ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 59/ मन्त्र 4
ऋषिः - बन्ध्वादयो गौपायनाः
देवता - निर्ऋतिः सोमाश्च
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
मो षु ण॑: सोम मृ॒त्यवे॒ परा॑ दा॒: पश्ये॑म॒ नु सूर्य॑मु॒च्चर॑न्तम् । द्युभि॑र्हि॒तो ज॑रि॒मा सू नो॑ अस्तु परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥
स्वर सहित पद पाठमो इति॑ । सु । नः॒ । सो॒म॒ । मृ॒त्यवे॑ । परा॑ । दाः॒ । पश्ये॑म । नु । सूर्य॑म् । उ॒त्ऽचर॑न्तम् । द्युऽभिः॑ । हि॒तः । ज॒रि॒मा । सु । नः॒ । अ॒स्तु॒ । प॒रा॒ऽत॒रम् । सु । निःऽऋ॑तिः । जि॒ही॒ता॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
मो षु ण: सोम मृत्यवे परा दा: पश्येम नु सूर्यमुच्चरन्तम् । द्युभिर्हितो जरिमा सू नो अस्तु परातरं सु निॠतिर्जिहीताम् ॥
स्वर रहित पद पाठमो इति । सु । नः । सोम । मृत्यवे । परा । दाः । पश्येम । नु । सूर्यम् । उत्ऽचरन्तम् । द्युऽभिः । हितः । जरिमा । सु । नः । अस्तु । पराऽतरम् । सु । निःऽऋतिः । जिहीताम् ॥ १०.५९.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 59; मन्त्र » 4
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे शान्त परमात्मन् ! (मा-उ सु नः-मृत्यवे परादाः) हमें शीघ्र मृत्यु के लिए मत छोड़-मत दे (सूर्यम्-उच्चरन्तं नु पश्येम) जगत् के अन्दर हम उदय होते हुए सूर्य को देखते रहें (द्युभिः-हितः-जरिमा नः-सु-अस्तु) आगामी दिनों से प्रेरित होनेवाला जराभाव-जीर्णस्वरूप, सुगमता-सुखपूर्वक बीते (परातरं……) पूर्ववत् ॥४॥
भावार्थ
मनुष्य को ऐसा आचरण करना चाहिए, जिससे कि शीघ्र मृत्यु न हो और आगे आनेवाली जरावस्था भी सुख से बीते तथा अपने जीवनकाल में सूर्य को देखते रहें अर्थात् नेत्र आदि इन्द्रियशक्तियाँ न्यून न हों और कृच्छ्र आपत्ति भी दूर रहे ॥४॥
विषय
निर्ऋति और सोम। विद्वान् के कर्त्तव्य। वह अन्यों को कष्टों से बचावे। प्रभु हमें प्रकृति के तमोमय बंन्धन से मुक्त रखें।
भावार्थ
हे (सोम) उत्तम मार्ग में चलाने वाले विद्वन् ! हे शासक ! प्रभो ! हे वीर्य ! तू (नः मृत्यवे मा सु परा दाः) हमें मृत्यु प्राप्त करने के लिये कभी मत छोड़, मौत के मुंह में मत त्याग। हम (सूर्यं उत् च नु पश्येम) उदय होते, ऊपर आकाश में जाते सूर्य को सदा देखें। और (द्युभिः) दिनों वा प्रकाशों से (नः जरिमा सुहितः अस्तु) हमारी वृद्ध-अवस्था भी सुखदायक हितकारी हो। और (निर्ऋतिः परातरम्, सु जिहीताम्) कष्ट की दशा खूब अच्छी प्रकार से दूर रहे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बन्ध्वादयो गौपायनाः। देवता—१—३ निर्ऋतिः। ४ निर्ऋतिः सोमश्च। ५, ६ असुनीतिः। लिङ्गोक्ताः। ८, ९, १० द्यावापृथिव्यौ। १० द्यावापृथिव्याविन्द्रश्च॥ छन्दः– १ विराट् त्रिष्टुप्। २, ४–६ निचृत् त्रिष्टुप्। ३, ७ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ८ भुरिक् पंक्तिः। ९ जगती। १० विराड् जगती॥ दशर्चं सूक्तम्॥
विषय
मृत्यु से ग्रस्त न होना
पदार्थ
[१] हे (सोम) = शान्त प्रभो! आप (नः) = हमें मृत्यवे मृत्यु के लिये (मा उ सु परादाः) = मत ही दे डालिये। आपकी कृपा से हम मृत्यु के शिकार न हों, दीर्घजीवनवाले बनें। इस दीर्घ जीवन के लिये (नु) = निश्चय से (उच्चरन्तम्) = ऊपर आकाश में गति करते हुए (सूर्यम्) = सूर्य को (पश्येम)= हम देखनेवाले बनें। यह ‘सूर्याभिमुख होकर ध्यान में बैठना और सूर्य किरणों को छाती पर लेना' हमारे स्वास्थ्य का कारण बनेगा। 'हिरण्यपाणि' सूर्य हमारे शरीरों में स्वर्ण को संचरित कर रहा होगा। [२] (द्युभिः) = दिनों से (हितः) = स्थापित किया हुआ (जरिमा) = बुढ़ापा (नः) = हमारे लिये (सु अस्तु) = उत्तम ही हो, यह जीर्णता का कारण न बने। हम वृद्ध [= बढ़े हुए] बनें, न कि जीर्ण। एक-एक दिन के बीतने के साथ आयुष्य तो काल के दृष्टिकोण से कम और कम होता ही है, परन्तु हमारी शक्तियाँ जीर्ण न हो जाएँ। (निर्ऋतिः) = दुर्गति (सु) = अच्छी प्रकार (परातरम्) = दूर और खूब ही दूर (जिहीताम्) = चली जाए। हमारी स्थिति अच्छी ही हो, यह होगी तभी जब कि हम जीर्ण न होंगे। सूर्य के सम्पर्क में स्वस्थ रहते हुए हम जीर्ण शक्ति न हों ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम की कृपा से हम मृत्यु से दूर हों । सूर्य सम्पर्क हमें नीरोगता दे।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे शान्तपरमात्मन् ! (मा-उ सु नः-मृत्यवे परादाः) न हि सुगमतयाऽस्मान् मृत्यवे त्यज (सूर्यम्-उच्चरन्तं नु पश्येम) जगति सूर्यमुपरि खलूदितं पश्येम (द्युभिः-हितः-जरिमा नः-सु-अस्तु) आगामिभिर्दिनैः प्राप्तौ जरिमा जराभावः सुगमः-सुखदो भवतु (परातरं……) पूर्ववत् ॥४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, lord of peace and prosperity, give us not up to death and decay. Let us go on and advance with the rising sun day by day. Let our growth in time be positive for our good day by day. Let want, adversity, ill health and death stay far away from us.
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी असे आचरण करावे, की ज्यामुळे शीघ्र मृत्यू येऊ नये व पुढे येणारी जरावस्थाही सुखाने घालवावी. आपल्या जीवनकाळात सूर्याला पाहत राहावे. अर्थात, नेत्र इत्यादी इंद्रियशक्ती न्यून होता कामा नये व आपत्तीही दूर व्हावी. ॥४॥
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