ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 37/ मन्त्र 5
अ॒र्वाञ्च॑म॒द्य य॒य्यं॑ नृ॒वाह॑णं॒ रथं॑ युञ्जाथामि॒ह वां॑ वि॒मोच॑नम्। पृ॒ङ्क्तं ह॒वींषि॒ मधु॒ना हि कं॑ ग॒तमथा॒ सोमं॑ पिबतं वाजिनीवसू॥
स्वर सहित पद पाठअ॒र्वाञ्च॑म् । अ॒द्य । य॒य्य॑म् । नृ॒ऽवाह॑नम् । रथ॑म् । यु॒ञ्जा॒था॒म् । इ॒ह । वा॒म् । वि॒ऽमोच॑नम् । पृ॒ङ्क्तम् । ह॒वींषि । म॒धु॒ना । आ । हि । क॒म् । ग॒तम् । अथ॑ । सोम॑म् । पि॒ब॒त॒म् । वा॒जि॒नी॒व॒सू॒ इति॑ वाजिनीऽवसू ॥
स्वर रहित मन्त्र
अर्वाञ्चमद्य यय्यं नृवाहणं रथं युञ्जाथामिह वां विमोचनम्। पृङ्क्तं हवींषि मधुना हि कं गतमथा सोमं पिबतं वाजिनीवसू॥
स्वर रहित पद पाठअर्वाञ्चम्। अद्य। यय्यम्। नृऽवाहनम्। रथम्। युञ्जाथाम्। इह। वाम्। विऽमोचनम्। पृङ्क्तम्। हवींषि। मधुना। आ। हि। कम्। गतम्। अथ। सोमम्। पिबतम्। वाजिनीवसू इति वाजिनीऽवसू॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 37; मन्त्र » 5
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 5
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अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे वाजिनीवसू शिल्पिनौ युवामद्य यय्यमर्वाञ्चं नृवाहणं रथं युञ्जाथामिह मधुना सह वर्त्तमानानि हवींषि पृङ्क्तं हि कं गतं सोमं पिबतमथ वां विमोचनमस्तु ॥५॥
पदार्थः
(अर्वाञ्चम्) अर्वाग् गामिनम् (अद्य) (यय्यम्) ययिं यातारम्। अत्र आदॄगमहनेति किः प्रत्ययः। अमिपूर्व इत्यत्र वाच्छन्दसीत्यनुवर्त्तनात्पूर्वसवर्णाभावपक्षे यणादेशः। (नृवाहणम्) यो नॄन् वहति तम् (रथम्) (युञ्जाथाम्) (इह) अस्मिन् याने (वाम्) युवयोः (विमोचनम्) (पृङ्क्तम्) संयोजयतम् (हवींषि) दातुमादातुं योग्यानि वस्तूनि (मधुना) मधुरेण गुणेन सह (हि) किल (किम्) देशम् (गतम्) प्राप्नुतम् (अथ) आनन्तर्ये। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (सोमम्) (पिबतम्) (वाजिनीवसू) यौ वाजिनीं वेगवतीं क्रियां वासयतस्तौ ॥५॥
भावार्थः
यौ शिल्पविद्याऽध्यापकाऽध्येतारावग्निजलादिभिः काष्ठादिभिर्निर्मितानि यानानि चालयित्वा देशान्तरं गत्वा धनमुन्नयन्ति ते सततं सुखं प्राप्नुवन्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (वाजिनीवसू) वेगवती क्रिया को वसानेवाले शिल्पी जनो ! तुम (अद्य) आज (यय्यम्) जो अच्छे प्रकार पहुँचता हुआ (अर्वाञ्चम्) नीचे-नीचे चलनेवाला (नृवाहणम्) और मनुष्यों को पहुँचाता है उस (रथम्) रमणीय मनोहर यान को (युञ्जाथाम्) जोड़ो और (इह) इस यान में (मधुना) मधुर गुण के साथ वर्त्तमान जो (हवींषि) देने-लेने योग्य वस्तु हैं उनको (पृङ्क्तम्) संयुक्त कराओ (हि) और निश्चय से (कम्) किस देश को (गतम्) प्राप्त होओ (सोमम्) तथा ओषध्यादि रस को (पिबतम्) पिओ (अथ) इसके अनन्तर (वाम्) तुम दोनों का (विमोचनम्) विशेषता से छूटना हो ॥५॥
भावार्थ
जो शिल्प विद्या के पढ़ाने और पढ़नेवाले काष्ठादिकों से निर्माण किये यानों को अग्नि और जलादि से चला और देशान्तर में जाकर धन को अच्छे प्रकार उन्नत करते हैं, वे निरन्तर सुख पाते हैं ॥५॥
विषय
अश्विनी देवों का रथ
पदार्थ
१. प्रस्तुत मन्त्र का देवता 'अश्विनौ' है - प्राणापान । इनसे प्रार्थना करते हैं कि (अद्य) = आज आप (रथं युञ्जाथाम्) = शरीररूप रथ को जोतो। जो रथ (अर्वाञ्चम्) = बहिर्मुखी गतिवाला न होकर (अन्तः) = अर्वाङ्मुखी गतिवाला है– विषयों की ओर न जाकर आत्मतत्त्व की ओर चलनेवाला है। (यय्यम्) = गतिशील है। (नृवाहणम्) = नर-मनुष्यों का जो वाहन है- जिसमें आगे बढ़ने की वृत्तिवाला व्यक्ति स्थित है। २. यह (वाम्) = आपका रथ (इह) = यहाँ इस मानवजीवन में (विमोचनम्) = हमारा विमोचयिता हो– विषयों से हमें मुक्त करनेवाला हो । हे प्राणापानो! आप (हवींषि पृङ्क्तम्) = हवियों को ही हमारे साथ संयुक्त करो- दानपूर्वक अदन की वृत्तिवाले ही हम सदा बनें । (मधुना) = माधुर्य से (हि) = निश्चयपूर्वक (कम्) = उस आनन्दस्वरूप प्रभु को (गतम्) = प्राप्त होनेवाले होओ। हम जीवन में मधुरता से चलें और प्रभु को प्राप्त होनेवाले हों। (अथा) = अब हे (वाजिनीवसू) = शक्तिरूप साधनवाले अथवा अन्न [वाजिनी] के द्वारा हमारे निवास को उत्तम बनानेवाले प्राणापानो! (सोमं पिबतम्) = तुम सोम का पान करो। अपने इस शरीर में सोम को सुरक्षित करनेवाले बनो। प्राणसाधना से ही सोम की ऊर्ध्वगति होती है ।
