ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 11/ मन्त्र 4
अ॒ग्निं सू॒नुं सन॑श्रुतं॒ सह॑सो जा॒तवे॑दसम्। वह्निं॑ दे॒वा अ॑कृण्वत॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्निम् । सू॒नुम् । सन॑ऽश्रुतम् । सह॑सः । जा॒तऽवे॑दसम् । वह्नि॑म् । दे॒वाः । अ॒कृ॒ण्व॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निं सूनुं सनश्रुतं सहसो जातवेदसम्। वह्निं देवा अकृण्वत॥
स्वर रहित पद पाठअग्निम्। सूनुम्। सनऽश्रुतम्। सहसः। जातऽवेदसम्। वह्निम्। देवाः। अकृण्वत॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 11; मन्त्र » 4
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ सन्तानशिक्षाविषयमाह।
अन्वयः
हे विद्वांसः ! स्वयं देवाः सन्तो भवन्तः सहसः सूनुं वह्निं सनश्रुतं जातवेदसमग्निमिवाऽकृण्वत ॥४॥
पदार्थः
(अग्निम्) पावकमिव तेजस्विनम् (सूनुम्) अपत्यवत्सेवकम् (सनश्रुतम्) यः सनातनानि शास्त्राणि शृणोति तम् (सहसः) प्रशस्तबलयुक्तस्य (जातवेदसम्) प्राप्तविद्यम् (वह्निम्) सद्गुणानां वोढारम् (देवाः) विद्वांसः (अकृण्वत) कुर्वन्तु ॥४॥
भावार्थः
विद्वद्भिः स्वापत्यवदन्यापत्यानि विदित्वा प्रेम्णा विद्यायुक्तानि बहुश्रुतानि कृत्वाऽऽनन्दयितव्यानि ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
अब सन्तानों की शिक्षा विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे विद्वानो ! स्वयं (देवाः) विद्वान् हुए आप लोग (सहसः) प्रशंसा करने योग्य विद्या बलवाले के (सूनुम्) पुत्र के सदृश सेवा करने (वह्निम्) अच्छे ही गुणों को धारण करने और (सनश्रुतम्) सनातन शास्त्रों को श्रवण करनेवाले (जातवेदसम्) विद्या से युक्त जिज्ञासु को (अग्निम्) अग्नि के समान तेजस्वी (अकृण्वत) करो ॥४॥
भावार्थ
विद्वान् लोगों को चाहिये कि अपने पुत्रों के सदृश और लोगों के पुत्रों को समझ कर स्नेह से विद्यायुक्त और बहुत शास्त्रों को सुननेवाले अर्थात् जिन्होंने बहुत शास्त्र सुने हों, ऐसे करके आनन्दसहित करें ॥४॥
विषय
प्रभु हमारे 'वह्नि' [वाहक] हैं
पदार्थ
[१] (देवा:) = देववृत्ति के व्यक्ति (अग्निम्) = उस अग्रणी प्रभु को (वह्निम्) = अपना वहन करनेवाला (अकृण्वत) = करते हैं। प्रभु पर ये आश्रित होते हैं- प्रभु इनके रथ बनते हैं। इस रथ द्वारा ये अपनी जीवनयात्रा को पूर्ण कर पाते हैं। [२] वे प्रभु इनका रथ बनते हैं जो कि (सहसः सूनुम्) = बल के पुत्र-बल के पुतले बल के पुञ्ज । वे इन देवों को भी बल प्राप्त कराते हैं। (सन-श्रुतम्) = वे प्रभु सनातन ज्ञानवाले हैं। प्रभु का ज्ञान नैमित्तिक नहीं। प्रभु से ही उपासक को ज्ञान प्राप्त होता है। प्रभु का ज्ञान स्वाभाविक है। (जातवेदसम्) = प्रत्येक पदार्थ को वे प्रभु जानते हैं, अथवा कणकण में वे विद्यमान हैं [जाते-जाते विद्यते] ।
भावार्थ
भावार्थ– देववृत्ति के व्यक्ति प्रभु को अपना आधार बनाते हैं। वस्तुतः प्रभु को आधार बनाना ही उन्हें 'देव' बनानेवाला होता है। प्रभु इन्हें शक्ति व ज्ञान देते हैं। - ऋषिः – विश्वामित्रः ॥ देवता – अग्निः ॥ छन्दः - निचृद्गायत्री ॥ स्वरः – षड्जः ॥
विषय
पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
जिस प्रकार (देवाः) व्यवहार और शिल्पकुशल विद्वान् लोग (सहसः सूनुं) बल के सञ्चालक और उत्पादक (अग्निं) अग्नि, तत्व, विद्युत् को (वह्निं) स्थादि को देश से देशान्तर में उठाकर लेजाने में समर्थ (अकृण्वत) बना लेते हैं । उसी प्रकार (अग्निम्) अग्रणी और ज्ञानवान् (सन-श्रुतम्) सनातन शास्त्रों को श्रवण करने हारे (जातवेदसम्) प्राप्त करके विद्वान् हुए एवं ऐश्वर्यवान् (सहसः सूनुं) बल के उत्पादक, सैन्यबल के सञ्चालक पुरुष को (देवाः) व्यवहारकुशल पुरुष (वह्निं) राष्ट्र कार्य को वहन करने में समर्थ (अकृण्वत) बनावें, उसे प्रधान सञ्चालक बनावें। (२) सनातन से प्रसिद्ध एवं श्रवण मनन किये गये ज्ञानमय, सर्वप्रेरक, उत्पादक, सर्वज्ञ सर्वपालक परमेश्वर को लक्ष्य कर विद्वान् जन सब कार्य करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः– १, २, ५, ७, ८ निचृद्गायत्री॥ ३, ९ विराड् गायत्री । ४, ६ गायत्री॥
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वान लोकांनी इतरांच्या पुत्रांना आपल्या पुत्राप्रमाणे समजून स्नेहाने विद्यायुक्त करावे, तसेच बहुश्रुुत व आनंदी करावे. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
All ye noble and brilliant sages and scholars, Agni is potent, child of courage and patience, famous of old, and he knows all that is born. Elect him as the leader, bearer of the yajnic business of the world to carry the fragrance of yajna all round.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The subject of the education of children is dealt.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned persons ! yourselves being great scholars make the son of a mighty person virtuous and listener of holy eternal scriptures and knower of various subjects. Those themes are inspiring, shining and purifier like the fire.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The enlightened persons should regard others' children as their own and they should lovingly be imparted with true knowledge. Such people should listen to the several Shastras (sciences) and thus be able to enjoy Bliss.
Foot Notes
(वह्निम् ) सद्गुणानां वोढारम् । = Bearer of noble virtues. (सनश्रुतम् ) यः सनातनानि शास्त्राणि शृणोति तम् । = The listener of eternal Shastras.
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