ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 173/ मन्त्र 6
ऋषिः - ध्रुवः
देवता - राज्ञःस्तुतिः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
ध्रु॒वं ध्रु॒वेण॑ ह॒विषा॒भि सोमं॑ मृशामसि । अथो॑ त॒ इन्द्र॒: केव॑ली॒र्विशो॑ बलि॒हृत॑स्करत् ॥
स्वर सहित पद पाठध्रु॒वम् । ध्रु॒वेण॑ । ह॒विषा॑ । अ॒भि । सोम॑म् । मृ॒शा॒म॒सि॒ । अथो॒ इति॑ । ते॒ । इन्द्रः॑ । केव॑लीः । विशः॑ । ब॒लि॒ऽहृतः॑ । क॒र॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
ध्रुवं ध्रुवेण हविषाभि सोमं मृशामसि । अथो त इन्द्र: केवलीर्विशो बलिहृतस्करत् ॥
स्वर रहित पद पाठध्रुवम् । ध्रुवेण । हविषा । अभि । सोमम् । मृशामसि । अथो इति । ते । इन्द्रः । केवलीः । विशः । बलिऽहृतः । करत् ॥ १०.१७३.६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 173; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 6
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ध्रुवेण हविषा) स्थिर उपहार के द्वारा (ध्रुवं सोमम्) राजसूययज्ञ में तुझे स्थिर स्तोतव्य निष्पन्न संस्कृत करने योग्य राजा को (अभि मृशामसि) आशीर्वाददानार्थ स्पर्श करते हैं (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (ते) तेरे लिए (केवलीः-विशः) अनन्यभक्त प्रजा को (बलिहृतः-करत्) उपहार देनेवाली कर देनेवाली बनाता है ॥६॥
भावार्थ
राजसूययज्ञ में जब राजा को अभिषिक्त कर दिया जाता है, तो उसे स्थिर उपहार दिया जाना चाहिये और विद्वान् लोग अपने आशीर्वाद का हाथ उस पर रखते हैं, परमात्मा उसके लिए भक्त प्रजा कर देनेवाली उपहार देनेवाली बनाता है ॥६॥
विषय
राजा व प्रजा का सम्पर्क
पदार्थ
[१] पुरोहित प्रजा से ही कहता है कि ध्रुवम् इस मर्यादा में चलनेवाले (अभिसोमम्) = [उमया ब्रह्मविद्यया सहितः सोमः ] ब्रह्मज्ञानी की ओर जानेवाले, अर्थात् ब्रह्मज्ञानी के परामर्श से कार्य करनेवाले इस राजा के (ध्रुवेण हविषा:) = मर्यादित स्थिर रूप से दिये जानेवाले कर से (मृशामसि) = सम्पर्क में आते हैं। कर को लेकर इस राजा के समीप उपस्थित होते हैं । [२] अब अन्त में राजा से पुरोहित कहता है कि (इन्द्रः) = वह परमैश्वर्यशाली प्रभु (विशः) = इन प्रजाओं को (केवली: ते) = सिर्फ तेरा (करत्) = करे। ये प्रजाएँ शुद्ध तेरे ही शासन में हों। (अथ उ) = और अब निश्चय से इन्हें तेरे लिये (बलिहृतः करत्) = कर का देनेवाला करे। ये प्रजाएँ स्वयं प्रसन्नता से तुझे कर देनेवाली हों।
भावार्थ
सम्पूर्ण सूक्त आदर्श राजा का चित्रण करता है। यह राजा आक्रान्ता शत्रुओं पर आक्रमण करके देश का रक्षण करता है, सो 'अभीवर्त' कहलाता है। इस 'अभीवर्त' ऋषि का ही अगला सूक्त है—
विषय
राजा के सहयोगी बलाध्यक्ष का कर्त्तव्य।
भावार्थ
हम (ध्रुवेण हविषा) स्थायी साधन से ही (ध्रुवं सोमं) स्थायी शासक को (अभि मृशामसि) विचार पूर्वक प्राप्त करें। हे राजन् ! (इन्द्रः) शत्रुहन्ता वीर पुरुष (अथो) अनन्तर, (ते विशः) तेरी प्रजाओं को (केवलीः) केवल तेरी ही प्रजाएं, और (ते बलि-हृतः) तेरे लिये कर देने वाली (करत्) करे। इत्येकविंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिध्रुवः॥ देवता—राज्ञः स्तुतिः॥ छन्दः—१ , ३–५ अनुष्टुप्। २ भुरिगनुष्टुप्। ६ निचृदनुष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ध्रुवेण हविषा) स्थिरेण-उपहारेण (ध्रुवं सोमम्-अभि मृशामसि) त्वां स्थिरं स्तोतव्यं राजसूये सम्पादितं राजानम्, आशीर्वाद-दानरूपेऽभिस्पृशामः (अथ-उ) अथ-च (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमेश्वरः (ते केवलीः-विशः-बलिहृतः-करत्) तुभ्यं केवलीरनन्याः प्रजाः करदात्रीः-उपहारदात्रीः सम्पादयति ॥६॥
इंग्लिश (1)
Meaning
With steady and undisturbed will and homage we accept, honour and support the firm, steady and unshakable Soma Ruler dedicated to peace and progress. May Indra, omnipotent ruler of the universe, enlighten and commit the people solely to the nation and the ruler so that they pay their due share of homage and gifts of havi for the yajnic governance of the common-wealth. (Let no one neglect the payment of taxes.)
मराठी (1)
भावार्थ
राजसूय यज्ञात जेव्हा राजाला अभिषिक्त केले जाते तेव्हा त्याला स्थिर उपहार दिला पाहिजे. विद्वान लोक आपल्या आशीर्वादाचा हात त्याच्यावर ठेवतात. परमात्मा त्याल भक्तिवान व कर देणारी प्रजा देतो. ॥६॥
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