भावार्थ
भावार्थ - प्राणसाधन के द्वारा सोम का रक्षण होकर इस शरीर रथ का सौन्दर्य बना रहता है। यह रथ हमें लक्ष्यस्थान पर पहुँचानेवाला होता है ।
विषय
विद्वान् द्रविणोदस् वनस्पति नाम से राजा प्रजाओं के कर्त्तव्य । (
भावार्थ
हे ( वाजिनीवसू ) ‘वाज’ अर्थात् वेग, बल, ऐश्वर्य और संग्राम आदि करने की शक्ति, क्रिया या सेना को बसाने या धारण करने वाले स्वामी जनो ! आप दोनों ( अद्य ) आज, ( अर्वाञ्चम् ) वेगवान् अश्वों सहित जाने वाले, ( यय्यं ) दूर देश में जाने और पहुंचा देने वाले, ( नृवाहणं ) नायक पुरुषों को ढो ले जाने वाले, ( रथं ) उत्त वेगवान् रथ को ( युञ्जाथाम् ) जोड़ा करो ( इह ) इसमें ही ( वां ) आप दोनों का ( विमोचनम् ) विविध प्रकार के कष्टों से मुक्त होना सम्भव है । आप दोनों ( हवींषि ) लेने देने योग्य पदार्थों और अन्नों को ( मधुना ) मधुर पदार्थ से, आनन्दप्रद उपाय से ( पृक्तम् ) संयुक्त करो । ( हि ) इसीलिये ( कं हि गतम् ) इस प्रकार सुखप्रद स्थान को जाया करो ( अथ ) और इस प्रकार ( सोमं ) उत्तम ओषधि रस और ऐश्वर्य का (पिबतं ) सेवन करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ १-४ द्रविणोदाः ५ अश्विनौ । ६ अग्निश्च देवता ॥ छन्दः—१, ५ निचृज्जगती । २ जगती । ३ विराड् जगती ४, ६ भुरिक त्रिष्टुप् ॥ षडृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे शिल्पविद्या शिकविणारे अध्यापक व शिकणारे विद्यार्थी हे कष्टांनी निर्माण केलेली याने इत्यादींना अग्नी व जल यांनी चालवून देशान्तरी जाऊन चांगल्या प्रकारे धन प्राप्त करून उन्नती करतात ते निरन्तर सुख भोगतात. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Ashvins, agents of nature for the lord of omnipotence, leaders of humanity and pioneers of peace and prosperity for the people, start your chariot and direct it hitherward to us, the chariot which transports you to our yajna and takes us to the land of freedom and bliss. Come to the land of joy, season our havi with honey, and drink the soma of immortal bliss.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
In the praise of donor.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Yoke today O great artists! you are expert in accelerating movements of your swift going car, carrying many a man to distant places and sitting down before us. Start it. Adjust and set all requisite articles, which deserve taking and giving with sweetness and go to desirable places. Drink the Soma (juice of the nourishing herbs) and unyoke the car when your work is over.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those students and teachers of the science or technology who manufacture various vehicles by the combination of fire, water, wood and other articles and take them to distant places for business, accumulate wealth and enjoy happiness.
Foot Notes
(वजिनीवसू ) यो वाजिनी वेगवती क्रिया वासयतः तौ। at Those artists who are experts in accelerating movement and activity. The word वाज is used for वेग Speed, वाजिनीवति therefore means वेगवत-क्रिया = An accelerating movement. (यय्यम्) यर्यि यातारम् । अत्र आदु गमहनेतिः किः प्रत्ययः । अमि पूर्व इत्यत्र वाच्छन्दसीत्यनुवर्तनात् पूर्व सवर्णामावपक्षेयणादेश: (हवींषि ) दातुम् आदातुं योग्यानि वस्तूनि। = The articles worth taking and giving.
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