is the Giver of wealth, grant us the knowledge of that wealth that makes us happy quickly. May God who is the Giver of Wealth grant us the knowledge of the wealth that is to be divided among the needy and the poor. May God the giver of strength grant us good food together with valiant heroes. May God the giver of the science of life grant us long life which is useful for spreading knowledge and Dharma (righteousness.) All men should have communion with such omnipotent God only.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(द्रविणोदस:) द्रव्यसमूहस्य विज्ञानं प्रापणं वा = The knowledge and receipt of all objects. (द्रविणोदा:) शौर्यादिप्रदः = Giver of strength and bravery etc.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men, you should take shelter in that God who is the greatest Guru (Sublime Teacher) and who gives us the knowledge of all objects through the Vedas. Then you should preserve long life for the discharge of all proper duties and for the accomplishment of Dharma (righteousness) Artha (Wealth) Kama ( fulfilment of noble desires ) and Moksha (emancipation.)
Translator's Notes
(द्रविणमिति धननाम निघ० २.९) (द्रविणमिति बलनाम निघ० २.१० )
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