ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 126/ मन्त्र 5
ऋषिः - कुल्मलबर्हिषः शैलूषिः, अंहोभुग्वा वामदेव्यः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृद्बृहती
स्वरः - मध्यमः
आ॒दि॒त्यासो॒ अति॒ स्रिधो॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा । उ॒ग्रं म॒रुद्भी॑ रु॒द्रं हु॑वे॒मेन्द्र॑म॒ग्निं स्व॒स्तयेऽति॒ द्विष॑: ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒दि॒त्यासः॑ । अति॑ । स्रिधः॑ । वरु॑णः । मि॒त्रः । अ॒र्य॒मा । उ॒ग्रम् । म॒रुत्ऽभिः॑ । रु॒द्रम् । हु॒वे॒म॒ । इन्द्र॑म् । अ॒ग्निम् । स्व॒स्तये॑ । अति॑ । द्विषः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आदित्यासो अति स्रिधो वरुणो मित्रो अर्यमा । उग्रं मरुद्भी रुद्रं हुवेमेन्द्रमग्निं स्वस्तयेऽति द्विष: ॥
स्वर रहित पद पाठआदित्यासः । अति । स्रिधः । वरुणः । मित्रः । अर्यमा । उग्रम् । मरुत्ऽभिः । रुद्रम् । हुवेम । इन्द्रम् । अग्निम् । स्वस्तये । अति । द्विषः ॥ १०.१२६.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 126; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 13; मन्त्र » 5
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अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 13; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वरुणः-मित्रः-अर्यमा-आदित्यासः) वरुण, मित्र, अर्यमा, ये हमारे ग्रहण करनेवाले (मरुद्भिः) प्राणों के साथ (उग्रं रुद्रम्-इन्द्रम्-अग्निम्) प्रतापी रोग को द्रवित करनेवाले सूर्य-वायु-अग्नि को (स्वस्तये हुवेम) कल्याण के लिए हम स्वीकार करते हैं (द्विषः-अति) द्वेष करनेवाले विरोधियों को अतिक्रमण करके हम स्थिर हों ॥५॥
भावार्थ
वरुण, मित्र अर्यमा, ग्रहण करनेवाले प्राणों के साथ तथा प्रतापवान् रोग को द्रवित करनेवाले रोग को वायु को और अग्नि को कल्याण के लिए उपयोग में लावें, तो द्वेष करनेवाले विरोधियों से बचे रहते हैं ॥५॥
विषय
प्राणायाम-प्रभु-स्तवन, बल-प्रकाश
पदार्थ
[१] हे (आदित्यासः) = अदिति के पुत्रो ! 'अदिति' अर्थात् स्वास्थ्य, अखण्डन । पूर्ण स्वास्थ्य में जो उत्तम दिव्य भावनाएँ उत्पन्न होती हैं वे आदित्य हैं । हें आदित्यो ! हमें (स्त्रिधः अति) = हिंसक वृत्तियों से ऊपर उठाओ (वरुणः) = वरुण हमें क्रोध से ऊपर उठाये [ निवारयति इति वरुणः ] । मित्र] [प्रमीतेः त्रायते ] = मित्र हमें कामपरता से उत्पन्न होनेवाले रोगों व पापों से बचाए । (अर्यमा) = हमारे शत्रुओं का नियमन करता हुआ पापों के मूल लोभ से हमें दूर करें। [२] (मरुद्भिः) = प्राणों के साथ, प्राणसाधना करते हुए हम (उग्रम्) = उस तेजस्वी (रुद्रम्) = शत्रुओं को रुलानेवाले प्रभु को (हुवेम) = पुकारते हैं । (इन्द्रम्) = बल की देवता को तथा अग्निम् प्रकाश की देवता को हम पुकारते हैं । ये (स्वस्तये) = हमारे कल्याण के लिए हों । द्विषः अति-ये हमें द्वेष की भावनाओं से ऊपर उठाएँ। हमारे जीवनों में प्राणसाधना व प्रभु-स्तवन का मेल हो [मरुत् + रुद्र] बल व प्रकाश का समन्वय हो [इन्द्र + अग्नि] । यही कल्याण का साधन है। इसी प्रकार हम द्वेषों से ऊपर उठ सकते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- हमारे जीवन में काम-क्रोध-लोभ न हो। प्राणसाधना व प्रभु-स्तवन करनेवाले हम हों । बल व प्रकाश का अपने जीवन में हम समन्वय करें ।
विषय
विश्वेदेव। पाप से रक्षा। सत्संग द्वारा सज्जनों की कृपा से पाप से पार होना, सब बुराइयों से छूटना।
भावार्थ
(आदित्यासः) सूर्य की किरणों के समान वा ऋतुओं के समान जगत् को सुख देने वाले जन और (वरुणः मित्रः अर्यमा) श्रेष्ठ, सर्वस्नेही और न्यायकारी जन ये हमें (स्रिधः अति) हिंसकों, शत्रुओं वा दुःखदायी पापों से पार करें। हम (उग्रम्) दुष्टों के भयदाता (रुद्रम्) दुष्टों को रुलाने वाले, (रुद्रम्) शत्रुओं के नाशक, तेजस्वी, सबको जल अन्नादि के दाता, और (अग्निम्) स्वयंप्रकाश, अग्रणी, तेजस्वी स्वामी को हम (मरुद्भिः) प्राणोंवत् सुखप्रद विद्वान् मनुष्यों सहित (हुवेम) बुलाते हैं। वे हमें (द्विषः अति) शत्रुओं के पार करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः कुल्मलबर्हिषः शैलुषिरंहोमुग्वा वामदेव्यः॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः—१, ५, ६ निचृद् बृहती। २–४ विराड् वृहती। ७ बृहती। ८ आर्चीस्वराट् त्रिष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वरुणः-मित्रः-अर्यमा-आदित्यासः) वरुणो मित्रोऽर्यमा-इत्येतेऽस्माकमादातारः स्वीकर्त्तारः शरणे गृहीतारः (मरुद्भिः) तथा प्राणैः सह “मरुतः-प्राणादयः” [ऋ० १।५२।९ दयानन्दः] (उग्रं रुद्रम्-इन्द्रम्-अग्निम्) प्रतापिनं रोगद्रावयितारं सूर्यम् “रुदम्-यो रुत् रोगं द्रावयति तम्” [ऋ० ६।४९।१० दयानन्दः] वायुम् “यो वायुः स इन्द्रः” [श० ४।१।३।१९] अग्निं होमाग्निं च (स्वस्तये हुवेम) कल्याणाय स्वीकुर्मः (द्विषः-अति) पुनर्वयं द्वेष्टॄन् विरोधिनोऽतिक्रम्य स्थिता भवेम ॥५॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May the Adityas, brilliant scholars of the Aditya order of forty eight years discipline, Varuna, Mitra and Aryama, powers of justice, love and rectitude, protect us and guide us across violence and enmity and lead us to success. We invoke the blazing commander with his tempestuous commandos, Rudra, determined destroyer of evil and suffering, Indra, mighty ruler, and Agni, brilliant teacher and scholar, for all round protection and well being so that we may overcome the forces of hate, jealousy and enmity and reach our goals.
मराठी (1)
भावार्थ
वरुण, मित्र, अर्यमा ग्रहण करणाऱ्या प्राणांबरोबर व प्रचंड रोगाला द्रवित करणाऱ्या रोगाला वायू व अग्नीच्या साह्याने कल्याणासाठी उपयोगात आणावे. तेव्हाच द्वेष करणाऱ्या विरोधकांपासून स्वत:चा बचाव करता येईल. ॥५॥
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