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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 173 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 173/ मन्त्र 5
    ऋषिः - ध्रुवः देवता - राज्ञःस्तुतिः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    ध्रु॒वं ते॒ राजा॒ वरु॑णो ध्रु॒वं दे॒वो बृह॒स्पति॑: । ध्रु॒वं त॒ इन्द्र॑श्चा॒ग्निश्च॑ रा॒ष्ट्रं धा॑रयतां ध्रु॒वम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ध्रु॒वम् । ते॒ । राजा॑ । वरु॑णः । ध्रु॒वम् । दे॒वः । बृह॒स्पतिः॑ । ध्रु॒वम् । ते॒ । इन्द्रः॑ । च॒ । अ॒ग्निः । च॒ । रा॒ष्ट्रम् । धा॒र॒य॒ता॒म् । ध्रु॒वम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ध्रुवं ते राजा वरुणो ध्रुवं देवो बृहस्पति: । ध्रुवं त इन्द्रश्चाग्निश्च राष्ट्रं धारयतां ध्रुवम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ध्रुवम् । ते । राजा । वरुणः । ध्रुवम् । देवः । बृहस्पतिः । ध्रुवम् । ते । इन्द्रः । च । अग्निः । च । राष्ट्रम् । धारयताम् । ध्रुवम् ॥ १०.१७३.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 173; मन्त्र » 5
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ते) हे राजन् ! तेरा राष्ट्र (वरुणः) गुण से प्रकाशित पुरोहित (ध्रुवं धारयताम्) राष्ट्र को ध्रुव धारण करता है (बृहस्पतिः-देवः-ध्रुवम्) ब्रह्मा तेरे राष्ट्र को ध्रुव धारण करता है (ते राष्ट्रम्) तेरे राष्ट्र को (इन्द्रः-च ध्रुवम्) सेनाध्यक्ष ध्रुव धारण करे (अग्निः-च ध्रुवम्) सभाध्यक्ष या विद्वान् तेरे राष्ट्र को ध्रुव धारण करता है, हे राजन् ! तू अकेला नहीं है, ये सब तेरे सहायक हैं ॥५॥

    भावार्थ

    राजा के साथ पुरोहित, ब्रह्मा, सेनाध्यक्ष और  सभाध्यक्ष राजसूययज्ञ में यज्ञ को पूर्ण करते हैं और सदा राजा का साथ देनेवाले होते हैं ॥५॥

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    विषय

    राजा-कर्त्तव्य

    पदार्थ

    [१] पुरोहित उपस्थित प्रजा को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि (ते राष्ट्रम्) = आपके इस राष्ट्र को राजा चारों वर्णों को अपने-अपने कार्यों में व्यवस्थापित करनेवाला यह राजा (वरुणः) = पाप का निवारण करनेवाला होता हुआ (ध्रुवं धारयताम्) = ध्रुवता से धारण करे। [२] यह (राजा देव:) = ज्ञान प्रसार से राष्ट्र को दीप्त करनेवाला होता हुआ तथा (बृहस्पतिः) = स्वयं ऊँचे से ऊँचे ज्ञान का पति बनता हुआ (ध्रुवम्) = ध्रुवता से धारण करे। [३] (ते) = आपके इस राष्ट्र को (इन्द्रः च अग्निः च) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाला तथा राष्ट्र के अन्दर भी बुराइयों को भस्म करनेवाला यह राजा (ध्रुवम्) = ध्रुवता से राष्ट्र का धारण करे।

    भावार्थ

    भावार्थ - राजा का कर्त्तव्य है कि- [क] सब वर्णों को स्वधर्म में स्थापित करे, [ख] पाप का निवारण करे, [ग] शिक्षा का प्रसार करे, [घ] शत्रुओं से राष्ट्र का रक्षण करे, [ङ] बुराइयों को भस्म करने के लिये यत्नशील हो । राष्ट्र धारण के लिये ये सब बातें आवश्यक हैं।

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    विषय

    राष्ट्र के धारण करने वाले पुरुष का वर्णन।

    भावार्थ

    हे राजा प्रजाजन ! (ते राष्ट्रं) तेरे राष्ट्र को (राजा वरुणः) दीप्तिमान्, तेजस्वी, सर्वश्रेष्ठ पुरुष, (धारयताम्) धारण करे। (बृहस्पतिः देवः ध्रुवं धारयताम्) बड़े बल, वा वेद-ज्ञान का पालक सेनापति वा ब्राह्मण, विद्वान् पुरुष तेरे राष्ट्र को धारण करे। (इन्द्रः च अग्निः च) तेजस्वी और स्वप्रकाश तथा शत्रु-सन्तापक जन भी (ते राष्ट्र ध्रुवं धारयताम्) तेरे राष्ट्र को स्थिर रूप से धारण करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिध्रुवः॥ देवता—राज्ञः स्तुतिः॥ छन्दः—१ , ३–५ अनुष्टुप्। २ भुरिगनुष्टुप्। ६ निचृदनुष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ते) हे राजन् ! तव राष्ट्रम् (वरुणः-राजा ध्रुवं धारयताम्) गुणेन प्रकाशमानः-पुरोहितो ध्रुवं धारयति (बृहस्पतिः-देवः ध्रुवम्) ब्रह्मा देवः-ध्रुवं धारयति (ते राष्ट्रम्) तव राष्ट्रम् (इन्द्रः-च ध्रुवम्) सेनाध्यक्षो ध्रुवं धारयति (अग्निः-च ध्रुवम्) सभाध्यक्षो विद्वांश्च ध्रुवं धारयति, त्वं न खल्वेकाकी हि एते तव सहायकाः सन्ति ॥५॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    For you, the brilliant ruling Varuna, head of law and justice, firmly maintains the state of law and order. Brilliant and generous Brhaspati, chief advisor, with supreme vision and knowledge of the nation’s genius, firmly maintains the character and culture of the nation.$For you, the commander of the nation’s forces, Indra, firmly maintains the peace and protection of the state. For you does Agni, enlightened leader of education and research, maintain the system of education and employment. May all these chiefs help you maintain the Rashtra firm, dynamic, steady and inviolable.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजाबरोबर पुरोहित, ब्रह्मा, सेनाध्यक्ष व सभाध्यक्ष राजसूर्य यज्ञ पूर्ण करतात व सदैव राजाला साथ देतात. ॥५॥

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