ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 137/ मन्त्र 5
ऋषिः - सप्त ऋषय एकर्चाः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
त्राय॑न्तामि॒ह दे॒वास्त्राय॑तां म॒रुतां॑ ग॒णः । त्राय॑न्तां॒ विश्वा॑ भू॒तानि॒ यथा॒यम॑र॒पा अस॑त् ॥
स्वर सहित पद पाठत्राय॑न्ताम् । इ॒ह । दे॒वाः । त्राय॑ताम् । म॒रुता॑म् । ग॒णः । त्राय॑न्ताम् । विश्वा॑ । भू॒तानि॑ । यथा॑ । अ॒यम् । अ॒र॒पाः । अस॑त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रायन्तामिह देवास्त्रायतां मरुतां गणः । त्रायन्तां विश्वा भूतानि यथायमरपा असत् ॥
स्वर रहित पद पाठत्रायन्ताम् । इह । देवाः । त्रायताम् । मरुताम् । गणः । त्रायन्ताम् । विश्वा । भूतानि । यथा । अयम् । अरपाः । असत् ॥ १०.१३७.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 137; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
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अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इह) इस परिवार में (देवाः) रश्मियाँ (त्रायन्ताम्) रोगी की रक्षा करें (मरुतां गणः) वायुओं का गण भी (त्रायताम्) रक्षा करे (विश्वा भूतानि) सारे पृथिवी आदि भूत (त्रायन्ताम्) रक्षा करें (यथा-अयम्-अरपाः-असत्) जिससे यह रोगरहित हो जावे ॥५॥
भावार्थ
इस परिवार में रोगी की सूर्यकिरणें रक्षा करें, वायुएँ रक्षा करें, सब पृथिवी आदि रक्षा करें, जिससे यह रोगरहित हो जावे ॥५॥
विषय
वैद्य की प्रार्थना
पदार्थ
[१] वैद्य रोगी के लिए यही प्रार्थना करता है कि (इह) = इस स्थिति में (देवा:) = सब अग्नि आदि देव (त्रायन्ताम्) = इसका रक्षण करें। उनकी अनुकूलता से यह स्वास्थ्य लाभ करे। (मरुतां गणः) = प्राणों का गण इसे (त्रायताम्) = रक्षित करे । अर्थात् गहरा श्वास लेता हुआ यह अपने में शक्ति को भरे और अन्दर की वायु को सुदूर फेंकता हुआ यह दोषों को दूर करे। [२] (विश्वा भूतानि) = पृथिवी आदि सब भूत (त्रायन्ताम्) = इसका रक्षण करें। सब पञ्चभूत इसके अनुकूल हों और यह स्वास्थ्य का लाभ करे । (यथा) = जिससे (अयम्) = यह (अरपा:) = दोषरहित शरीरवाला (असत्) = हो ।
भावार्थ
भावार्थ- सूर्यादि सब देवों व प्राणों तथा पञ्चभूतों की अनुकूलता से शरीर निर्दोष हो ।
विषय
रक्षा के उपायों से रक्षा प्राप्ति का उपदेश।
भावार्थ
(इह) इस लोक में (देवाः) ज्ञानशक्ति, देने वाले, विद्वान् धनवान् और तेजस्वी पुरुष और रश्मियें, (त्रायन्ताम्) हमारी रक्षा करें। और (मरुतां गणः त्रायताम्) वायुओं और विद्वान्, बलवान् मनुष्यों का समूह हमारी रक्षा करे। और (विश्वा भूतानि) समस्त पांचों भूत भी (त्रायन्ताम्) उसकी रक्षा करें। (यथा) जिससे (अयम्) यह (अरपाः असत्) रोग और पाप से रहित हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः सप्त ऋषय एकर्चाः॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:- १, ४, ६ अनुष्टुप्। २, ३, ५, ७ निचृदनुष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इह) अस्मिन् परिवारे (देवाः-त्रायन्ताम्) रश्मयो रुग्णं रक्षन्तु (मरुतां गणः-त्रायताम्) वायूनां गणोऽपि रक्षतु (विश्वा भूतानि त्रायन्ताम्) सर्वाणि भूतानि रक्षन्तु (यथा-अयम्-अरपाः-असत्) यथाऽयं रोगरहितो भवेत् ॥५॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May the divinities save us here in body and mind. May the forces of Maruts, air, breeze, wind and even storm protect us. May all forms of nature and living beings protect and promote us so that this body system may be fine, free and immaculate.
मराठी (1)
भावार्थ
परिवारातील रोग्याचे सूर्यकिरणांनी रक्षण करावे. वायूने रक्षण करावे. पृथ्वी वगैरेनीही रक्षण करावे. ज्यामुळे रोगी बरा व्हावा. ॥५॥
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