ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 121/ मन्त्र 6
ऋषि: - हिरण्यगर्भः प्राजापत्यः
देवता - कः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
यं क्रन्द॑सी॒ अव॑सा तस्तभा॒ने अ॒भ्यैक्षे॑तां॒ मन॑सा॒ रेज॑माने । यत्राधि॒ सूर॒ उदि॑तो वि॒भाति॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥
स्वर सहित पद पाठयम् । क्रन्द॑सी॒ इति॑ । अव॑सा । त॒स्त॒भा॒ने इति॑ । अ॒भि । ऐक्षे॑ताम् । मन॑सा । रेज॑माने । यत्र॑ । अधि॑ । सूरः॑ । उत्ऽइ॑तः । वि॒ऽभाति॑ । कस्मै॑ । दे॒वाय॑ । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यं क्रन्दसी अवसा तस्तभाने अभ्यैक्षेतां मनसा रेजमाने । यत्राधि सूर उदितो विभाति कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥
स्वर रहित पद पाठयम् । क्रन्दसी इति । अवसा । तस्तभाने इति । अभि । ऐक्षेताम् । मनसा । रेजमाने । यत्र । अधि । सूरः । उत्ऽइतः । विऽभाति । कस्मै । देवाय । हविषा । विधेम ॥ १०.१२१.६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 121; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (1)
पदार्थ
(क्रन्दसी) द्युलोक पृथिवीलोक (तस्तभाने) आमने-सामने स्तम्भित हुए (अवसा) रक्षण के हेतु (रेजमाने) काँपते हुए से (मनसा) मन में जैसे (यम्) जिसको (अभि-ऐक्षेताम्) देखते हुए से (यत्र-अधि) जिसके आधार पर (सूरः-उदितः) सूर्य उदय-हुआ (विभाति) प्रकाशित होता है (कस्मै...) पूर्ववत् ॥६॥
भावार्थ
परमात्मा ने द्युमण्डल पृथिवीमण्डल को आमने-सामने स्थिर किया है-रखा है और अपने शासन में उन्हें चला रहा है, सूर्य भी उसी के आधार पर उदय होता है, ऐसे सुखस्वरूप प्रजापति के लिये उपहाररूप से अपने आत्मा को समर्पित करना चाहिये ॥६॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(क्रन्दसी) रोदसी-द्यावापृथिव्यौ “क्रन्दसी रोदसी” ‘क्रदि रोदने’ अर्थसाम्यात् रोदसी (तस्तभाने) स्तभिते (अवसा) रक्षणेन रक्षणहेतुना (रेजमाने) कम्पमाने-इव (मनसा) मनसि यथा (यम्-अभि-ऐक्षेताम्) यं खलु पश्यत इव (यत्र-अधि) यस्मिन्-अधि-यस्याधारे वा (सूरः-उदितः-विभाति) सूर्य उदयं गतः प्रकाशते (कस्मै....) पूर्ववत् ॥६॥
English (1)
Meaning
Whom eloquent heaven and earth sustained in balance by divine power, shining in splendour and inspired at heart, manifest in glory and celebrate in song, under whose law the sun rises, shines and illuminates the world, that self-refulgent lord let us worship with offers of havis.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराने द्युमंडल पृथ्वीमंडलाला समोरासमोर स्थिर केलेले आहे. आपल्या शासनामध्ये ठेवलेले आहे. सूर्यही त्याच्या आधाराने उदित होतो. अशा सुखस्वरूप प्रजापतीला उपहाररूपाने आपल्या आत्म्याला समर्पित केले पाहिजे. ॥६॥
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