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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 173 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 173/ मन्त्र 4
    ऋषिः - ध्रुवः देवता - राज्ञःस्तुतिः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    ध्रु॒वा द्यौर्ध्रु॒वा पृ॑थि॒वी ध्रु॒वास॒: पर्व॑ता इ॒मे । ध्रु॒वं विश्व॑मि॒दं जग॑द्ध्रु॒वो राजा॑ वि॒शाम॒यम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ध्रु॒वा । द्यौः । ध्रु॒वा । पृ॒थि॒वी । ध्रु॒वासः॑ । पर्व॑ताः । इ॒मे । ध्रु॒वम् । विश्व॑म् । इ॒दम् । जग॑त् । ध्रु॒वः । राजा॑ । वि॒शाम् । अ॒यम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ध्रुवा द्यौर्ध्रुवा पृथिवी ध्रुवास: पर्वता इमे । ध्रुवं विश्वमिदं जगद्ध्रुवो राजा विशामयम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ध्रुवा । द्यौः । ध्रुवा । पृथिवी । ध्रुवासः । पर्वताः । इमे । ध्रुवम् । विश्वम् । इदम् । जगत् । ध्रुवः । राजा । विशाम् । अयम् ॥ १०.१७३.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 173; मन्त्र » 4
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ध्रुवा द्यौः) द्युलोक ध्रुव है (पृथिवी-ध्रुवा) पृथिवी ध्रुवा (इमे पर्वताः-ध्रुवासः) ये पर्वत ध्रुव हैं (इदं विश्वं जगत्-ध्रुवम्) यह सारा जगत् ध्रुव है, नियम में वर्त्तमान है (विशाम्-अयं राजा ध्रुवः) प्रजाओं का यह राजा ध्रुव है, इसलिए तू भी ध्रुव हो ॥४॥

    भावार्थ

    सब वस्तुओं का आधार जगत् नियम में ध्रुव है, स्थिर है, नक्षत्र एवं ग्रहमण्डल का आधार द्युलोक ध्रुव है, मनुष्य पशु पक्षी वृक्ष एवं पाषाणादि का आधार पृथिवी ध्रुव है, ऐसे ही प्रजाओं का आधार राजा भी ध्रुव नियम में रहना चाहिये ॥४॥

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    विषय

    ध्रुव राजा

    पदार्थ

    [१] (द्यौः ध्रुवा) = द्युलोक ध्रुव हो, मर्यादा से विचलित होनेवाला नहीं। इसी प्रकार (पृथिवी ध्रुवा) = यह पृथिवी भी अपनी मर्यादा में गति कर रही है । (इमे पर्वताः ध्रुवासः) = ये पर्वत भी ध्रुव हैं, अपने स्थान से डिगनेवाले नहीं हैं। [२] (इदं विश्वं जगत्) = यह सम्पूर्ण जगत् भी (ध्रुवम्) = अपने-अपने मार्ग से विचलित होनेवाला नहीं। प्रत्येक पिण्ड अपने मार्ग में स्थिर है। इसी प्रकार (अयम्) = यह (विशाम्) = प्रजाओं का (राजा) = रञ्जन करनेवाला शासक भी (ध्रुवः) = न डिगनेवाला हो । स्वयं मर्यादित जीवनवाला व सबको मर्यादा में चलानेवाला होता हुआ यह राज्य के आसन पर ध्रुवता से आसीन हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- द्युलोक, पृथ्वीलोक, पर्वत व अन्य सब संसार के पिण्ड ध्रुव हैं। यह राजा भी ध्रुव हो ।

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    विषय

    प्रजाओं के धारक राजा को ध्रुव होने का उपदेश।

    भावार्थ

    (ध्रुवा द्यौः) सूर्य ध्रुव, स्थिर है, (पृथिवी ध्रुवा) पृथिवी भी ध्रुव, स्थिर है, अर्थात् वह जगत् को धारण करने में समर्थ है। और (इमे पर्वताः ध्रुवासः) ये पर्वत भी स्थिर हैं। (इदं विश्वं जगत् ध्रुवं) यह समस्त जगत् भी ध्रुव, स्थिर है। (अयम् राजा विशाम् ध्रुवः) यह राजा भी प्रजाओं के बीच स्थिर एवं उनको धारण करने वाला हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिध्रुवः॥ देवता—राज्ञः स्तुतिः॥ छन्दः—१ , ३–५ अनुष्टुप्। २ भुरिगनुष्टुप्। ६ निचृदनुष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ध्रुवा द्यौः) द्यौः ध्रुवास्ति (पृथिवी-ध्रुवा) पृथिवी ध्रुवा (इमे पर्वताः-ध्रुवासः) एते पर्वताः ध्रुवाः सन्ति (इदं विश्वं जगत्-ध्रुवम्) इदं सर्वं जगत्-ध्रुवं नियमे वर्त्तमानम् (विशाम्-अयं राजा ध्रुवः) प्रजानामयं राजापि ध्रुवो भवेत्-तस्मात्त्वं ध्रुवो भव ॥४॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Firm is heaven, firm is the earth, firm are these mountains. Firm is this universe which is ever on the move, steadily and balanced at the optimum. Firm is this ruler of the people, steady, dynamic with optimum balance of constant movement.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सर्व वस्तूंचा आधार असलेले जग नियमाने ध्रुव, स्थिर आहे. नक्षत्र व ग्रहमंडलाचा आधार द्युलोक ध्रुव आहे. मनुष्य, पशू, पक्षी, वृक्ष व पाषाण इत्यादींचा आधार पृथ्वी ध्रुव आहे. तसेच प्रजेचा आधार राजाही नियमाने ध्रुव असला पाहिजे. ॥४॥

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