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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 100 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 100/ मन्त्र 8
    ऋषिः - दुवस्युर्वान्दनः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    अपामी॑वां सवि॒ता सा॑विष॒न्न्य१॒॑ग्वरी॑य॒ इदप॑ सेध॒न्त्वद्र॑यः । ग्रावा॒ यत्र॑ मधु॒षुदु॒च्यते॑ बृ॒हदा स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप॑ । अमी॑वाम् । स॒वि॒ता । सा॒वि॒ष॒त् । न्य॑क् । वरी॑यः । इत् । अप॑ । से॒ध॒न्तु॒ । अद्र॑यः । ग्रावा॑ । यत्र॑ म॒धु॒ऽसुत् । उ॒च्यते॑ । बृ॒हत् । आ । स॒र्वऽता॑तिम् । अदि॑तिम् । वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपामीवां सविता साविषन्न्य१ग्वरीय इदप सेधन्त्वद्रयः । ग्रावा यत्र मधुषुदुच्यते बृहदा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप । अमीवाम् । सविता । साविषत् । न्यक् । वरीयः । इत् । अप । सेधन्तु । अद्रयः । ग्रावा । यत्र मधुऽसुत् । उच्यते । बृहत् । आ । सर्वऽतातिम् । अदितिम् । वृणीमहे ॥ १०.१००.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 100; मन्त्र » 8
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सविता) उत्पादक परमात्मा (अमीवाम्) रोग को (अपसाविषत्) पृथक् करता है (अद्रयः) उपदेश करनेवाले (वरीयः-इत्) बढ़े-चढ़े पाप को भी (न्यक्) नीचे करते हैं (यत्र) जिसके आश्रय में (मधुषुत्) मधुर उपासनारस का निष्पादक (ग्रावा) विद्वान् (उच्यते) कहा जाता है (बृहत्) प्रशस्त महान् उस (सर्वतातिम्०) पूर्ववत् ॥८॥

    भावार्थ

    उत्पन्न करनेवाला परमात्मा रोग को अलग करता है, ओषधियों को उत्पन्न करके उपदेशक जन अन्दर से बढ़े-चढ़े पाप को निकालते हैं, परमात्मा की उपासना करनेवाला विद्वान् कहलाता है, उस महान् जगद्विस्तारक अविनाशी परमात्मा को मानना अपनाना चाहिए ॥८॥

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    विषय

    सूर्य व पर्वत

    पदार्थ

    [१] (सविता) = वह [सर्वोत्पादक प्रभु] प्राणशक्ति को उत्पन्न करनेवाला सूर्य (अमीवाम्) = रोग को (अपसाविषत्) = हमारे से दूर करे। गत मन्त्र की प्रेरणा के अनुसार जब हम सूर्यादि देवों का तिस्कार नहीं करते और अधिक से अधिक समय सूर्य किरणों के सम्पर्क में बिताते हैं तो सूर्य अपनी किरणों से हमारे में प्राण-शक्ति का संचार करता है और हमारे रोगों को दूर करता है । (अद्रयः) = ये पर्वत भी (वरीयः इत्) = [उरुतरं सा०] बहुत बढ़े हुए भी रोग को (न्यक्) = [ नीचीनं 'यथा स्यात् तथा' सा० ] अभिभूत करके अपसेधन्तु दूर कर दें । पर्वतों की वायु में ओजोन का अंश अधिक होने से वह रोगनाशक होती है । [२] इस प्रकार हम (सर्वतातिम्) = सब गुणों का विस्तार करनेवाले (अदितिम्) = स्वास्थ्य का (आवृणीमहे) = वरण करते हैं । उस स्वास्थ्य का, (यत्र) = जिसमें कि वह (मधुषुत्) = हमारे में सोम को जन्म देनेवाला (ग्रावा) = उपदेष्टा प्रभु (बृहत् उच्यते) = खूब ही स्तुति किया जाता है। प्रभु की उपासना से शरीर में सोम का [= वीर्य का] रक्षण होता है। इस सोमरक्षण से ज्ञानाग्नि दीप्त होती है और हमारे ज्ञान की खूब ही वृद्धि होती है । वस्तुतः यह प्रभु का स्तवन स्वास्थ्य की स्थिरता का साधन बन जाता है । प्रभु-स्तवन के अभाव में वृत्ति वैषयिक हो जाती है और हम स्वास्थ्य को खो बैठते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - सूर्य नीरोगता को दे, पर्वतों की वायु रोग को दूर भगाये । हम स्वस्थ होकर प्रभुस्तवन करें।

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    विषय

    पापादि से मुक्त होकर मङ्गलमय प्रभु का वरण।

    भावार्थ

    (सविता) सूर्यवत् तेजस्वी, प्रभु (अमीवाम् अप साविषत्) दुःखदायी रोग पाप आदि को दूर करे। (अद्वयः) मेघ तुल्य उदार जन (वरीयः) बड़े २ पापों को भी (न्यक् अप सेधन्तु) जल के तुल्य नीचे दूर बहा दें। (यत्र) जिस के आश्रय (ग्रावा) विद्वान् उपदेष्टा, मेघवत् (मधुसुत् उच्यते) जलों, अन्नों के तुल्य ज्ञान को देने वाला कहा जाता है उस (बृहतः सर्वतातिं अदितिं वृणीमहे) महान्, सर्वमंगलकारी सूर्यभूमिवत् ज्ञानप्रकाश अन्नादि के दाता प्रभु से हम प्रार्थना करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्दुवस्युर्वान्दनः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः–१–३ जगती। ४, ५, ७, ११ निचृज्जगती। ६, ८, १० विराड् जगती। ९ पादनिचृज्जगती। १२ विराट् त्रिष्टुप्। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सविता) उत्पादयिता परमात्मा (अमीवाम्-अपसाविषत्) रोगमपगमयति (अद्रयः) श्लोककर्त्तारः-उपदेष्टारः (न्यक्-वरीयः-इत्) बहुप्रबलं पापं च नीचैः कुर्वन्ति (यत्र) यस्मिन् यदाश्रये (मधुषुत्-ग्रावा) मधुरोपासना रसस्य निष्पादको विद्वान् कथ्यते (बृहत्) प्रशस्तं महान्तं (सर्वतातिम्०) पूर्ववत् ॥८॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May Savita, self-refulgent light of the world, ward off and destroy all pollution and disease. May the wise, like clouds and mountains, stall and wash off even the tempting most irresistible sin and wrong wherever abundant soma is extracted and the wise are highly respected. We honour and adore the universal generosity and imperishable wisdom and purity of divinity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    निर्माणकर्ता परमात्मा रोग दूर करतो, औषधी उत्पन्न करतो. उपदेशक लोक आतील पाप काढून टाकतात. परमात्म्याची उपासना करणारा विद्वान म्हणविला जातो. त्या महान जगविस्तारक अविनाशी परमात्म्याला मानले व अंगीकारले पाहिजे. ॥८॥

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