ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 108/ मन्त्र 5
इ॒मा गाव॑: सरमे॒ या ऐच्छ॒: परि॑ दि॒वो अन्ता॑न्त्सुभगे॒ पत॑न्ती । कस्त॑ एना॒ अव॑ सृजा॒दयु॑ध्व्यु॒तास्माक॒मायु॑धा सन्ति ति॒ग्मा ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒माः । गावः॑ । स॒र॒मे॒ । याः । ऐच्छः॑ । परि॑ । दि॒वः । अन्ता॑न् । सु॒ऽभ॒गे॒ । पत॑न्ती । कः । ते॒ । ए॒नाः॒ । अव॑ । सृ॒जा॒त् । अयु॑ध्वी । उ॒त । अ॒स्माक॑म् । आयु॑धा । स॒न्ति॒ । ति॒ग्मा ॥
स्वर रहित मन्त्र
इमा गाव: सरमे या ऐच्छ: परि दिवो अन्तान्त्सुभगे पतन्ती । कस्त एना अव सृजादयुध्व्युतास्माकमायुधा सन्ति तिग्मा ॥
स्वर रहित पद पाठइमाः । गावः । सरमे । याः । ऐच्छः । परि । दिवः । अन्तान् । सुऽभगे । पतन्ती । कः । ते । एनाः । अव । सृजात् । अयुध्वी । उत । अस्माकम् । आयुधा । सन्ति । तिग्मा ॥ १०.१०८.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 108; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सुभगे सरमे) हे सौभाग्य ऐश्वर्यवाली सरणशील गर्जना ! (इमा गावः) ये गौएँ रश्मियों या जल (याः-ऐच्छः) जिनको तू चाहती है (दिवः-परि-अन्तान्-पतन्ती) द्युलोक के इधर-उधर के प्रदेशों को गिरती हुई चाहती हुई (एनाः) इनको (ते कः) तेरा कौन ऐसा है (अयुध्वी) बिना युद्ध किये (अव सृजात्) अवसर्जन करे-छोड़ देवे (उत) और (अस्माकम्) हमारे (आयुधाः) शस्त्र (तिग्मा सन्ति) तीक्ष्ण हैं ॥५॥ आध्यात्मिकयोजना−हे सरणशील चेतनाशक्ति ! इन विषय ग्रहण करनेवाली प्रवृत्तियों को मोक्षलोक से इधर-उधर प्राप्त होती हुई, जिन्हें तू चाहती है, इन्हें बिना युद्ध के कौन छोड़े, हमारे पास भी तीक्ष्ण शस्त्र हैं, जो हमारे अधीन हैं, विषयग्रहण करनेवाली शक्तियाँ हैं ॥५॥
भावार्थ
अधिकार में आई वस्तु को बिना संघर्ष करे कोई त्यागता नहीं, यह बात यहाँ आलङ्कारिक संवाद में दर्शायी गई है ॥५॥
विषय
विषयों से युद्ध करके इन्द्रयरूप गौवों को मुक्त करना
पदार्थ
[१] पणि सरमा से कहते हैं कि - हे (सुभगे) = उत्तम ज्ञानैश्वर्यवाली (सरमे) = सरणशील बुद्धि, (दिवः अन्तान्) = ज्ञान के अन्त भागों को (परिपतन्ती) = सब ओर से प्राप्त करती हुई, ज्ञान की चरमसीमा पर पहुँचने की इच्छा करती हुई, (या: ऐच्छ:) = जिनको तूने चाहा है वे (गावः इमाः) = इन्द्रियाँ ये हैं । इन इन्द्रियों के द्वारा ही मनुष्य अपने ज्ञान को बढ़ाता हुआ एक दिन ज्ञान के शिखर पर जा पहुँचता है। परन्तु यदि ये इन्द्रियाँ पणियों से चुरी ली जाएँ, अर्थात् यदि सारे समय सांसारिक व्यवहारों में ही पड़ी रहें और सांसारिक सम्पत्ति व भोगों का परिग्रह ही इनका उद्देश्य बन जाए तो फिर ज्ञान समाप्त हो जाता है। [२] पणि कहते हैं कि (ते एनाः) = तेरी इन इन्द्रियरूप गौवों को (कः) = कौन (अयुध्वी) = वासनाओं से युद्ध न करनेवाला पुरुष (अवसृजात्) = सांसारिक विषयों के बन्धन से छुड़ा सकता है। ये इन्द्रियाँ वस्तुतः बुद्धि की होनी चाहिएँ, परन्तु जब एक मनुष्य सांसारिक विषय वासनाओं से युद्ध नहीं करता तो ये इन्द्रियाँ विषयों में फँस जाती हैं। [३] और यह भी बात है कि 'यह युद्ध कोई आसानी से जीता जा सके ऐसी बात नहीं है । पणि कहते हैं कि (उत) = और (अस्माकम्) = हमारे अर्थात् हमारे पर पड़नेवाले भाषा में हम इस प्रकार का प्रयोग देखते हैं कि 'मेरा रोग बड़ा भयङ्कर है' इस वाक्य में मेरा का भाव है 'मेरे पर जिसका आक्रमण हुआ है' वह रोग बड़ा भयङ्कर है। इसी प्रकार यहाँ (अस्माकम्) = हमारे अर्थात् हमारे पर पड़नेवाले (आयुधा) = आयुध (तिग्मा सन्ति) = बड़े तेज हैं। कामदेव के धनुष व बाण फूलों के बेशक बने हैं, पर उनके आक्रमण से बचने का सम्भव किसी विरल व्यक्ति के लिए ही होता है। जो युद्ध में इनको जीत पाता है वही इन्द्रियरूप गौवों को 'पञ्चपर्वा अविद्यारूप पर्वत' की गुहा से मुक्त कर पाता है ।
