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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 20/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - इन्द्र: छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    स नो॒ युवेन्द्रो॑ जो॒हूत्रः॒ सखा॑ शि॒वो न॒राम॑स्तु पा॒ता। यः शंस॑न्तं॒ यः श॑शमा॒नमू॒ती पच॑न्तं च स्तु॒वन्तं॑ च प्र॒णेष॑त्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । नः॒ । युवा॑ । इन्द्रः॑ । जो॒हूत्रः॑ । सखा॑ । शि॒वः । न॒राम् । अ॒स्तु॒ । पा॒ता । यः । शंस॑न्तम् । यः । श॒श॒मा॒नम् । ऊ॒ती । पच॑न्तम् । च॒ । स्तु॒वन्त॑म् । च॒ । प्र॒ऽनेष॑त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नो युवेन्द्रो जोहूत्रः सखा शिवो नरामस्तु पाता। यः शंसन्तं यः शशमानमूती पचन्तं च स्तुवन्तं च प्रणेषत्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। नः। युवा। इन्द्रः। जोहूत्रः। सखा। शिवः। नराम्। अस्तु। पाता। यः। शंसन्तम्। यः। शशमानम्। ऊती। पचन्तम्। च। स्तुवन्तम्। च। प्रऽनेषत्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 20; मन्त्र » 3
    अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वदीश्वरविषयमाह।

    अन्वयः

    य ऊती शंसन्तं यः शशमानं पचन्तं स्तुवन्तं च प्रणेषत्स युवा जोहूत्रः शिवः सखेन्द्रो नो नरा च पाताऽस्तु ॥३॥

    पदार्थः

    (सः) (नः) अस्माकम् (युवा) सुखैः संयोजको दुःखैर्वियोजकश्च (इन्द्रः) विद्यैश्वर्यप्रदः (जोहूत्रः) भृशं दाता (सखा) सुहृत् (शिवः) मङ्गलकारी (नराम्) मनुष्याणाम् (अस्तु) (पाता) रक्षकः (यः) (शंसन्तम्) प्रशंसन्तम् (यः) (शशमानम्) अन्यायमुल्लङ्घमानम् (ऊती) ऊत्या रक्षया (पचन्तम्) पाकं कुर्वन्तम् (च) (स्तुवन्तम्) स्तुवन्तम् (च) (प्रणेषत्) प्रकृष्टं नयं प्राप्नुयात् प्रापयेद्वा ॥३॥

    भावार्थः

    यौ परमेश्वराप्तौ सर्वेषां रक्षकौ स्तस्तौ सर्वेषां सुहृदौ मङ्गलकारिणौ स्तः ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वान् और ईश्वर के विषय को इस मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    (यः) जो (ऊती) रक्षा से (शंसन्तम्) प्रशंसा करते हुए को (यः) जो (शशमानम्) अन्याय को उल्लङ्घन करनेवालों को (पचन्तम्) पाक करते हुए को (स्तुवन्तम्,च) और स्तुति करते हुए को (प्रणेषत्) उत्तम न्याय को प्राप्त करावे और आप न्याय को प्राप्त होवे (सः) वह (युवा) सुखों से संयुक्त और दुःखों से वियुक्त करनेवाला (जोहूत्रः) निरन्तर दाता (शिवः) मङ्गलकारी (सखा) सबका मित्र (इन्द्रः) और विद्या वा ऐश्वर्य का देनेवाला विद्वान् वा ईश्वर (नः) हम लोगों का और (नराम्) सब मनुष्यों का (च) भी (पाता) रक्षक (अस्तु) हो ॥३॥

    भावार्थ

    जो परमेश्वर और आप्त जन सबकी रक्षा करनेवाले हैं, वे सबके मित्र और मङ्गल करनेवाले हैं ॥३॥

