ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 123/ मन्त्र 6
नाके॑ सुप॒र्णमुप॒ यत्पत॑न्तं हृ॒दा वेन॑न्तो अ॒भ्यच॑क्षत त्वा । हिर॑ण्यपक्षं॒ वरु॑णस्य दू॒तं य॒मस्य॒ योनौ॑ शकु॒नं भु॑र॒ण्युम् ॥
स्वर सहित पद पाठनाके॑ । सु॒ऽप॒र्णम् । उप॑ । यत् । पत॑न्तम् । हृ॒दा । वेन॑न्तः । अ॒भि । अच॑क्षत । त्वा॒ । हिर॑ण्यऽपक्ष॑म् । वरु॑णस्य । दू॒तम् । य॒मस्य॑ । योनौ॑ । श॒कु॒नम् । भु॒र॒ण्युम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
नाके सुपर्णमुप यत्पतन्तं हृदा वेनन्तो अभ्यचक्षत त्वा । हिरण्यपक्षं वरुणस्य दूतं यमस्य योनौ शकुनं भुरण्युम् ॥
स्वर रहित पद पाठनाके । सुऽपर्णम् । उप । यत् । पतन्तम् । हृदा । वेनन्तः । अभि । अचक्षत । त्वा । हिरण्यऽपक्षम् । वरुणस्य । दूतम् । यमस्य । योनौ । शकुनम् । भुरण्युम् ॥ १०.१२३.६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 123; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वेनन्तः) कामना करते हुए (यत्) जब (नाके) परम सुखस्थान मोक्षधाम के निमित्त (त्वां सुपर्णम्) तुझ अच्छे पालन करनेवाले (उप पतन्तम्) निकटता से प्राप्त होते हुए परमात्मा को (हृदा) चित्त से मन से (अभि-अचक्षत) साक्षात् करते हैं-अनुभव करते हैं (हिरण्यपक्षम्) पके अमृतफल देनेवाले (वरुणस्य दूतम्) आवरक कामादि के दूर करनेवाले तुझ परमात्मा को (यमस्य योनौ) मृत्यु के घर संसार में (भुरण्युम्) पालक (शकुनम्) शक्तिवाले परमात्मा को देखते हैं ॥६॥
भावार्थ
स्तुति करनेवाले जन मोक्ष पाने के निमित्त अपने हृदय में तुझे प्राप्त होते हुए-साक्षात् होते हुए पके हुए अमृत फल को देनेवाले कामादि को दूर करनेवाले संसार में पालन करनेवाले शक्तिमान् तुझ-परमात्मा को साक्षात् करते हैं ॥६॥
विषय
ज्योतिर्मय
पदार्थ
[१] हे परमात्मन्! (नाके) = मोक्ष सुख में (सुपर्णम्) = बड़ी उत्तमता से पालन करनेवाले, (उप) = समीप (पतन्तम्) = प्राप्त होते हुए (त्वा) = आपको (यत्) = जब (हृदावेनन्तः) = हृदय से कामना करते हुए ये उपासक लोग (अभ्यचक्षत) = देखते हैं, तो इस रूप में देखते हैं कि आप (हिरण्यपक्षम्) = ज्योति का ग्रहण करनेवाले हैं [ पक्ष परिग्रहे] ज्योतिर्मय स्वरूपवाले हैं । (वरुणस्य दूतम्) = पाप निवारण का सन्देश देनेवाले हैं। (यमस्य योनौ) = संयम के स्थान में (शकुनम्) = शक्तिशाली बनानेवाले हैं। (भुरण्युम्) = सबका भरण-पोषण करनेवाले हैं । [२] उपासक क्या देखता है कि प्रभु [क] ज्योतिर्मय हैं, [ख] प्रतिक्षण पाप से बचने की प्रेरणा दे रहे हैं, [ग] संयम के द्वारा हमें शक्तिशाली बनाते हैं, [घ] हमारा भरण व पोषण कर रहे हैं, [ङ] सदा हमारे समीप हैं [उपपतन्तं ] और [च] अन्ततः मोक्षसुख में हमारा उत्तम पालन करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ-अनन्य भक्ति के द्वारा प्रभु का दर्शन करते हुए उसके ज्योतिर्मय रूप को हम देखते हैं।
विषय
सूर्यवत् तेजोमय, अज्ञानावरण का नाशक, सर्वशक्ति सर्वपोषक प्रभु का साक्षात् दर्शन।
भावार्थ
हे प्रभो ! (वेनन्तः) तुझे चाहने वाले, तेरी अर्चना करने वाले ज्ञानी जन (यत्) जब (त्वा) तुझे (नाके) परम सुखमय मोक्ष में (सुपर्णम् पतन्तम्) आकाश में उड़ते पक्षी के तुल्य (पतन्तम्) सूर्य के तुल्य व्यापते (सुपर्णं) उत्तम रश्मियों वाले (त्वा) तुझको (हृदा) हृदय-चक्षु से (अभि अचक्षत) साक्षात् करते हैं तब वे तुझे (हिरण्य-पक्षम्) तेजोरूप से ग्रहण करने योग्य, (वरुणस्य दूतम्) रात्रि के नाशक सूर्यवत् अन्तःकरण के आवरक अज्ञान का नाशक और (यमस्य योनौ) सर्वनियन्ता के पद पर विराजमान (शकुनम्) शक्तिशाली, सबको ऊपर उठाने वाले, (भुरण्युम्) सबके पालक पोषक रूप से ही (अभि अचक्षत) तुझे देखते और ऐसा ही तेरा वर्णन करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्वेनः॥ वेनो देवता॥ छन्दः—१, ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। २— ४, ६, ८ त्रिष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वेनन्तः) कामयमानाः स्तोतारः (यत्) यदा (नाके) परमसुखस्थाने परमसुखस्थाननिमित्तं (त्वां सुपर्णम्-उप पतन्तम्) त्वां शोभन-पालकं स्वहृदये-उपगच्छन्तं निकटतया प्राप्तं (हृदा-अभि-अचक्षत) चित्तेन-मनसा “हृद्भिः चित्तैः” [ऋ० १।११६।१७ दयानन्दः] अभिपश्यन्ति साक्षात्कुर्वन्ति-अनुभवन्ति (हिरण्यपक्षम्) अमृतफलपाकप्रदम् “अमृतं वै हिरण्यम्” [तै० स० ५।२।७।२] ‘पचिवचिभ्यां सुट् च असुन्’ [उणादि० ४।२२०] पक्षः (वरुणस्य-दूतम्) आवरकस्य कामादिकस्य दूरीकर्त्तारं (यमस्य-योनौ भुरण्युं शकुनम्) मृत्योः “मृत्युर्वै यमः” [मै० २।५।६] गृहे संसारे पालकं शक्तिमन्तं परमात्मानभिपश्यति ॥६॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Sun, wrapped in wondrous rays flying around in the highest heaven, loving sages with their heart and soul see and realise you at the closest as a messenger of the supreme lord of love and justice and as a mighty bird blazing and flying with golden wings in the vast space of the lord ordainer of the universe.
मराठी (1)
भावार्थ
स्तुती करणारे लोक मोक्ष प्राप्त करण्याच्या निमित्त आपल्या हृदयात ईश्वराला प्राप्त करून, साक्षात करून, पिकलेल्या अमृतफळाला देणाऱ्या, काम इत्यादी दोष दूर करणाऱ्या, संसाराचे पालन करणाऱ्या शक्तिमान परमेश्वराला साक्षात करतात. ॥६॥
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