ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 11/ मन्त्र 5
ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः
देवता - अग्निः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
अदा॑भ्यः पुरए॒ता वि॒शाम॒ग्निर्मानु॑षीणाम्। तूर्णी॒ रथः॒ सदा॒ नवः॑॥
स्वर सहित पद पाठअदा॑भ्यः । पु॒रः॒ऽए॒ता । वि॒शाम् । अ॒ग्निः । मानु॑षीणाम् । तूर्णिः॑ । रथः॑ । सदा॑ । नवः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अदाभ्यः पुरएता विशामग्निर्मानुषीणाम्। तूर्णी रथः सदा नवः॥
स्वर रहित पद पाठअदाभ्यः। पुरःऽएता। विशाम्। अग्निः। मानुषीणाम्। तूर्णिः। रथः। सदा। नवः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 11; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वांसः किं कुर्य्युरित्याह।
अन्वयः
विद्वान् तूर्णिर्नवो रथइवाऽग्निरिव मानुषीणां विशां सदाऽदाभ्यः पुरएता भवेत् ॥५॥
पदार्थः
(अदाभ्यः) हिंसितुमनर्हः (पुरएता) यः पुर एति सः (विशाम्) प्रजानाम् (अग्निः) पावक इव (मानुषीणाम्) मनुष्यसम्बन्धिनीनाम् (तूर्णिः) सद्यो गामी (रथः) उत्तमं यानम् (सदा) सर्वस्मिन् काले (नवः) नूतनः ॥५॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। विद्वांसो यथा शीघ्रगामिना नवेन रथेन सद्योऽभीष्टं स्थानं गच्छति तथैव निर्वैरा भूत्वा सर्वानभीष्टाः सद्विद्याः सद्यः प्रापय्य कृतकृत्यान् संपादयेयुः ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्वान् लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
विद्वान् पुरुष (तूर्णिः) शीघ्र चलनेवाला और (नवः) नवीन (रथः) उत्तम सवारी और (अग्निः) अग्नि के सदृश प्रकाशित (मानुषीणाम्) मनुष्य संबन्धिनी (विशाम्) प्रजाओं की (सदा) सब काल में (अदाभ्यः) परस्पर हिंसा का वारणकर्ता और (पुरएता) अग्रगामी होवें ॥५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। विद्वान् लोग जैसे शीघ्रगामी नवीन रथ से शीघ्र अपने वाञ्छित स्थान को कोई एक मनुष्य पहूँचता है, वैसे वैर को त्याग के सब लोगों को अपनी इच्छानुकूल सद्विद्याओं की शीघ्र शिक्षा देकर उनका जन्म सफल करें ॥५॥
विषय
सदा नवीन 'रथ'
पदार्थ
[१] गतमन्त्र में कहा था कि देव प्रभु को अपना आधार बनाते हैं। उस प्रभु रूप रथ का ही वर्णन प्रस्तुत मन्त्र में है, वे प्रभु (अदाभ्यः) = किसी से हिंसित होने योग्य नहीं। (अग्निः) = वे अग्रणी हैं। (मानुषीणां विशाम्) = विचारशील प्रजाओं के (पुरः एता) = आगे चलनेवाले हैं, उनके पथप्रदर्शक हैं। प्रभु की प्रेरणा विचारशील पुरुष ही सुनते हैं। [२] प्रभु इन विचारशील पुरुषों के लिए एक रथ के समान हैं, जो (रथः) = रथ (तूर्णि:) = त्वरायुक्त है- त्वरित गतिवाला है- हमें शीघ्रता से लक्ष्य स्थान पर पहुँचानेवाला है। यह रथ (सदानवः) = सदा नवीन है। इसमें मरम्मत की आवश्यकता नहीं पड़ती। अतएव यह (नवः) = स्तुत्य है [नु स्तुतौ] । एवं ये विचारशील पुरुष इस प्रभुरूप रथ द्वारा अपने लक्ष्य-स्थान पर पहुँचनेवाले होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमारे लिए एक रथ के समान हैं, जो रथ कभी हिंसित नहीं होता, हमारी अग्रगति का कारण बनता है- त्वरायुक्त है- सदा नवीन है।
विषय
पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
(तूर्णीरथः) अति वेगवान् रथ जिस प्रकार मानुषीणाम् (विशाम् पुरः एता) मनुष्य प्रजाओं के बीच सबसे आगे चलता है उसी प्रकार (मानुषीणाम्) मननशील, मनुष्य (विशाम्) प्रजाओं के बीच (अग्निः) अग्नि के समान तेजस्वी, अग्रणी, ज्ञानवान् पुरुष (अदाभ्यः) किसी से भी मारा न जा सकने योग्य, बलवान् और रक्षा करने योग्य, (तूर्णी) कार्य करने में क्षिप्रकारी (रथः) वेगवान्, बलवान् और (सदानवः) सदा नवीन, अति प्रसन्न, सर्वप्रिय सर्वस्तुत्य होकर (पुरः एता) आगे २ चलने हारा हो। (२) परमेश्वर नित्य, अहिंसक सर्व से पूर्व विद्यमान, सबका तारक, रसस्वरूप एवं सदा स्तुत्य है। इति नवमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः– १, २, ५, ७, ८ निचृद्गायत्री॥ ३, ९ विराड् गायत्री । ४, ६ गायत्री॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा एखादा विद्वान माणूस शीघ्र चालणाऱ्या नवीन रथाने ताबडतोब इच्छित स्थानी पोचतो, तसेच वैराचा त्याग करून इच्छानुकूल सर्व लोकांना सद्विद्येचे शिक्षण देऊन त्यांचा जन्म सफल करावा. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Irrepressible and indestructible, going forward in front of the people, fiery leader of the nation, instant starter, torch bearer of humanity and warrior, ever new: such is Agni, pioneer and leader.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should learned persons do is replied here.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
An enlightened person takes immediate decision and who is quick-going like a new chariot. He is purifier like the fire and becomes the inviolable leader of the people.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
It is the duty of the enlightened persons to be free from malice and to convey to human beings the knowledge of all good sciences. It enables them to accomplish their desirable objects, like as a min who goes to a distant place with the help of a newly manufactured fast going chariot.
Foot Notes
(अदाम्यः) हिसितुमनर्हः | दम्नोति वधकर्मा (N.G. 2, 19) = Inviolable.
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