ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 16/ मन्त्र 9
नू॒नं सा ते॒ प्रति॒ वरं॑ जरि॒त्रे दु॑ही॒यदि॑न्द्र॒ दक्षि॑णा म॒घोनी॑। शिक्षा॑ स्तो॒तृभ्यो॒ माति॑ ध॒ग्भगो॑ नो बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥
स्वर सहित पद पाठनू॒नम् । सा । ते॒ । प्रति॑ । वर॑म् । जरि॒त्रे । दु॒ही॒यत् । इ॒न्द्र॒ । दक्षि॑णा । म॒घोनी॑ । शिक्ष॑ । स्तो॒तृऽभ्यः॑ । मा । अति॑ । ध॒क् । भगः॑ । नः॒ । बृ॒हत् । व॒दे॒म॒ । वि॒दथे॑ । सु॒ऽवीराः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नूनं सा ते प्रति वरं जरित्रे दुहीयदिन्द्र दक्षिणा मघोनी। शिक्षा स्तोतृभ्यो माति धग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः॥
स्वर रहित पद पाठनूनम्। सा। ते। प्रति। वरम्। जरित्रे। दुहीयत्। इन्द्र। दक्षिणा। मघोनी। शिक्ष। स्तोतृऽभ्यः। मा। अति। धक्। भगः। नः। बृहत्। वदेम। विदथे। सुऽवीराः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 16; मन्त्र » 9
अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
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अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे इन्द्र या ते तव मघोनी दक्षिणा जरित्रे प्रतिवरं दुहीयत्सा तव नूनं निश्चितं श्रेयः सम्पादयति। भवान्स्तोतृभ्यो मातिधग्यो नो भगस्तं शिक्ष यतो वयं सुवीराः सन्तोऽपि विदथे बृहद्वदेम ॥९॥
पदार्थः
(नूनम्) निश्चितम् (सा) (ते) तव (प्रति) (वरम्) (जरित्रे) स्तावकाय (दुहीयत्) (इन्द्र) (दक्षिणा) (मघोनी) पूजनीया विद्या प्रतिष्ठा च (शिक्ष) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः (स्तोतृभ्यः) स्तावकेभ्यो विद्वद्भ्यः (मा) निषेधे (अति) (धक्) दहेः (भगः) ऐश्वर्यम् (नः) अस्मभ्यम् (बृहत्) महत् (वदेम) (विदथे) यज्ञे (सुवीराः) ॥९॥
भावार्थः
य कस्याप्युपकारं न रुन्धन्ति सत्यमुपदिशन्ति ते यशस्विनो भवन्ति ॥९॥। अस्मिन् सूक्ते विद्युद्विद्वत्सूर्यविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेदितव्यम् ॥ इति षोडशं सूक्तमष्टादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (इन्द्र) विद्वान् जो (ते) आपकी (मघोनी) प्रशंसा करने के योग्य विद्या और प्रतिष्ठा (दक्षिणा) और दक्षिणा (जरित्रे) स्तुति करनेवाले के लिये (प्रतिवरम्) श्रेष्ठ के प्रति श्रेष्ठ पदार्थ को (दुहीयत्) पूर्ण करे (सा) वह आपका (नूनम्) निश्चित श्रेय अत्यन्त कल्याण सिद्ध करती है आप (स्तोतृभ्यः) स्तुति करनेवाले विद्वानों के लिये जो पदार्थ उनको (मा,अति,धक्) मत भस्म कर मत नष्ट कर जो (नः) हमारे लिये (भगः) ऐश्वर्य है उसको (शिक्ष) शिक्षा देओ। जिससे हम लोग (सुवीराः) सुन्दर वीरोंवाले हुए (विदथे) यज्ञभूमि में (बृहत्) बहुत (वदेम) कहें ॥९॥
भावार्थ
जो लोग किसी के उपकार को नहीं रोकते, सत्य उपदेश करते हैं, वे यशस्वी होते हैं ॥९॥ इस सूक्त में बिजली, विद्वान्, सूर्य और फिर विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह सोलहवाँ सूक्त और अठारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
मघोनी दक्षिणा
पदार्थ
२.११.२१ पर यह व्याख्यात है। सम्पूर्ण सूक्त का सार यह है कि हम सदा प्रभुस्तवन करें। प्रभु हमें वासनारूप शत्रुओं का शिकार होने से बचाएँ। सोमरक्षण करते हुए उत्कर्ष को प्राप्त करें। इसी प्रभु के उपासन का ही विषय अगले सूक्त में भी है -
विषय
परमेश्वर का वर्णन ।
भावार्थ
व्याख्या देखो सू० २। १५। १०॥ अष्टादशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १, ७ जगती । विराड् जगती ४, ५, ६, ८ निचृज्जगती च । २ भुरिक् त्रिष्टुप् । ९ त्रिष्टुप् ॥ नवर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक कुणाच्या उपकाराला अवरुद्ध करीत नाहीत, सत्याचा उपदेश करतात, ते यशस्वी होतात. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, lord giver of light and the wealth of life, may that magnificent bounty of yours flow and shower the desired excellence upon your singer and celebrant, sure, instantly and incessantly. May the light of knowledge and wealth of power given to the devotee ever shine for us but never blaze to excess, never burn, so that, bright and brave, blest with the brave, we may sing in praise and homage to you in our yajnic acts of life and the music may rise and ring across the spaces.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The theme of scholar is further explained.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O scholar ! those who admire and honor you properly and give you offerings and nice substances, you accomplish their desires and deliver positive good to them. We, therefore, pray to you not to detract those who do to them proper and truthful admiration. Teach them the path of prosperity, so that with their brave colleagues, they may duly assert on crucial points during the Yajnas.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those who are benefactors and always preach truth, they become eminent.
Foot Notes
(मघोनी) पूजनीयाविद्या प्रतिष्ठा च = The learning which is to be honored and respected. (स्तोतृभ्यः) स्तावकेभ्यो विद्वद्भ्यः । = For scholars who admire the learned persons. (विदथे) यज्ञे = At the site of the Yajna.
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