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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 137 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 137/ मन्त्र 4
    ऋषिः - सप्त ऋषय एकर्चाः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    आ त्वा॑गमं॒ शंता॑तिभि॒रथो॑ अरि॒ष्टता॑तिभिः । दक्षं॑ ते भ॒द्रमाभा॑र्षं॒ परा॒ यक्ष्मं॑ सुवामि ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । त्वा॒ । अ॒ग॒म॒म् । शन्ता॑तिऽभिः । अथो॒ इति॑ । अ॒रि॒ष्टता॑तिऽभिः । दक्ष॑म् । ते॒ । भ॒द्रम् । आ । अ॒भा॒र्ष॒म् । परा॑ । यक्ष्म॑म् । सु॒वा॒मि॒ ते ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ त्वागमं शंतातिभिरथो अरिष्टतातिभिः । दक्षं ते भद्रमाभार्षं परा यक्ष्मं सुवामि ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । त्वा । अगमम् । शन्तातिऽभिः । अथो इति । अरिष्टतातिऽभिः । दक्षम् । ते । भद्रम् । आ । अभार्षम् । परा । यक्ष्मम् । सुवामि ते ॥ १०.१३७.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 137; मन्त्र » 4
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (त्वा) हे रोगिन् ! तुझे (शन्तातिभिः) कल्याणकर उपायों से (अथ-उ-अरिष्टतातिभिः) और न पीड़ित करनेवाले रोगरहित करनेवाले उपायों-से मैं आता हूँ (ते) तेरे लिए (दक्षं भद्रम्) बल और कल्याण को (आभार्षम्) लाया हूँ आभरित करता हूँ (ते यक्ष्मम्) तेरे रोग को (परा सुवामि) दूर करता हूँ ॥४॥

    भावार्थ

    रोगी को चिकित्सक औषध प्रदान करता हुआ आश्वासन भी दे कि मैं ऐसी औषध दे रहा हूँ, जो शान्ति देनेवाली रोग को हटानेवाली हैं, उनके द्वारा बल और कल्याण तेरे अन्दर भरता हूँ और रोग को हरता हूँ ॥४॥

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    विषय

    वैद्य का प्राक्कथन

    पदार्थ

    [१] वैद्य रोगी के पास आता है और कहता है कि (त्वा आगमम्) = मैं तेरे समीप आया हूँ । (शन्तातिभिः) = इन रोग की शान्तिकारक औषधों के साथ (अव्य उ) = और निश्चय से (अरिष्टतातिभिः) = अहिंसा का विस्तार करनेवाली औषधों के साथ । [२] बस, मैं आ गया हूँ और (ते) = तेरे लिए (भद्रम्) = कल्याण व सुख के देनेवाले (दक्षम्) = बल को (आभार्षम्) = प्राप्त कराता हूँ और (ते) = तेरे (यक्ष्मम्) = रोग को परासुवामि दूर करता हूँ । इस प्रकार वैद्य रोगी को उत्साह की प्रेरणा देकर उत्साहित करता है । उसे स्वस्थ मन का बनाकर नीरोग बनाने के लिए यत्नशील होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- वैद्य रोगी को इस प्रकार प्रेरणा देता है कि वह उस प्रेरणा से ही उत्साह सम्पन्न होकर रोगभय से ऊपर उठ जाता है।

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    विषय

    शान्तिदायक मृत्युनाशक उपायों से अन्नादि देने और रोग नाश करने का उपदेश।

    भावार्थ

    मैं (वा) तुझे (शं-तातिभिः) शान्ति सुख देने वाले और (अरिष्ट-तातिभिः) अहिंसाकारी, मृत्यु-नाशक उपायों सहित (आ अगमम्) प्राप्त होता हूं। हे रोगी ! हे मनुष्य, मैं (ते भद्रं दक्षम्) तेरे लिये कल्याणकारी सुखजनक बल और अन्नादि (आभार्षम्) प्राप्त करता हूं। और (ते यक्ष्मम्) तेरे रोग को (परा सुवामि) दूर करता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः सप्त ऋषय एकर्चाः॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:- १, ४, ६ अनुष्टुप्। २, ३, ५, ७ निचृदनुष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (त्वा) हे रोगिन् ! त्वां (शन्तातिभिः-अथ-उ-अरिष्टतातिभिः) शङ्करैस्तथाऽहिंसितकरैः पीडानिवारकैरुपायैः सहाहमागच्छामि “शिवशमरिष्टस्य करे” [अष्टा० ४।४।१४३] (ते) तुभ्यं (दक्षं भद्रम्-आ अभार्षम्) बलं कल्याणमानीतवान् (ते यक्ष्मं परा सुवामि) तव रोगं परा नयामि दूरीकरोमि ॥४॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    I am come with all palliatives and protectives for peace and tranquillity. I bring you auspicious, resistant and regenerative vitality and root out all debility.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    रोग्याला औषध देताना चिकित्सकाने हे आश्वासन द्यावे, की मीही औषधी देत आहे. जी शांत करणारी व रोग हटविणारी आहे, त्यांच्याद्वारे बल व कल्याण तुझ्यात भरतो व रोग नाहीसा करतो. ॥४॥

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