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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 8/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    य उ॑ श्रि॒या दमे॒ष्वा दो॒षोषसि॑ प्रश॒स्यते॑। यस्य॑ व्र॒तं न मीय॑ते॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । ऊँ॒ इति॑ । श्रि॒या । दमे॑षु । आ । दो॒षा । उ॒षसि॑ । प्र॒ऽश॒स्यते॑ । यस्य॑ । व्र॒तम् । न । मीय॑ते ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य उ श्रिया दमेष्वा दोषोषसि प्रशस्यते। यस्य व्रतं न मीयते॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। ऊँ इति। श्रिया। दमेषु। आ। दोषा। उषसि। प्रऽशस्यते। यस्य। व्रतम्। न। मीयते॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे विद्वँस्त्वं यो दमेषु दोषोषसि श्रियाऽऽप्रशस्यते यस्य व्रतमु न मीयते तद्वद्भव ॥३॥

    पदार्थः

    (यः) (उ) (श्रिया) शोभया (दमेषु) गृहेषु (आ) (दोषा) रात्रौ (उषसि) दिने (प्रशस्यते) प्रशस्तो जायते (यस्य) (व्रतम्) शीलम् (न) (मीयते) हिंस्यते ॥३॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽग्नेः शीलं स्वरूपमनाद्यविनाशि वर्त्तते तथा सर्वेषामीश्वरजीवाकाशादीनां पदार्थानां नित्ये वर्त्तेते ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

    पदार्थ

    हे विद्वान् ! आप (यः) जो (दमेषु) घरों में (दोषा) वा रात्रि और (उषसि) दिन में (श्रिया) शोभा से (आ,प्रशस्यते) अच्छे प्रकार प्रशंसा को प्राप्त किया जाता और (यस्य) जिसका (व्रतम्,उ) शील (न)(मीयते) नष्ट होता है, उसके समान हूजिये ॥३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अग्नि का शील और स्वरूप अनादि अविनाशी वर्त्तमान है, वैसे ईश्वर, जीव और आकाश आदि पदार्थों का शील और स्वरूप नित्य वर्त्तमान है ॥३॥

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    विषय

    अहिंसित व्रतोंवाला

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र में प्रभु को 'चारुप्रतीक' कहा था । वस्तुतः वे प्रभु ही सब शरीरों को-शरीरावयवों को–श्रीयुक्त करते हैं । (यः) = जो प्रभु (उ) = निश्चय से (दमेषु) = सब शरीरों में (श्रिया) = श्री की स्थापना से (दोषा उषसि) = रात्रि और दिन में (आ प्रशस्यते) = सर्वत्र स्तुति किये जाते हैं। शरीर में बल है तो वह बल उस प्रभु का ही है, बुद्धि है तो वह बुद्धि उस प्रभु की ही है । सब तेज़ उसी का तो है । २. ये प्रभु वे हैं (यस्य) जिनका (व्रतम्) = व्रत व नियम (न मीयते) = हिंसित नहीं किया जाता । प्रभु के नियमों को कोई भी तोड़ने में समर्थ नहीं है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - सब श्री उस प्रभु की है। उसके नियम अटूट हैं। उपासक को भी अपने जीवन को व्रतीजीवन बनाना है ।

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    विषय

    सूर्यवत् उत्तम नायक के कर्त्तव्यों का वर्णन ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार अग्नि, सूर्य, विद्युत् आदि ( दमेषु ) घरों में, ( गृहकार्यों में ( श्रिया ) अपनी कान्ति से ( दोषा उषसि ) दिन रात उत्तम ही कहा जाता है ( यस्य व्रतं न मीयते ) जिसका व्रत, कर्म और स्वभाव, प्रकाश दाह आदि कभी नष्ट नहीं होता है। उसी प्रकार ( यः उ ) जो पुरुष ( दमेषु ) गृहों में, गृहस्थों में ( दोषा उपसि ) दिन और रात ( श्रिया ) उत्तम लक्ष्मी, धनैश्वर्य सम्पदा से रहता है और ( यस्य व्रतं न मीयते ) जिसका व्रत, नित्य धर्माचरण कभी खण्डित नहीं होता है वह ही ( प्रशस्यते ) प्रशंसा के योग्य होता है। उसी प्रकार जो राजा ( दमेषु ) प्रजा और शत्रुओं के दमन कार्यों में ( श्रिया ) शोभा, शान या बड़ी राजलक्ष्मी सहित समर्थ रहे और जिसका ( व्रतं ) आज्ञा या नियम, कानून न टूटें वह दिन रात प्रशंसनीय है। ( ३ ) परमेश्वर का व्रत, नियम कभी नहीं टूटता वह ( दमेषु ) हर्षावसरों में ( श्रिया ) सेवा भजन द्वारा दिन रात ( प्रशस्यते ) स्तुति किया जाने योग्य है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषि:॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः– १ गायत्री । २ निचृत् पिपीलिकामध्या गायत्री। ३, ५ निचृद्गायत्री। ४ विराड् गायत्री। ६ निचृदनुष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा अग्नीचा स्वभाव, स्वरूप, अनादि, अविनाशी आहे तसा ईश्वर जीव व आकाश इत्यादी पदार्थांचा स्वभाव व स्वरूप नित्य आहे. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, power of heat and life of the world, is honoured and valued in the homes day and night, and its potential and function is never measured out.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    In the praise of experts in technology.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O skilled in technology ! you are admired day and night in all quarters because of your brilliance. It never decays your politeness and nature. You stay on with such virtues.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The form and nature of fire are eternal. The same way the form and nature of God soul and firmament are identical with that fire. (We should never forget this truth-Ed.).

    Foot Notes

    (दमेषु) गृहेषु । = In the homes or quarters. (प्रशस्यते) प्रशस्तो जायते । = Becomes admired. (व्रतम् ) शीलम् | Nature. (मीयते) हिंस्यते = Decays.

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