ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 8/ मन्त्र 3
य उ॑ श्रि॒या दमे॒ष्वा दो॒षोषसि॑ प्रश॒स्यते॑। यस्य॑ व्र॒तं न मीय॑ते॥
स्वर सहित पद पाठयः । ऊँ॒ इति॑ । श्रि॒या । दमे॑षु । आ । दो॒षा । उ॒षसि॑ । प्र॒ऽश॒स्यते॑ । यस्य॑ । व्र॒तम् । न । मीय॑ते ॥
स्वर रहित मन्त्र
य उ श्रिया दमेष्वा दोषोषसि प्रशस्यते। यस्य व्रतं न मीयते॥
स्वर रहित पद पाठयः। ऊँ इति। श्रिया। दमेषु। आ। दोषा। उषसि। प्रऽशस्यते। यस्य। व्रतम्। न। मीयते॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
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अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे विद्वँस्त्वं यो दमेषु दोषोषसि श्रियाऽऽप्रशस्यते यस्य व्रतमु न मीयते तद्वद्भव ॥३॥
पदार्थः
(यः) (उ) (श्रिया) शोभया (दमेषु) गृहेषु (आ) (दोषा) रात्रौ (उषसि) दिने (प्रशस्यते) प्रशस्तो जायते (यस्य) (व्रतम्) शीलम् (न) (मीयते) हिंस्यते ॥३॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽग्नेः शीलं स्वरूपमनाद्यविनाशि वर्त्तते तथा सर्वेषामीश्वरजीवाकाशादीनां पदार्थानां नित्ये वर्त्तेते ॥३॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थ
हे विद्वान् ! आप (यः) जो (दमेषु) घरों में (दोषा) वा रात्रि और (उषसि) दिन में (श्रिया) शोभा से (आ,प्रशस्यते) अच्छे प्रकार प्रशंसा को प्राप्त किया जाता और (यस्य) जिसका (व्रतम्,उ) शील (न) न (मीयते) नष्ट होता है, उसके समान हूजिये ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अग्नि का शील और स्वरूप अनादि अविनाशी वर्त्तमान है, वैसे ईश्वर, जीव और आकाश आदि पदार्थों का शील और स्वरूप नित्य वर्त्तमान है ॥३॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा अग्नीचा स्वभाव, स्वरूप, अनादि, अविनाशी आहे तसा ईश्वर जीव व आकाश इत्यादी पदार्थांचा स्वभाव व स्वरूप नित्य आहे. ॥ ३ ॥
English (1)
Meaning
Agni, power of heat and life of the world, is honoured and valued in the homes day and night, and its potential and function is never measured out.
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