भावार्थ
भावार्थ - ज्ञान प्राप्त करना है तो आवश्यक है कि इन्द्रियरूप गौवों को अविद्यापर्वत की गुहा से मुक्त करें। इसके लिए विषय वासनाओं से युद्ध करके उन्हें पराजित करना होगा ।
विषय
पणि-इन्द्रियगणों का चित्त-भूमि और देह पर वश।
भावार्थ
हे (सरमे) उत्तम ज्ञान रूप से जानने योग्य वाणि ! या शक्ते ! हे (सु-भगे) उत्तम ऐश्वर्य युक्ते ! तू (दिवः अन्तान् परि पतन्ती) आकाश के अन्त भागों तक पहुंचती हुई भी (याः गावः ऐच्छः) जिन वाणियों या धाराओं को चाहती है वे (इमाः गावः) ये सब भूमिवत् वाणियां हैं। (कः) कौन (एनाः) इनको (अयुध्वी) विना युद्ध किये, विना प्रहार किये (अव सृजात्) नीचे गिरा सकता है, उन पर वश कर सकता है (उत) और (अस्माकं) हमारे (तिग्मा आयुधा सन्ति) तीक्ष्ण आयुध हैं। अर्थात् हम प्राणगण भी अपने दुःख-सुखादि जनक उपायों से देह पर वश करते हैं। इति पञ्चमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः पणयोऽसुराः। २, ४, ६, ८, १०, ११ सरमा देवशुनी॥ देवता—१, ३, ५, ७, ९ सरमा। २, ४, ६, ८, १०, ११ पण्यः॥ छन्दः—१ विराट् त्रिष्टुप्। २, १० त्रिष्टुपू। ३–५, ७-९, ११ निचृत् त्रिष्टुप्। ६ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। एकादशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सुभगे सरमे) हे शोभनैश्वर्यवति सरमे सरणशीले ! स्तनयित्नु वाक् ! (इमाः-गावः) एता गावो रश्मयो बलानि वा (याः-ऐच्छः) यास्त्वमिच्छसि, (दिवः पर्यन्तान्-पतन्ती) द्युलोकस्य परितो गतान् प्रदेशान् त्वं पतन्ती सती-ऐच्छः (एनाः-कः-ते-अयुध्वी-अव सृजात्) तव कः खल्वेता गाः-रश्मीन् जलानि वा युद्धमकृत्वाऽवसर्जयेत्-त्यजेत् (उत) अपि (अस्माकम्-आयुधा तिग्मा सन्ति) अस्माकं शस्त्राणि तीक्ष्णानि सन्ति ॥५॥ आध्यात्मिकयोजना−सरमे-सरणशीले चेतने ! एता विषयग्रहीत्र्यः प्रवृत्तयः यास्त्वमिच्छसि मोक्षलोकपर्यन्तर्गतायास्त्वं गच्छन्ती खल्विच्छसि, एता-अयुध्वा मोचयेत्, अस्माकमपि तीक्ष्णानि शस्त्राणि यतोऽस्माकमधीनीकृता एता विषयग्रहीत्र्यः शक्तयः ॥५॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Panis: O noble and glorious Sarama, these streams of rain, these vibrations of senses, mind and energies which you want, travelling unto the bounds of heaven, who would release these for you without struggle? And our weapons too are sharp and powerful.
मराठी (1)
भावार्थ
आपल्या अधिकारात असलेल्या वस्तूचा कोणीही संघर्षाशिवाय त्याग करत नाही. ही गोष्ट येथे आलंकारिक संवादात दर्शविलेली आहे. ॥५॥
टिप्पणी
मंत्र ५ - सरमे - सरणशीले चेतने! एता विषयग्रहीत्र्य: प्रवृत्तय: यास्त्वामिच्छसि मोक्षलोक पर्यंतर्गतायास्त्वं गच्छन्ती खल्विच्छसि एता - अयुध्वा मोचयेत् अस्माकमपि तीक्ष्णानि शस्त्राणि यतोऽस्माकमधीनीकृता एता विषयग्रहीत्र्य: शक्तय: ॥५॥ $ भाषा - हे सरणशील चेतनशक्ती! या विषयग्रहण करणाऱ्या प्रवृत्तींना तू इच्छिणारी असून, मोक्षापासून दूर जात आहेस. युद्धाशिवाय त्यांची सुटका कशी होईल? आमच्याजवळही तीक्ष्ण शस्त्रे आहेत. विषय ग्रहण करणाऱ्या शक्ती आहेत. ॥५॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal