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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 59 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 59/ मन्त्र 6
    ऋषिः - बन्ध्वादयो गौपायनाः देवता - असुनीतिः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    असु॑नीते॒ पुन॑र॒स्मासु॒ चक्षु॒: पुन॑: प्रा॒णमि॒ह नो॑ धेहि॒ भोग॑म् । ज्योक्प॑श्येम॒ सूर्य॑मु॒च्चर॑न्त॒मनु॑मते मृ॒ळया॑ नः स्व॒स्ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    असु॑ऽनीते । पुनः॑ । अ॒स्मासु॑ । चक्षुः॑ । पुन॒रिति॑ । प्रा॒णम् । इ॒ह । नः॒ । धे॒हि॒ । भोग॑म् । ज्योक् । प॒श्ये॒म॒ । सूर्य॑म् । उ॒त्ऽचर॑न्तम् । अनु॑ऽमते । मृ॒ळय॑ । नः॒ । स्व॒स्ति ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    असुनीते पुनरस्मासु चक्षु: पुन: प्राणमिह नो धेहि भोगम् । ज्योक्पश्येम सूर्यमुच्चरन्तमनुमते मृळया नः स्वस्ति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    असुऽनीते । पुनः । अस्मासु । चक्षुः । पुनरिति । प्राणम् । इह । नः । धेहि । भोगम् । ज्योक् । पश्येम । सूर्यम् । उत्ऽचरन्तम् । अनुऽमते । मृळय । नः । स्वस्ति ॥ १०.५९.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 59; मन्त्र » 6
    अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (असुनीते) हे प्राणों को प्राप्त करानेवाले परमात्मन् ! (पुनः-इह अस्मासु चक्षुः-प्राणं भोगं नः-धेहि) तू इस जीवन में-इस पुनर्जन्म में हमारे निमित्त पुनः नेत्र, पुनः प्राण और भोग पदार्थ को धारण करा (सूर्यम्-उच्चरन्तं ज्योक् पश्येम) उदय होते हुए सूर्य को चिरकाल तक देखें (अनुमते नः स्वस्ति मृळय) हे आज्ञापक परमेश्वर ! हमारे लिए कल्याण जैसे हो, ऐसे सुखी कर ॥६॥

    भावार्थ

    पुनर्जन्म में प्राण नेत्र आदि अङ्ग पूर्वजन्म के समान परमात्मा देता है। वह हमारे जीवन को सुखी बनाने के लिए सब साधन भोगपदार्थ देता है, उसका हमें कृतज्ञ होना चाहिए तथा उपासना करनी चाहिए ॥६॥

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    विषय

    प्राणप्रद प्रभु से प्रार्थना। उससे पुनः जन्म जन्मान्तरों में समस्त इन्द्रियादि सुख-साधनों की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे (असु-नीते) प्राणों को प्रदान करने वाले ! तू (अस्मासु) (पुनः चक्षुः, पुनः प्राणम् धेहि) हम में पुनः चक्षु, ज्ञान और प्राण प्रदान कर और रख। (इह नः भोगं धेहि) इस लोक में हमें उत्तम २ भोग योग्य अन्न, ऐश्वर्य और रक्षण प्राप्त करा। हम (उच्चरन्तं सूर्यं ज्योक् पश्येम) ऊपर आकाश में आते सूर्य को चिरकाल तक देखें। हे (अनु-मते) अनुकूल बुद्धि देनेहारे विद्वन् प्रभो ! तू (नः स्वस्ति मृडय) हमें सुख प्रदान कर, हम पर कृपा कर।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बन्ध्वादयो गौपायनाः। देवता—१—३ निर्ऋतिः। ४ निर्ऋतिः सोमश्च। ५, ६ असुनीतिः। लिङ्गोक्ताः। ८, ९, १० द्यावापृथिव्यौ। १० द्यावापृथिव्याविन्द्रश्च॥ छन्दः– १ विराट् त्रिष्टुप्। २, ४–६ निचृत् त्रिष्टुप्। ३, ७ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ८ भुरिक् पंक्तिः। ९ जगती। १० विराड् जगती॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    'चक्षु- प्राण-धन-सूर्य-दर्शन व अनुमति'

    पदार्थ

    [१] हे (असुनीते) = प्राणधारण के मार्ग ! तू (अस्मासु) = हमारे में (पुनः) = फिर (चक्षुः) = दृष्टिशक्ति को (धेहि) = धारण कर, (पुनः) = फिर (प्राणम्) = प्राणशक्ति को दे । (इह) = इस जीवन में (नः) = हमारे लिये (भोगम्) = शरीर के पालन के लिये आवश्यक वस्तुओं की प्राप्ति के साधनभूत धन को धारण करिये। एवं असुनीति यह है कि [क] हम चक्षु आदि इन्द्रियों की शक्ति को क्षीण न होने दें। [ख] प्राणशक्ति को कायम रखें, [ग] उचित धन की मात्रावाले हों। निर्धनता हीन भोजन का कारण बनेगी और उससे चक्षु व प्राण दोनों में क्षीणता आयेगी । [२] हम (उच्चरन्तम्) = उदय होते हुए (सूर्यम्) = सूर्य को (ज्योक् पश्येम) = दीर्घकाल तक देखनेवाले हों। यह सूर्य दर्शन व सूर्य-सम्पर्क में रहना ही तो मुख्य रूप से हमारे दीर्घायुष्य का कारण होता है। [३] हे (अनुमते) = अनुकूलमति ! (मृडया) = तू सुखी कर । तेरी कृपा से (नः स्वस्ति) = हमारा कल्याण हो । 'हर वक्त मृत्यु का ध्यान आना व मृत्यु की चिन्ता करना' ही प्रतिकूलमति है। यह जीवन के ह्रास का महान् कारण होती है। अनुमति का स्वरूप तो यह है कि 'जीवेम शरदः शतम्' हम सौ वर्ष तक अवश्य जीयेंगे ही।

    भावार्थ

    भावार्थ - [क] इन्द्रियों को ठीक रखना, [ख] प्राणशक्ति में कमी न आने देना, [ग] निर्धनता का न होना, [घ] सूर्य सम्पर्क, [ङ] अनुकूल मति ये बातें दीर्घजीवन का कारण हैं।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (असुनीते) हे प्राणप्रापक परमात्मन् ! (पुनः-इह-अस्मासु चक्षुः-प्राणं भोगं नः-धेहि) त्वमिह पुनर्जन्मनि-अस्मभ्यं खल्वस्मासु पुनर्नेत्रं भोगपदार्थं धारय (सूर्यम्-उच्चरन्तं ज्योक् पश्येम) उद्गच्छन्तं सूर्यं चिरं पश्येम (अनुमते नः स्वस्ति मृळय) आज्ञापक परमेश्वर ! “अनुमते-हे अनन्त परमेश्वर” [ऋ० १०।५९।६। भाष्यभूमिका, दयानन्दः] अस्मान् स्वस्ति सु-अस्तित्वं यथा स्यात् तथा सुखय ॥६॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O divine Spirit of life and energy, bless us constantly with the faculty of vision, constant pranic energy too, and vest in here in the body the capacity and faculties to live and enjoy the sweets of life. O motherly spirit of love and acceptance, may we see the rising sun for a long time. Be pleased and kind and bless us with happiness and well being all through in life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    पुनर्जन्मात प्राण नेत्र इत्यादी अंग पूर्वजन्माप्रमाणे परमात्मा देतो. तो आमचे जीवन सुखी करण्यासाठी सर्व साधन भोगपदार्थ देतो. त्याच्याबाबत आम्ही कृतज्ञ राहिले पाहिजे व उपासना केली पाहिजे. ॥६॥

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