ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 126/ मन्त्र 7
ऋषिः - कुल्मलबर्हिषः शैलूषिः, अंहोभुग्वा वामदेव्यः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
शु॒नम॒स्मभ्य॑मू॒तये॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा । शर्म॑ यच्छन्तु स॒प्रथ॑ आदि॒त्यासो॒ यदीम॑हे॒ अति॒ द्विष॑: ॥
स्वर सहित पद पाठशु॒नम् । अ॒स्मभ्य॑म् । ऊ॒तये॑ । वरु॑णः । मि॒त्रः । अ॒र्य॒मा । शर्म॑ । य॒च्छ॒न्तु॒ । स॒ऽप्रथः॑ । आ॒दि॒त्यासः॑ । यत् । ईम॑हे । अति॑ । द्विषः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शुनमस्मभ्यमूतये वरुणो मित्रो अर्यमा । शर्म यच्छन्तु सप्रथ आदित्यासो यदीमहे अति द्विष: ॥
स्वर रहित पद पाठशुनम् । अस्मभ्यम् । ऊतये । वरुणः । मित्रः । अर्यमा । शर्म । यच्छन्तु । सऽप्रथः । आदित्यासः । यत् । ईमहे । अति । द्विषः ॥ १०.१२६.७
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 126; मन्त्र » 7
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 13; मन्त्र » 7
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अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 13; मन्त्र » 7
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वरुणः-मित्रः-अर्यमा-अस्मभ्यम् ऊतये शुनं यच्छन्तु) वरुण मित्र अर्यमा वे हमारे लिये सुख देवें (आदित्यासः यद् ईमहे सप्रथः शर्म यच्छन्तु) ये स्वीकार करनेवाले जब हम इन्हें प्रार्थना करते हैं, तभी विस्तृत शरण देते हैं, पुनः हम द्वेष करनेवाले विरोधियों को अतिक्रमण कर स्थित होते हैं ॥७॥
भावार्थ
वरुण, मित्र, अर्यमा हमारे लिये सुख देते हैं, इन स्वीकार करनेवालों को जब हम वरते हैं, तो विस्तृत शरण देते हैं, द्वेष करनेवाले विरोधी हमारा कुछ नहीं कर सकते ॥७॥
विषय
'शान्त उदार' जीवन
पदार्थ
[१] (वरुणः मित्रः अर्यमा) = वरुण, मित्र और अर्यमा 'निर्दोषता, स्नेह व निर्लोभता' की देवता (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (शुनम्) = [सुखं यथा स्यात् तथा] सुखपूर्वक (ऊतये) = रक्षण के लिए हों। इन से रक्षित होकर हम सुखमय जीवनवाले हो पाएँ । [२] (आदित्यासः) = अदिति के पुत्र, अर्थात् स्वास्थ्य में विकसित होनेवाले दिव्यगुण (सप्रथः) = विस्तार से युक्त (शर्म) = शरण व सुख को (यच्छन्तु) = दें (यत् ईमहे) = जिसकी हम याचना करते हैं । (द्विषः अति) = ये देव हमें द्वेष की वृत्तियों से ऊपर उठाएँ । द्वेष से ऊपर उठकर ही शान्त सुखी जीवन बिताया जा सकता है।
भावार्थ
भावार्थ- देवों के अनुग्रह से हम द्वेष से ऊपर उठकर शान्त व उदार [सप्रथः] जीवन बिता पाएँ।
विषय
विश्वेदेव। पाप से रक्षा। सत्संग द्वारा सज्जनों की कृपा से पाप से पार होना, सब बुराइयों से छूटना।
भावार्थ
(आदित्यासः वरुणः मित्रः अर्यमा) आदित्यगण, वरुण, मित्र, अर्यमा ये सब हम (उतये) अपने सुख प्राप्ति और रक्षा के लिये (यत् ईमहे) जिस सुख की याचना करे उस (शुनं) सुख को और (सप्रथः) विस्तृत विभूति सहित, (शर्म) शरण, शत्रु-नाशक, बल का (यच्छन्तु) प्रदान करें, जिस से हम (द्विषः अति) शत्रुओं से अधिक बलवान् हों।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः कुल्मलबर्हिषः शैलुषिरंहोमुग्वा वामदेव्यः॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः—१, ५, ६ निचृद् बृहती। २–४ विराड् वृहती। ७ बृहती। ८ आर्चीस्वराट् त्रिष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वरुणः-मित्रः-अर्यमा-अस्मभ्यम्-ऊतये शुनं यच्छतु) वरुणः-मित्रः-अर्यमा, तेऽस्मभ्यं रक्षायै सुखं प्रयच्छन्तु (आदित्यासः-यत्-ईमहे सप्रथः-शर्म यच्छन्तु) एते स्वीकर्त्तारो यदा वयमेतान् प्रार्थयामहे तदैव सविस्तृतं शरणञ्च प्रयच्छन्तु पुनश्च (द्विषः-अति) द्वेष्टॄन् विरोधिनश्चातिक्रम्य स्थिता भवेम ॥७॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May Varuna, Mitra and Aryama, powers of justice, and noble choice, love and friendship, and noble ethics and policy, bring us peace and progress for our protection and advancement. May the Adityas, brilliant scholars, teachers and researchers give us lasting comfort and well being of wide variety which we seek and pray for, and may all these divine nobilities lead us beyond the reach of the forces of hate and enmity.
मराठी (1)
भावार्थ
वरुण, मित्र, अर्यमा आम्हाला सुख देतात हे स्वीकार करणाऱ्याला जेव्हा आम्ही वरण करतो तेव्हा ते विस्तृत शरण देतात. द्वेष करणारे विरोधी आमचे काही करू शकत नाहीत. ॥७॥
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