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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 139 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 139/ मन्त्र 3
    ऋषिः - विश्वावसुर्देवगन्धर्वः देवता - सविता छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    रा॒यो बु॒ध्नः सं॒गम॑नो॒ वसू॑नां॒ विश्वा॑ रू॒पाभि च॑ष्टे॒ शची॑भिः । दे॒व इ॑व सवि॒ता स॒त्यध॒र्मेन्द्रो॒ न त॑स्थौ सम॒रे धना॑नाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रा॒यः॑ । बु॒ध्नः । स॒म्ऽगम॑नः । वसू॑नाम् । विश्वा॑ । रू॒पा । अ॒भि । च॒ष्टे॒ । शची॑भिः । दे॒वःऽइ॑व । स॒वि॒ता । स॒त्यऽध॑र्मा । इन्द्रः॑ । न । त॒स्थौ॒ । स॒म्ऽअ॒रे । धना॑नाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रायो बुध्नः संगमनो वसूनां विश्वा रूपाभि चष्टे शचीभिः । देव इव सविता सत्यधर्मेन्द्रो न तस्थौ समरे धनानाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रायः । बुध्नः । सम्ऽगमनः । वसूनाम् । विश्वा । रूपा । अभि । चष्टे । शचीभिः । देवःऽइव । सविता । सत्यऽधर्मा । इन्द्रः । न । तस्थौ । सम्ऽअरे । धनानाम् ॥ १०.१३९.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 139; मन्त्र » 3
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 27; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (रायः-बुध्नः) ज्ञानधन का बोध करानेवाला परमात्मा तथा प्रकाश से बोध करानेवाला सूर्य (वसूनां सङ्गमनः) प्राणों की संगति करानेवाला (विश्वा रूपा) सब निरूपणीय वस्तुओं को (शचीभिः-अभिचष्टे) वेदवाणियों से प्रकाशित करनेवाला या कर्मों के द्वारा प्रकाशित करनेवाला (देवः-इव सविता सत्यधर्मा) सविता देव सत्यज्ञानवाला परमात्मा या सत्यनियमवाला सूर्य (इन्द्रः-न-धनानाम्) राजा की भाँति धनों का (समरे तस्थौ) सम्प्रापण संग्रह में स्थित है ॥३॥

    भावार्थ

    परमात्मा वेदवाणियों के ज्ञान का दाता सत्यगुणकर्मस्वभाववाला समस्त निरूपणीय वस्तुओं का देनेवाला और प्राणदाता है एवं सूर्य अपने प्रकाश से वस्तुओं का दिखानेवाला प्राणसंचार करानेवाला है, समस्त रूपवाली वस्तुओं का बतानेवाला है, उससे लाभ लेना चाहिये ॥३॥

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    विषय

    धन हमारे हों, नकि हम धनों के

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्र का ‘नृचक्षाः' (रायः बुध्नः) = ऐश्वर्य का आधार बनता है। इसे प्रभु की ओर से सब आवश्यक ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं । (वसूनां संगमन:) = यह सब वसुओं के एकत्रित होने का स्थान बनता है । इसे सब वसु प्राप्त होते हैं । यह (शचीभिः) = अपने प्रज्ञानों से (विश्वारूपा) = सब रूपों का, (रूपवान्) = पदार्थों का (अभिचष्टे) = निरीक्षण करता है। उन चीजों के तत्त्व को समझकर उन पदार्थों का ठीक प्रयोग करता है। इस उचित प्रयोग से यह स्वस्थ रहता है और उन चीजों के अन्दर कभी उलझना नहीं। 'तत्त्वज्ञान' ठीक प्रयोग तथा अनासक्ति के भाव को जगाता है। [२] यह व्यक्ति (देव इव) = उस प्रकाशमय प्रभु की तरह ही (सविता) = निर्माण को करनेवाला होता है। (सत्यधर्मा) = यह सत्य को धारण करता है और (इन्द्रः न) = जितेन्द्रिय के समान (धनानां समरे तस्थौ) = धनों के युद्ध में स्थित होता है । istruggle के द्वारा धनों का विजय करता है, धनों में कभी भी फँसता नहीं । धनों का ही नहीं हो जाता, धनों का गुलाम नहीं बनता ।

