ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 139/ मन्त्र 5
ऋषिः - विश्वावसुर्देवगन्धर्वः
देवता - सविता
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
वि॒श्वाव॑सुर॒भि तन्नो॑ गृणातु दि॒व्यो ग॑न्ध॒र्वो रज॑सो वि॒मान॑: । यद्वा॑ घा स॒त्यमु॒त यन्न वि॒द्म धियो॑ हिन्वा॒नो धिय॒ इन्नो॑ अव्याः ॥
स्वर सहित पद पाठवि॒श्वऽव॑सुः । अ॒भि । तत् । नः॒ । गृ॒णा॒तु॒ । दि॒व्यः । ग॒न्ध॒र्वः । रज॑सः । वि॒ऽमानः । यत् । वा॒ । घ॒ । स॒त्यम् । उ॒त । यत् । न । वि॒द्म । धियः॑ । हि॒न्वा॒नः । धियः॑ । इत् । नः॒ । अ॒व्याः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वावसुरभि तन्नो गृणातु दिव्यो गन्धर्वो रजसो विमान: । यद्वा घा सत्यमुत यन्न विद्म धियो हिन्वानो धिय इन्नो अव्याः ॥
स्वर रहित पद पाठविश्वऽवसुः । अभि । तत् । नः । गृणातु । दिव्यः । गन्धर्वः । रजसः । विऽमानः । यत् । वा । घ । सत्यम् । उत । यत् । न । विद्म । धियः । हिन्वानः । धियः । इत् । नः । अव्याः ॥ १०.१३९.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 139; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
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अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(विश्वावसुः) विश्व को बसानेवाला या विश्व में बसनेवाला (दिव्यः) मोक्षधाम का अधिपति (गन्धर्वः) वेदवाणी का धारक (रजसः-विमानः) लोकमात्र का निर्माणकर्ता परमात्मा (नः) हमें (तत्) उसका (अभि गृणातु) उपदेश करे (यत्-वा-घ-सत्यम्) जो कि सत्य ज्ञान हो (यत्-न विद्मः) जिसको हम न जानें (धियः-हिन्वानः) बुद्धियों को प्रेरित करता हुआ (नः-धियः-इत्-अव्याः) वह तू हमारी बुद्धियों की रक्षा कर ॥५॥
भावार्थ
परमात्मा विश्व को बसानेवाला मोक्षधाम का अधिपति, वेदवाणी का धारण करनेवाला, लोकमात्र का निर्माणकर्ता है, उससे सत्य ज्ञान व जिस बात को हम न जानते हों, उस बात का उपदेश लेने और बुद्धि की रक्षा करने की प्रार्थना करनी चाहिये ॥५॥
विषय
सत्य परन्तु अज्ञेय
पदार्थ
[१] (विश्वावसुः) = सम्पूर्ण वसुओं के स्वामी प्रभु (नः) = हमारे लिए (तत्) = उस ज्ञान को (अभिगृणातु) = पर व अपर दोनों रूप में उपदिष्ट करें, हमारे लिये अपरा व परा दोनों विद्याओं का ही ज्ञान दें। प्रभु कृपा से हमें प्रकृति के ज्ञान के साथ आत्मज्ञान भी प्राप्त हो। वे प्रभु जो कि (दिव्यः) = सदा अपने प्रकाशमय स्वरूप में होनेवाले हैं। (गन्धर्वः) = ज्ञान की वाणियों का धारण करनेवाले हैं। (रजसः विमानः) = रजोगुण का विशेषरूप से हमारे में निर्माण करनेवाले हैं, जिस रजोगुण के विशिष्ट निर्माण से हम अकाम भी नहीं होते और कामात्मा भी नहीं बन जाते । [२] (यद् वा घा) = जो प्रभु निश्चय से (सत्यम्) = सत्य हैं, त्रिकालाबाधित सत्तावाले हैं, (उत) = परन्तु (यत् न विद्म) = जिन्हें हम जानते नहीं, जो पूर्णरूप से हमारे ज्ञान का विषय नहीं बनते, वे प्रभु (धियः हिन्वानः) = हमारी बुद्धियों को प्रेरित करते हैं । हे प्रभो ! आप (नः धियः) = हमारी बुद्धियों का (इत् अव्याः) = निश्चय से रक्षण करिये। इन बुद्धियों के रक्षित होने पर ही हमारे कर्म भी उत्तम हो सकेंगे।
भावार्थ
भावार्थ-वे सत्य व अज्ञेय प्रभु हमें ज्ञान दें। वे प्रभु हमारी बुद्धियों का रक्षण करें।
विषय
दिव्य गन्धर्व परमेश्वर का वर्णन। उससे ज्ञान की याचना।
भावार्थ
(दिव्यः गन्धर्वः) ज्ञानमय, समस्त ज्ञान-वाणियों को धारण करने वाला, प्रभु परमेश्वर (रजसः विमानः) समस्त लोकों को विशेष रूप से जानने और बनाने वाला है। वह (नः तत् गृणातु) हमें उस परम सत्य-ज्ञान का उपदेश करे (यत् वा सत्यम्) जो सत्य है और (यत् न विद्म) जिसको हम नहीं जानते। वही हमारी (धियः हिन्वानः) बुद्धियों को प्रेरित करता है। प्रभो ! वह ही तू (नः धियः इत् अव्याः) हमारी बुद्धियों और सत्कर्मों की रक्षा कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः विश्वावसुर्देवगन्धर्वः॥ देवता—१—३ सविता। ४-६ विश्वावसुः॥ छन्दः–१, २, ४–६ त्रिष्टुप्। ३ विराट् त्रिष्टुप्॥ षडृच सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(विश्वावसुः-दिव्यः) विश्ववासको मोक्षधामाधिपतिः (गन्धर्वः-रजसः-विमानः) वेदवाचो धारयिता, लोकस्य निर्माता (नः-तत्-अभि-गृणातु) अस्मान् तदुपदिशतु (यत्-वा घ सत्यम्) यच्च खलु-सत्यज्ञानं (यत्-न विद्म) यद्वयं न जानीमः (धियः-हिन्वानः) बुद्धीः प्रेरयन् (नः-धियः-इत्-अव्याः) स त्वमस्माकं बुद्धीः रक्षेः ॥५॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May the spirit of the universe, shelter home of the world and world’s wealth and knowledge, divine sustainer of the universe and universal wisdom, maker and measurer of the universe in space and time, enlighten us of what is the truth of existence, what we do not know. May he inspire our vision and intelligence, and protect and promote our intelligence, will and actions.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा विश्वाला वसविणारा, मोक्षधामाचा अधिपती, वेदवाणीला धारण करणारा, लोकांचा (गोलांचा) निर्माणकर्ता आहे. त्याच्याकडून सत्य ज्ञान व ज्या गोष्टी आम्ही जाणत नाही त्या गोष्टींचा उपदेश व बुद्धीचे रक्षण यासाठी प्रार्थना केली पाहिजे. ॥५॥
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