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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 11/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    स ह॑व्य॒वाळम॑र्त्य उ॒शिग्दू॒तश्चनो॑हितः। अ॒ग्निर्धि॒या समृ॑ण्वति॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । ह॒व्य॒ऽवाट् । अम॑र्त्यः । उ॒शिक् । दू॒तः । चनः॑ऽहितः । अ॒ग्निः । धि॒या । सम् । ऋ॒ण्व॒ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स हव्यवाळमर्त्य उशिग्दूतश्चनोहितः। अग्निर्धिया समृण्वति॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। हव्यऽवाट्। अमर्त्यः। उशिक्। दूतः। चनःऽहितः। अग्निः। धिया। सम्। ऋण्वति॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    योऽग्निरिव हव्यवाडमर्त्य उशिग्दूतश्चनोहितो विद्वान् धिया समृण्वति स एवास्मान् शिक्षयितुं शक्नोति ॥२॥

    पदार्थः

    (स) (हव्यवाट्) यो हव्यान् दातुमर्हाणि वस्तूनि वहति प्राप्नोति (अमर्त्यः) मरणधर्मरहितः (उशिक्) कामयमानः (दूतः) अविद्यायाः पारे विद्याया गमयिता (चनोहितः) चनःस्वन्नादिषु हितो हितकारी (अग्निः) पावकइव (धिया) कर्मणा प्रज्ञया वा (सम्) (ऋण्वति) गच्छति जानाति वा ॥२॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽग्निः स्वकर्मणा दूतवत् कार्य्याणि साध्नोति तथैव विद्वांसो राजकार्य्यादीनि साद्धुं शक्नुवन्ति ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    जो पुरुष (अग्निः) अग्नि के तुल्य तेजस्वी (हव्यवाट्) ग्रहण करने योग्य हवनसामग्री को प्राप्त (अमर्त्यः) मरणरूप धर्म से रहित (उशिक्) कामना करता हुआ (दूतः) अविद्या आदि से पृथक् दूर विद्या को प्राप्त करानेवाला (चनोहितः) अन्नादिकों में वृद्धिरूप हितकर्म करनेवाला विद्वान् पुरुष (धिया) सुकर्म से वा उत्तम बुद्धि से (सम्) (ऋण्वति) चलता वा श्रेष्ठ बुद्धियुक्त होकर उन कर्मों को जानता है (सः) वही पुरुष हम लोगों को शिक्षा कर सकता है ॥२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अग्नि अपने व्यापार से दूत के सदृश कार्य्यों को सिद्ध करता है, वैसे ही विद्वान् लोग राज्य के कार्य्य आदिकों को सिद्ध कर सकते हैं ॥२॥

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    विषय

    सात्त्विक अन्न का सेवन

    पदार्थ

    [१] (सः) = वे प्रभु (हव्यवाट्) = सब हव्य पदार्थों को प्राप्त करानेवाले हैं। (अमर्त्यः) = हव्यपदार्थों को प्राप्त कराके हमें मृत्यु से बचानेवाले हैं। (उशिक्) = सदा जीव के हित की कामनावाले हैं। इस हितसाधन के लिए ही (दूतः) = उसे ज्ञान का सन्देश देनेवाले हैं तथा (चनोहितः) = सात्त्विक अन्न में निहित हैं, अर्थात् सात्त्विक अन्न के सेवन से ही सत्त्वशुद्धि होकर, स्मृति की प्राप्ति होती है। मैं कौन हूँ? क्यों आया हूँ? इन बातों का स्मरण होने पर वासना का विनाश होता है और वासना विनाश से प्रभुदर्शन होता है। [२] वे (अग्निः) = अग्रणी प्रभु (धिया) = बुद्धि द्वारा (समृण्वति) = संगत होते हैं 'दृश्यते त्वग्रया बुद्धया' सूक्ष्म बुद्धि से ही तो प्रभुदर्शन होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु हव्यपदार्थों को देकर हमें असमय की मृत्यु से बचाते हैं। हमारे हित के लिए हमें ज्ञान देते हैं। सात्त्विक अन्न के सेवन से बुद्धि सूक्ष्म होने पर प्रभु का दर्शन होता है।

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    विषय

    पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (सः) वह विद्वान् पुरुष (हव्यवाड्) दान देने और लेने योग्य पदार्थों को प्राप्त करने और अन्यों को प्राप्त कराने हारा (अमर्त्यः) साधारण पुरुषों से विशेष (उशिक्) अग्नि के समान तेजस्वी, सर्वप्रिय, उत्तम पदार्थों की कामना करने वाला (दूतः) दुष्टों को संतापदायक और सेवा करने योग्य, (चनोहितः) पचन योग्य अन्न और उत्तम वचन योग्य ज्ञानादि का हितकारी, उसको धारण करने वाला (अग्निः) अग्रणी हो वह (धिया) बुद्धि और उत्तम कर्म से (सम् ऋण्वति) अच्छी प्रकार समस्त कार्यों को जाने और उत्तम मार्ग पर चले। परमेश्वर स्तुतियोग्य और ऐश्वर्य प्राप्त कराने से ‘हव्यवाड्’, (उशिग्) तेजोमय, अन्नादि से हितकारी है। वह अपनी धारण शक्ति से सर्वत्र (सम् ऋण्वति) समानभाव से व्यापक हो रहा है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः– १, २, ५, ७, ८ निचृद्गायत्री॥ ३, ९ विराड् गायत्री । ४, ६ गायत्री॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा अग्नी आपल्या व्यवहाराने दूतासारखे कार्य सिद्ध करतो, तसेच विद्वान लोक राज्याचे कार्य इत्यादींना सिद्ध करू शकतात. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    He, carrier of holy yajnic offerings, immortal, charming, messenger of fragrance, lover of the food of yajna for all, Agni, moves forward by virtue of his own light and intelligence.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Again the duties of the learned persons are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    He alone is able to teach us who like Agni (fire) conveys all proper objects, is immortal, by the nature of the soul and is desirous of bringing about the welfare of all. Such a learned person is like a messenger who removes ignorance and brings the light of knowledge. He takes nourishing good food and with his intellect knows all well.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As Agni (fire or electricity) is able to accomplish many works with its power of action, and in the same manner, the enlightened persons are able to do many works of administration.

    Foot Notes

    (दूत:) अविद्यायाः पारे विद्याया गमयिता = Remover of ignorance and leading to the knowledge. (चनोहितः) चन: स्वन्नादिषु हितो हितकारी | = Taking nourishing and suitable good. (ऋणवाति) गच्छति जानाति वा। = Goes or knows.

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