ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 123/ मन्त्र 7
ऊ॒र्ध्वो ग॑न्ध॒र्वो अधि॒ नाके॑ अस्थात्प्र॒त्यङ्चि॒त्रा बिभ्र॑द॒स्यायु॑धानि । वसा॑नो॒ अत्कं॑ सुर॒भिं दृ॒शे कं स्व१॒॑र्ण नाम॑ जनत प्रि॒याणि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठऊ॒र्ध्वः । ग॒न्ध॒र्वः । अधि॑ । नाके॑ । अ॒स्था॒त् । प्र॒त्यङ् । चि॒त्रा । बिभ्र॑त् । अ॒स्य॒ । आयु॑धानि । वसा॑नः । अत्क॑म् । सु॒ऽर॒भिम् । दृ॒शे । कम् । स्वः॑ । ण । नाम॑ । ज॒न॒त॒ । प्रि॒याणि॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऊर्ध्वो गन्धर्वो अधि नाके अस्थात्प्रत्यङ्चित्रा बिभ्रदस्यायुधानि । वसानो अत्कं सुरभिं दृशे कं स्व१र्ण नाम जनत प्रियाणि ॥
स्वर रहित पद पाठऊर्ध्वः । गन्धर्वः । अधि । नाके । अस्थात् । प्रत्यङ् । चित्रा । बिभ्रत् । अस्य । आयुधानि । वसानः । अत्कम् । सुऽरभिम् । दृशे । कम् । स्वः । ण । नाम । जनत । प्रियाणि ॥ १०.१२३.७
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 123; मन्त्र » 7
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
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अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(गन्धर्वः) पृथिवी आदि लोकों का धारणकर्त्ता परमात्मा (ऊर्ध्वः) उत्कृष्ट (नाके-अधि) मोक्ष में (अस्थात्) स्वरूप से विराजमान है (अस्य चित्रा-आयुधानि) यह विचित्र शस्त्रों को (बिभ्रत्) धारण करता है (सुरभिम् अत्कं वसानः) सुगन्धयुक्त वज्र को आच्छादित करता हुआ (कं दृशे) सुख को दिखाने के लिये है (प्रियाणि स्वः-न नाम) रुचिकर सुखविशेष सम्प्रति अवश्य (जनत) उत्पन्न करता है ॥७॥
भावार्थ
परमात्मा पृथिवी आदि लोकों को धारण कर रहा है, स्वरूपतः मोक्षधाम साक्षात् होता है, इसके शस्त्र विचित्र हैं, सुगन्धयुक्त मीठे वज्र को गुप्तरूप में रखता है, सुख दिखाने के लिये उत्पन्न करता है ॥७॥
विषय
ब्रह्म रूप कवच का धारण
पदार्थ
[३] गत मन्त्र के अनुसार प्रभु का दर्शन करनेवाला (ऊर्ध्वः) = ऊपर उठता है, विषयों में कभी फँसता नहीं । (गन्धर्वः) = यह ज्ञान की वाणियों का धारण करनेवाला होता है । (नाके अधि अस्थात्) = मोक्ष सुख में स्थित होता है, शरीर छूटने से पूर्व भी जीवन्मुक्त अवस्था में होता है । [२] यह जीवन्मुक्त (प्रत्यङ्) = अपने अन्दर (अस्य) = इस प्रभु के, प्रभु से दिये हुए (चित्रा आयुधानि) = अद्भुत आयुधों को, इन्द्रिय, मन व बुद्धि को (बिभ्रत्) = धारण करता है। [३] (अत्कम्) = प्रभु रूप कवच को [ब्रह्म वर्म ममान्तरम्] (वसानः) = यह धारण करता है। यह कवच (सुरभिम्) = शोभन व सुन्दर है अथवा [सु-रभ] हमें सदा शुभ कर्मों में प्रवृत्त करनेवाला है । यह अन्ततः उस (कम्) = आनन्दमय प्रभु के दृशे दर्शन के लिए होता है । [४] इस प्रभु रूप कवच को धारण करके यह व्यक्ति (स्वः न) = सूर्य की तरह (प्रियाणि नाम जनत) = प्रिय कर्मों को ही प्रकट करता है। सूर्य सदा प्रकाश को करता है, यह भी प्रकाशमय उत्कृष्ट कर्मों को ही करता है । ब्रह्मरूप कवच को धारण करने पर इसके जीवन से अशुभ कर्म होते ही नहीं ।
भावार्थ
भावार्थ- ब्रह्मरूप कवच को धारण करके हम सदा शुभ कर्मों को ही करनेवाले बनें ।
विषय
सर्वोपरि शासक प्रभु। गन्धर्व परमेश्वर का देहरूप विश्व कवच है।
भावार्थ
(ऊर्ध्वः) सर्वोपरि विराजमान, (गन्धर्वः) सूर्य और भूमि आदि लोकों का धारण करने वाला, (नाके अधि) परम सुखमय लोक, मोक्ष से (प्रत्यङ्) प्रत्यक्ष, सर्वव्यापक होकर (अधि अस्थात्) सर्वोपरि विराजता है। वह (अस्य) इस जगत् के (चित्रा) अद्भुत २, नाना (आयुधानि) सञ्चालन करने के नाना साधनों को हथियारों को वीर के तुल्य (बिभ्रत्) धारण करता हुआ और (अत्कं वसानः) कवचवत् इस (सुरभिः) उत्तम रीति से ग्रहण करने योग्य, दृढ़ सुनिर्मित्त जगत् को धारता हुआ, इसमें व्यापता हुआ, (दृशे) दीखता है। वह (स्वः न) जलों को सूर्यवत् (प्रियाणि नाम) प्रिय रूपों वा पदार्थों को (जनत्) उत्पन्न करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्वेनः॥ वेनो देवता॥ छन्दः—१, ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। २— ४, ६, ८ त्रिष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(गन्धर्वः) गाः पृथिव्यादीन् लोकान् धरति यः स परमात्मा (ऊर्ध्वः) उत्कृष्टः (नाके-अधि) मोक्षे (अस्थात्) स्वरूपस्तिष्ठति-विराजते (अस्य चित्रा-आयुधानि) अयम् “प्रथमास्थाने षष्ठी व्यत्ययेन” परमात्मा विचित्राणि शस्त्राणि (बिभ्रत्) बिभर्ति-धारयति (सुरभिम्-अत्कम्) सुगन्धं वज्रमस्ति ‘अत्कं वज्रनाम’ [निघ० २।२०] (वसानः) आच्छादयन् (कं दृशे) सुखं द्रष्टुं (प्रियाणि स्वः-न नाम) प्रियाणि सुखानि सम्प्रति (जनत) जनयति ॥७॥
इंग्लिश (1)
Meaning
High up over there abides the sun in the region of heavenly light. It bears wondrous weapons of divinity such as thunder and lightning. It wears a beautiful, fragrant form soothing for people to see, and like the light and bliss of heaven creates divine waters and many other dear divine gifts for life.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा पृथ्वी इत्यादी लोकांना धारण करत आहे. तो मोक्षधामात साक्षात होतो. त्याची शस्त्रे विचित्र आहेत. सुगंधयुक्त मधुर वज्र तो गुप्तरूपाने ठेवतो. सुख दर्शनासाठी उत्पन्न करतो. ॥७॥
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