ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 126/ मन्त्र 3
ऋषिः - कुल्मलबर्हिषः शैलूषिः, अंहोभुग्वा वामदेव्यः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - विराड्बृहती
स्वरः - मध्यमः
ते नू॒नं नो॒ऽयमू॒तये॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा । नयि॑ष्ठा उ नो ने॒षणि॒ पर्षि॑ष्ठा उ नः प॒र्षण्यति॒ द्विष॑: ॥
स्वर सहित पद पाठते । नू॒नम् । नः॒ । अ॒यम् । ऊ॒तये॑ । वरु॑णः । मि॒त्रः । अ॒र्य॒मा । नयि॑ष्ठाः । ऊँ॒ इति॑ । नः॒ । ने॒षणि॑ । पर्षि॑ष्ठाः । ऊँ॒ इति॑ । नः॒ । प॒र्षणि॑ । अति॑ । द्विषः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ते नूनं नोऽयमूतये वरुणो मित्रो अर्यमा । नयिष्ठा उ नो नेषणि पर्षिष्ठा उ नः पर्षण्यति द्विष: ॥
स्वर रहित पद पाठते । नूनम् । नः । अयम् । ऊतये । वरुणः । मित्रः । अर्यमा । नयिष्ठाः । ऊँ इति । नः । नेषणि । पर्षिष्ठाः । ऊँ इति । नः । पर्षणि । अति । द्विषः ॥ १०.१२६.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 126; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अयं वरुणः-मित्रः-अर्यमा) ये पूर्वोक्त वरुण, मित्र, अर्यमा (ते) वे सब (नः) हमारी (नूनम्) निश्चय से (ऊतये) रक्षा के लिए (नः-नेषणि) हमारे नेतव्य मार्ग में (उ नयिष्ठाः) अवश्य ले जावें (नः पर्षणि) हमारे पार करने योग्य-प्राप्त करने योग्य विषय में (उ द्विषः-अति) द्वेष करनेवालों का अतिक्रमण करके (पर्षिष्ठाः) पार करो ॥३॥
भावार्थ
पूर्व कहे हुए मित्रादि रक्षार्थ गन्तव्य मार्ग पर ले जाते हैं और विरोधियों को हटाकर अभीष्ट-उद्देश्य तक पहुँचाते हैं, उनकी अनुमति या अनुकूलता से आचरण करें ॥३॥
विषय
अकर्त्तव्य से दूर, कर्त्तव्य के समीप
पदार्थ
[१] (अयं वरुणः) = यह वरुण पाप निवारण की देवता, (अयं मित्रः) = यह प्रमीति से, रोगों व पापों से त्राण करनेवाली, बचानेवाली देवता, (अयं अर्यमा) = यह 'अरीन् यच्छति' काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नियमन करनेवाली देवता (ते) = वे सब आप (नूनम्) = निश्चय से (नः) = हमारे (ऊतये) = रक्षण के लिए होते हो। (उ) = निश्चय से (नः) = हमें (नेषणि) = नेतव्य विषय में (नयिष्ठाः) = ले चलो। अर्थात् 'वरुण, मित्र, अर्यमा' की कृपा से हम उन्हीं मार्गों पर चलें, जिन पर कि हमें चलना चाहिए। [२] हे वरुणादि देवो ! (उ) = और (नः) = हमें (पर्षणि) = पारयितव्य विषय में (पर्षिष्ठाः) = पार करो । (द्विषः अति) [पर्षिष्ठा: ] = सब द्वेषों से तो हमें पार करो ही । हम किसी भी पाप के गर्त में न गिरें, द्वेष में तो कभी भी न पड़ें।
भावार्थ
भावार्थ- 'वरुण-मित्र अर्यमा' की आराधना से हम करने योग्य चीजों को करें, न करने योग्य चीजों को न करें, द्वेष से अवश्य दूर रहें।
विषय
विश्वेदेव। पाप से रक्षा। सत्संग द्वारा सज्जनों की कृपा से पाप से पार होना, सब बुराइयों से छूटना।
भावार्थ
(अयम् वरुणः अयम् मित्रः अयम् अर्यमा) यह वरुण, यह मित्र, यह अर्यमा, (ते) वे सब (नूनम्) अवश्य (नः ऊतये) हमारी रक्षा, ज्ञान-वृद्धि और स्नेह के लिये हैं। (नेषणि) सन्मार्ग में (नः उ नयिष्ठाः) वे ही सबसे उत्तम लेजाने वाले नेता हैं और (पर्षणि) पालन, और संकट से पार करने के अवसर में (नः उ पर्षिष्ठाः) वे ही हमारे सबसे उत्तम पालक, पूरक और पार पहुंचाने वाले हैं।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः कुल्मलबर्हिषः शैलुषिरंहोमुग्वा वामदेव्यः॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः—१, ५, ६ निचृद् बृहती। २–४ विराड् वृहती। ७ बृहती। ८ आर्चीस्वराट् त्रिष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अयं वरुणः-मित्रः-अर्यमा) एष वरुणः-मित्रः-अर्यमा (ते नः-नूनम्-ऊतये) ते सर्वेऽवश्यमस्माकं रक्षायै (नः-नेषणि-उ नयिष्ठाः) अस्मान्नेतव्ये मार्गे हि नयत (नः पर्षणि-उ द्विषः-अति पर्षिष्ठाः) अस्मान्पारयितव्ये प्रापयितव्ये विषये द्वेष्टॄन्-अतिक्रम्य-परास्य पारय-पारयत ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This Varuna, this Mitra, this Aryama, surely they are for our protection, guidance and success. O protective and guiding divinities of rectitude, take us and guide us on the path we ought to take, lead us to the goal we ought to reach, take us across and beyond the hate, jealousy and enmity we ought to avoid.
मराठी (1)
भावार्थ
पूर्वीच्या कथनानुसार मित्र इत्यादी रक्षणासाठी गंतव्य मार्गावर घेऊन जातात व विरोधकांना हटवून अभीष्ट-उद्देशापर्यंत पोचवितात. त्यांच्या अनुमतीने किंवा अनुकूलतेने आचरण करावे. ॥३॥
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