ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 173/ मन्त्र 3
इ॒ममिन्द्रो॑ अदीधरद्ध्रु॒वं ध्रु॒वेण॑ ह॒विषा॑ । तस्मै॒ सोमो॒ अधि॑ ब्रव॒त्तस्मा॑ उ॒ ब्रह्म॑ण॒स्पति॑: ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मम् । इन्द्रः॑ । अ॒दी॒ध॒र॒त् । ध्रु॒वम् । ध्रु॒वेण॑ । ह॒विषा॑ । तस्मै॑ । सोमः॑ । अधि॑ । ब्र॒व॒त् । तस्मै॑ । ऊँ॒ इति॑ । ब्रह्म॑णः । पतिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इममिन्द्रो अदीधरद्ध्रुवं ध्रुवेण हविषा । तस्मै सोमो अधि ब्रवत्तस्मा उ ब्रह्मणस्पति: ॥
स्वर रहित पद पाठइमम् । इन्द्रः । अदीधरत् । ध्रुवम् । ध्रुवेण । हविषा । तस्मै । सोमः । अधि । ब्रवत् । तस्मै । ऊँ इति । ब्रह्मणः । पतिः ॥ १०.१७३.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 173; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमेश्वर (ध्रुवेण हविषा) स्थिर उपहाररूप से (इमं ध्रुवम्) इस राष्ट्रपद अधिकार को (अदीधरत्) तेरे में स्थापित करता है (तस्मै सोमः-अधिब्रवत्) इस कार्य के लिए तुझे पुरोहित ब्राह्मण अधिकारपूर्वक आज्ञा करता है कि राज्य कर (तस्मै-बृहस्पतिः) उसके लिए-उसके ग्रहण करने के लिए वेदज्ञ ब्रह्मा भी आज्ञापित करता है ॥३॥
भावार्थ
परमेश्वर ने अपनी कृपा से राज्याधिकार दिया है, जिससे कि पुरोहित राज करने की अनुमति देता है और राजसूय का ब्रह्मा भी उसे राज्य करने की आज्ञा देता है ॥३॥
विषय
'शान्त ज्ञानी ब्राह्मणों से प्रेरित' राजा
पदार्थ
[१] (इन्द्रः) = एक जितेन्द्रिय राजा (ध्रुवम्) = मर्यादा में चलनेवाले (इमम्) = इस प्रजाजन को (ध्रुवेण हविषा) = मर्यादा में ग्रहण किये गये कर के द्वारा (अदीधरत्) = धारण करता है । राजा के लिये आवश्यक है कि - [क] उचित शासन व्यवस्था के द्वारा प्रजा को मर्यादित जीवनवाला बनाये [ध्रुवं] । [ख] स्वयं जितेन्द्रिय वृत्तिवाला हो [इन्द्रः] । [ग] कर का ग्रहण पूर्ण मर्यादा के अनुसार हो । भ्रमर जैसे फूल से रस को लेता है, फूल को विकृत नहीं होने देता, इसी प्रकार राजा अल्पाल्प कर ही ग्रहण करना [ध्रुवेण हविषा] । [२] (तस्मै) = इस राजा के लिये (सोमः) = शान्त वृत्ति का ब्राह्मण [सोमो वै ब्राह्मण: तां० २३ । १६ । ५] (अधिब्रवत्) = आधिक्येन उपदेश देनेवाला हो । (उ) = और (तस्मा) = उस राजा के लिये (ब्रह्मणस्पतिः) = वेदज्ञान का स्वामी उपदेश देनेवाला हो । सोम और ब्रह्मणस्पतिः शान्त व ज्ञानी ब्राह्मण, राजा को सदा उचित परामर्श देनेवाले हों ।
भावार्थ
भावार्थ - राजा सदा उचित कर लेनेवाला हो । शान्त ज्ञानी ब्राह्मण इसके परामर्शदाता हों।
विषय
उसको उत्तम वेदज्ञ का उपदेश।
भावार्थ
(इन्द्रः) तेजस्वी पुरुष ही, (इमं) इसके (ध्रुवः) स्थिर राज्य को (ध्रुवेण हविषा) स्थायी साधनों से (अदीधरत्) धारण करे। (तस्मै) उसको (सोमः अधि व्रवत्) उत्तम विद्वान् उपदेश करे और (तस्मै ब्रह्मणः पतिः) उसको ही ब्रह्म अर्थात् वेद का ज्ञानी पुरुष भी (अधि व्रवत्) उपदेश करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिध्रुवः॥ देवता—राज्ञः स्तुतिः॥ छन्दः—१ , ३–५ अनुष्टुप्। २ भुरिगनुष्टुप्। ६ निचृदनुष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमेश्वरः (ध्रुवेण हविषा) स्थिरेण-उपहारदानेन (इमं ध्रुवम्) इमं राष्ट्राधिकारम् (अदीधरत्) त्वयि तुभ्यं वा स्थापितवान्-स्थापयति (तस्मै सोमः-अधिब्रवत्) एतत्कार्याय-राष्ट्राधिकाराय त्वां राज्याधिकारे नियोजयिता पुरोहितो ब्राह्मणः-अधि वदति-अधिकारपूर्वकमाज्ञापयति राज्यं कुरु-इति (तस्मै-उ बृहस्पतिः) तस्मै राज्याधिकाराय तद्ग्रहणाय वेदज्ञो ब्रह्माऽपि साधिकारमाज्ञापयति यद्-राज्याधिकारं स्वीकुरु ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This common wealth, Indra, lord all potent, is committed to you. And this common wealth, the ruler holds and maintains steady, firm, inviolable, with the homage gift of steady, unshaken and unshakable rule and governance. O Ruler, to you and for this Rashtra, Soma Brahmanaspati, the divine, peaceable Advisor who knows, observes and communicates the wisdom of universal vision and conscience, speaks, and to this he holds you committed.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वरी कृपेने राज्याधिकार मिळालेला आहे. त्यामुळे पुरोहित राजाला राज्य करण्याची अनुमती देतो व राजसूय यज्ञातील ब्रह्माही त्याला राज्य करण्याची आज्ञा देतो. ॥३॥
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