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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 129 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 129/ मन्त्र 6
    ऋषिः - प्रजापतिः परमेष्ठी देवता - भाववृत्तम् छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    को अ॒द्धा वे॑द॒ क इ॒ह प्र वो॑च॒त्कुत॒ आजा॑ता॒ कुत॑ इ॒यं विसृ॑ष्टिः । अ॒र्वाग्दे॒वा अ॒स्य वि॒सर्ज॑ने॒नाथा॒ को वे॑द॒ यत॑ आब॒भूव॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः । अ॒द्धा । वे॒द॒ । कः । इ॒ह । प्र । वो॒च॒त् । कुतः॑ । आऽजा॑ता । कुतः॑ । इ॒यम् । विऽसृ॑ष्टिः । अ॒र्वाक् । दे॒वाः । अ॒स्य । वि॒ऽसर्ज॑नेन । अथ॑ । कः । वे॒द॒ । यतः॑ । आ॒ऽब॒भूव॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को अद्धा वेद क इह प्र वोचत्कुत आजाता कुत इयं विसृष्टिः । अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आबभूव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कः । अद्धा । वेद । कः । इह । प्र । वोचत् । कुतः । आऽजाता । कुतः । इयम् । विऽसृष्टिः । अर्वाक् । देवाः । अस्य । विऽसर्जनेन । अथ । कः । वेद । यतः । आऽबभूव ॥ १०.१२९.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 129; मन्त्र » 6
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 17; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (कः) कौन (अद्धा) तत्त्व से-यथार्थ (वेद) जाने (कः) कौन (इह) इस विषय में (प्र वोचत्) प्रवचन कर सके-कह सके (इयं विसृष्टिः) यह विविध सृष्टि (कुतः) किस निमित्तकारण से (कुतः-आजाता) किस उपादान से प्रकट हुई-उत्पन्न हुई (अस्य विसर्जनेन) इसके विसर्जन से उत्पादन से (अर्वाक्-देवाः) पीछे उत्पन्न हुए विद्वान् हैं (अथ कः) पुनः कौन (वेद) जान सके (यतः-आबभूव) जिस उपादान से ये आविर्भूत हुई-उत्पन्न हुई ॥६॥

    भावार्थ

    यह विविध सृष्टि किस निमित्तकारण से और किस उपादानकारण से उत्पन्न होती है, इस बात को कोई बिरला विद्वान् ही यथार्थरूप में जान सकता है, क्योंकि सभी विद्वान् सृष्टि उत्पन्न होने के पश्चात् होते हैं-अर्थात् कोई तत्त्ववेत्ता योगी ही इसको समझ सकता है और कह सकता है ॥६॥

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    विषय

    जगत् का मूल कारण अज्ञेय

    पदार्थ

    (अद्धा कः वेद) = ठीक-ठीक कौन जान सकता है ? (इह कः प्रवोचत्) = इस विषय में कौन उत्तम रीति से प्रवचन या उपदेश कर सकता है ? (कृतः आ जाता) = कि यह सृष्टि कहाँ से प्रकट हुई? (इयं विसृष्टि:) = यह विविध प्रकार का सर्ग (कुतः) = किस मूल कारण से और क्यों हुआ ? (देव:) = विद्वान् लोग भी (अस्य विसर्जनेन) = इस जगत् को विविध प्रकार से रचनेवाले मूलकारण के (अर्वाक्) = पश्चात् ही हुए हैं । (अथ कः वेद) = तो फिर कौन उस तत्त्व को जानता है (यतः) = जिससे यह (आ बभूव) = चारों ओर प्रकट हुआ ?

    भावार्थ

    भावार्थ - जब कोई नहीं था तो उस समय की वास्तविक स्थिति को कौन बता सकता है।

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    विषय

    जगत् का मूल कारण अज्ञेय, अव्यक्त।

    भावार्थ

    (अद्धा कः वेद) सत्य सत्य, ठीक ठीक कौन जान सकता है ? (इह कः प्रवोचत्) यहां या इस विषय में कौन उत्तम रीति से प्रवचन या उपदेश कर सकता है ? (कुतः आ जाता) यह सृष्टि कहां से प्रकट हुई ? (इयं विसृष्टि:) यह विविध प्रकार का सर्ग (कुतः) किस मूल कारण से और क्यों हुआ ? (देवः) यह तेज से चलने वाले सूर्य चन्द्र आदि लोक भी (अस्य विसर्जनेन) इस जगत् को विविध प्रकार से रचने वाले मूलकारण से (अर्वाक्) पश्चात् ही हैं। (अथ कः वेद) तो फिर कौन उस तत्त्व को जानता है ? (यतः) जिससे यह जगत् (आ बभूव) चारों ओर प्रकट हुआ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः प्रजापतिः परमेष्ठी। देवता—भाववृत्तम्॥ छन्दः–१–३ निचृत् त्रिष्टुप्। ४—६ त्रिष्टुप्। ७ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (क:-अद्धा वेद) कौन तत्त्वतः जानता है (कः-इह प्रवोचत्) कौन तत्त्वतः-खोलकर इस विषय में प्रवचन कर सके, कि (कुतः-इयं विसष्टिः कुतः-अजाता) कैसे यह विविध सृष्टि किस निमित्त करण द्वारा प्रादुर्भूत हुई (अस्य विसर्जनेन अर्वाक्-देवा) इस जगत् के मूल कारण का विभागीकरण हो जाने के पीछे उत्पन्न हुए देव अर्थात् विद्वान् जन हैं, उनमें से (अथक:-वेद् यतः-आबभूव) पुनः कौन जान सकता है जिस उपादान कारण से यह सृष्टि प्रादुर्भूत हुई ॥६॥

    विशेष

    ऋषिः–प्रजापतिः परमेष्ठी (सृष्टि से पूर्व स्वस्वरूप में वर्तमान विश्वराट विश्वर चीयता परमात्मा, उपाधिरूप में भाववृत्त का ज्ञाता एवं प्रचारक भी प्रजापतिरूप में प्रसिद्धि प्राप्त विद्वान्) देवता- भाववृत्तम् (वस्तुओं का उत्पत्तिवृत)

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (कः-अद्धा वेद) कस्तत्त्वतो जानीयात् (कः-इह प्र वोचत्) को ह्यस्मिन् विषये प्रकथयेत् (कुतः-इयं विसृष्टिः कुतः-आजाता) कुतो निमित्तकारणात् खल्वियं विविधा सृष्टिः कुत उपादानाच्च प्रादुर्भूता (अस्य विसर्जनेन-अर्वाक्-देवाः) अस्य जगतो विसर्जनात् ‘विसर्जनेन विभक्तिव्यत्ययेन तृतीया पञ्चमीस्थाने’ पश्चादुत्पन्ना विद्वांसः सन्ति (अथ कः-वेद यतः-आबभूव) पुनः को जानीयात्-यत उपादानात् सृष्टिराभूता प्रादुर्भूता ॥६॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Who for certain knows, who here would declare whence this universe has come, whence this variety has emerged? The visionary sages all come after the creation and diversity of it. Who of them would then know whence and why all this has come into existence? Only He, the creator, would know, only He can reveal and declare.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ही विविध सृष्टी कोणत्या निमित्त कारणाने व कोणत्या उपादान कारणाने उत्पन्न होते. या गोष्टीला एखादाच विद्वान यथार्थ रूपात जाणू शकतो. कारण सर्व विद्वान सृष्टी उत्पन्न झाल्यावरच होतात. अर्थात, एखाद्या तत्त्ववेत्त्या योग्याला हे समजू शकते. ॥६॥

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