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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 20/ मन्त्र 9
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    नू॒नं सा ते॒ प्रति॒ वरं॑ जरि॒त्रे दु॑ही॒यदि॑न्द्र॒ दक्षि॑णा म॒घोनी॑। शिक्षा॑ स्तो॒तृभ्यो॒ माति॑ ध॒ग्भगो॑ नो बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नू॒नम् । सा । ते॒ । प्रति॑ । वर॑म् । ज॒रि॒त्रे । दु॒ही॒यत् । इ॒न्द्र॒ । दक्षि॑णा । म॒घोनी॑ । शिक्ष॑ । स्तो॒तृऽभ्यः॑ । मा । अति॑ । ध॒क् । भगः॑ । नः॒ । बृ॒हत् । व॒दे॒म॒ । वि॒दथे॑ । सु॒ऽवीराः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नूनं सा ते प्रति वरं जरित्रे दुहीयदिन्द्र दक्षिणा मघोनी। शिक्षा स्तोतृभ्यो माति धग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नूनम्। सा। ते। प्रति। वरम्। जरित्रे। दुहीयत्। इन्द्र। दक्षिणा। मघोनी। शिक्ष। स्तोतृऽभ्यः। मा। अति। धक्। भगः। नः। बृहत्। वदेम। विदथे। सुऽवीराः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 20; मन्त्र » 9
    अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ दातृगुणानाह।

    अन्वयः

    हे इन्द्र ते तव सा मघोनी दक्षिणा प्रतिवरं जरित्रे स्तोतृभ्यश्च नूनं दुहीयन्नोऽस्मान्माति धक् शिक्ष यया भगो वर्धते तया सुवीराः सन्तो वयं विदथे बृहद्वदेम ॥९॥

    पदार्थः

    (नूनम्) (सा) वर्द्धिका (ते) तव (प्रति) (वरम्) अत्युत्तमम् (जरित्रे) प्रशंसकाय (दुहीयत्) प्रपूरयेत् (इन्द्र) (दक्षिणा) (मघोनी) बहुधनादियुक्ता (शिक्ष) विद्यां ग्राहय (स्तोतृभ्यः) (मा) (अति,धक्) (भगः) (नः) अस्मान् (बृहत्) (वदेम) (विदथे) पदार्थविज्ञाने (सुवीराः) सकलविद्याव्यापिनः ॥९॥

    भावार्थः

    ये निरन्तरं दातारोऽप्रतिग्रहीतारः सर्वदा सत्यं शिक्षन्ते कस्यापि हृदयं वृथा न तापयन्ति ते महान्तो भवन्तीति ॥९॥ अत्रेन्द्रविद्युदीश्वरसभेशादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिर्वेद्या ॥ इति विंशतितमं सूक्तं षड्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब देनेवालों के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) देनेवाले (ते) आपकी (सा) वह (मघोनी) बहुत धनादि पदार्थों से युक्त (दक्षिणा) देनी (प्रतिवरम्) अत्युत्तम सुख (जरित्रे) प्रशंसा करनेवाले के लिये (स्तोतृभ्यः) और स्तुति करनेवालों के लिये (नूनम्) निश्चय कर (दुहीयत्) पूरा करे और (नः) हम लोगों को (मातिधक्) मत नष्ट करे और आप हम लोगों को शिक्ष (विद्या) ग्रहण कराइये तथा जिससे (भगः) ऐश्वर्य बढ़ता है उससे (सुवीराः) सकल विद्याव्यापी हम लोग (विदथे) पदार्थविज्ञान में (बृहत्) बहुत (वदेम) कहें ॥९॥

    भावार्थ

    जो निरन्तर देने और लेनेवाले सर्वदा सत्य की शिक्षा देते और किसी के हृदय को वृथा नहीं सन्तापते हैं, वे बड़े होते हैं ॥९॥ इस सूक्त में इन्द्र-विद्वान्-ईश्वर और सभापति आदि के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह बीसवाँ सूक्त और छब्बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    वरवस्तु-दोहन

    पदार्थ

    इसका व्याख्यान २.११.२१ पर द्रष्टव्य है । यह सारा सूक्त प्रभु के उपासन से अशुभवृत्तियों के विध्वंस का संकेत करता है। अगले में कहते हैं कि प्रभु ही विश्वजित् हैं, वे ही शत्रुओं का अभिभव करनेवाले हैं। अतः इस का ही स्तवन करना व प्रसन्न रहना हमारा कर्त्तव्य है

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    विषय

    सूर्यवत् नायक और परमेश्वर का वर्णन ।

    भावार्थ

    व्याख्या देखो पूर्वसूक्त । म० ९ ॥ इति षड्विंशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः– १, ६,८ विराट त्रिष्टुप् । ६ त्रिष्टुप् । २ बृहती । ३ पङ्क्तिः । ४, ५, ७ भुरिक् पङ्क्तिः॥ नवर्चं सूक्तम॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे सदैव देवाण व घेवाण करणारे असून सत्य शिकवितात विनाकारण कुणाला त्रास देत नाहीत, ते मोठे असतात. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, lord of the universe and wealth of existence, may that oceanic generosity of your love bless the singer celebrant with the choicest gifts of his desire, and may your light of knowledge ever shine on the disciples but never bum our greatness and grandeur so that we and our children may boldly celebrate you in our yajnas.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    In the praise of donors.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O mighty donor learned person (Indra ) ! let your rich gifts be available to your admirers, in order to give them extreme happiness. Let their desires be surely fulfilled. Do not smash us and make us learned, so that our prosperity always goes up and we assert ourselves in all the branches of business and physical sciences.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those who always receive and give away money to others and never annoy any one unnecessarily, they are verily great.

    Foot Notes

    (सा मधोनी ) वद्धिका – The increased wealth. ( प्रतिवरम् ) (अत्युत्तमम् ) = Very excellent. (मघोनी) बहुधनादियुक्ता। = Full of great wealth and prosperity. ( बिदथे) पदार्थविज्ञाने। = In the field of physical sciences. (सुवीराः) सकल विद्याव्यापिन: = Skilled in all branches of learning.

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