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    विषय

    शिवः सखा

    पदार्थ

    १. (सः) = वे प्रभु (नः) = हमारे युवा बुराइयों को दूर करनेवाले तथा अच्छाइयों का हमारे साथ सम्पर्क करनेवाले सखा - मित्र हैं। वे (इन्द्रः) = परमैश्वर्यशाली हैं, (जोहूत्रः) = निरन्तर (ह्वातव्य) = पुकारने योग्य हैं । (शिवः) = कल्याणकर हैं। वे प्रभु (नराम्) = कर्मों का प्रणयन करनेवाले लोगों के पाता (अस्तु) = रक्षक हैं। वस्तुतः अकर्मण्य व्यक्ति कभी भी प्रभु की रक्षा का पात्र नहीं होता। २. वे प्रभु रक्षक होते हैं, (यः) = जो कि (शंसन्तम्) = शंसन करनेवाले को-सदा स्तुतिवचनों के बोलनेवाले को (ऊती) = रक्षण द्वारा (प्रणेषत्) = उन्नतिपथ पर ले चलते हैं । (यः) = जो (शशमानम्) = प्लुत गति से कार्य करनेवाले को अपने रक्षण में आगे ले चलते हैं। (पचन्तं च स्तुवन्तं च) = ज्ञान से अपना परिपाक करनेवाले को तथा स्तवन करनेवाले को आगे ले चलते हैं। सुन्दर जीवन यही है कि हम ज्ञान से अपने को परिपक्व करें तथा स्तवन करनेवाले हों।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु हमारे रक्षक होते हैं - हमारा कर्तव्य है कि हम ज्ञानपरिपक्व तथा स्तोता बनें ।

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    विषय

    सूर्यवत् नायक और परमेश्वर का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( सः ) जो ( इन्द्रः ) ऐश्वर्यवान् परमेश्वर और उत्तम राजा ( नः ) हमारे बीच ( शंसन्तं ) उत्तम उपदेश करने वाले और ( स्तुवन्तं ) स्तुति करने वाले हैं। (ऊती) रक्षा और दीप्ति या प्रकाश के द्वारा ( प्र नेषत् ) उत्तम मार्ग से लेजाता है, और जो ( शशमानम् ) धर्म मर्यादाओं को लांघकर चलने वाले और (पचन्तं) अन्यों को सन्ताप देने वाले को (ऊती) दण्ड द्वारा ( प्र नेषत् ) उत्तम मार्ग में लेजाता है अथवा ( शशमानं ) प्लुतगति अर्थात् सब धर्मों को लांघ कर संन्यास मार्ग से जाने और (पचन्तं) अपने आत्म बल को तपस्या द्वारा परिपक्व करने वाले को सन्मार्ग से लेजाता है ( सः ) वह ( युवा ) सुखों से जोड़ने और दुःखों से दूर रखने वाला, ( युवा ) नित्य तरुण, सदा बलवान्, ( जो हूत्रः ) निरन्तर उत्तम पदार्थ देने वाला, अथवा भक्त, प्रेमी जनों से नित्य स्मरण किया और पुकारे जाने वाला, ( सखा ) मित्र, ( शिवः ) कल्याणकारी है वह ( नः ) हमारे ( नराम् ) पुरुषों और प्राणों का भी ( पाता अस्तु ) पालक और रक्षक हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः– १, ६,८ विराट त्रिष्टुप् । ६ त्रिष्टुप् । २ बृहती । ३ पङ्क्तिः । ४, ५, ७ भुरिक् पङ्क्तिः॥ नवर्चं सूक्तम॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वर व आप्त लोक सर्वांचे रक्षण करतात. ते सर्वांचे मित्र व मंगल करणारे असतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, lord of life, ever young, generous giver invoked and invited, our friend, giver of peace and bliss, may he be the guardian and protector of the people. May he guide and enlighten the admirer, zealous worshipper, self-developing devotee and the singer celebrant.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of learned person and God are mentioned.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O God and learned men ! you protect the admiring ones; you empower fully to the fighters of injustice and bring justice at the door of your admirers. Verily, both of you get us happiness and keep aloof from the sorrows, in addition to being an incessant donor, performer of welfare, friendly and giver of knowledge. We pray or request to protect us.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    God and learned persons protect all. They are friendly to every one and perform welfare.

    Foot Notes

    (युवा) सुखैः संयोजको दुःखैर्वियोजकश्च।= One who brings happiness and removes sorrows. (जोहूत:) भृशं दाता = One who gives immensely. (शंसन्तम् ) प्रशंसन्तम् = Admiring (शशमानम्) अन्यायमुल्लङ्घमानम् = The fighters of injustice. (पचन्तम् ) पाकं कुर्वन्तम् = Strengthening. (प्रणेषत् ) प्रकृष्टं नयं प्राप्नुयात् प्रापयेठा | = Lead to nice path.

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