    भावार्थ

    भावार्थ-तत्त्वदर्शन से हम संसार के पदार्थों में फँसने से बचे रहते हैं। देव की तरह निर्माण परन्तु उन करनेवाले व सत्य का धारण करनेवाले होते हैं और इन्द्र की तरह धनों का विजय करते हैं । धन हमारे होते हैं, हम धनों के नहीं हो जाते।

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    विषय

    सूर्य के समान धर्माध्यक्ष का वर्णन।

    भावार्थ

    (रायः बुध्नः) ऐश्वर्य का आश्रय, (वसूनां संगमनः) बसी प्रजाओं को एक स्थान पर मिलाने वाला, (शचीभिः) शक्तियुक्त, वाणियों से, किरणों से सूर्य के समान (विश्वा रूपा) समस्त प्रकार के रूपों, रुचिकर पदार्थों को (अभि चष्टे) प्रकाशित करता है। (देवः इव सविता) तेजस्वी सूर्य के समान सबको सन्मार्ग में प्रेरणा करने वाला, (सत्य-धर्मा) सत्य को धारण करने वाला, सत्यधर्मों, व्रतों और नियमों का पालन करने वाला, (इन्द्रः न) मेघों के विदारक विद्युत् या सूर्य के तुल्य ही, (धनानां समरे) ऐश्वर्यों को प्राप्त कराने के कार्य में (तस्थौ) स्थित होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः विश्वावसुर्देवगन्धर्वः॥ देवता—१—३ सविता। ४-६ विश्वावसुः॥ छन्दः–१, २, ४–६ त्रिष्टुप्। ३ विराट् त्रिष्टुप्॥ षडृच सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (रायः-बुध्नः) ज्ञानधनस्य “बोधधनस्य” [यजु० ७।१४ दयानन्दः] बोधयिता “बुध्नः-यो बोधयति सर्वान् पदार्थान् वेदद्वारा सः” [ऋ० १।९६।६ दयानन्दः] परमात्मा तथा प्रकाशेन बोधयिताऽऽदित्यः (वसूनां सङ्गमनः) प्राणानां सङ्गमयिता “प्राणा-वै वसवः” [तै० ३।२।३।३] विश्वा रूपा शचीभिः-अभिचष्टे) विश्वानि सर्वाणि निरूपणीयानि वस्तूनि वेदवाग्भिरभिप्रकाशयति “शची वाङ्नाम” [निघ० १।११] कर्मभिर्वा “शची कर्मनाम” [निघ० २।१] (देवः-इव-सविता सत्यधर्मा) देवः सविता “इवोऽपि दृश्यते-पदपूरणः” [निरु० १।१०] परमात्मा तथा सूर्यः सत्यनियमवान्-अस्ति (इन्द्रः-न धनानां समरे तस्थौ) राजेव धनानां सम्प्रापणे स्थितः-तिष्ठति वा ॥३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The very root and foundation of wealth, power and excellence, giver of health, peace, comfort and security of life, Savita watches, illuminates and inspires every thing of life with its forms and powers of action. Like omnificent divinity itself, the very essence and spirit of truth and Dharma, Savita abides by us in our battles for life’s wealth, beauty and excellence.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा वेदवाणीद्वारे ज्ञानदाता, सत्यगुणकर्मस्वभावयुक्त व संपूर्ण दर्शनीय वस्तूंचा दाता व प्राणदाता आहे व सूर्य आपल्या प्रकाशाने वस्तूंना दर्शविणारा, प्राणसंचार करविणारा आहे. संपूर्ण रूप दाखविणारा आहे. त्यापासून लाभ घेतला पाहिजे. ॥३॥

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