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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 11/ मन्त्र 6
    ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    सा॒ह्वान्विश्वा॑ अभि॒युजः॒ क्रतु॑र्दे॒वाना॒ममृ॑क्तः। अ॒ग्निस्तु॒विश्र॑वस्तमः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सा॒ह्वान् । विश्वाः॑ । अ॒भि॒ऽयुजः॑ । क्रतुः॑ । दे॒वाना॑म् । अमृ॑क्तः । अ॒ग्निः । तु॒विश्र॑वःऽतमः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    साह्वान्विश्वा अभियुजः क्रतुर्देवानाममृक्तः। अग्निस्तुविश्रवस्तमः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    साह्वान्। विश्वाः। अभिऽयुजः। क्रतुः। देवानाम्। अमृक्तः। अग्निः। तुविश्रवःऽतमः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 11; मन्त्र » 6
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या योऽमृक्तः साह्वान् क्रतुरग्निरिव शुद्धस्तुविश्रवस्तमो देवानां विश्वा अभियुजः प्रजाः सर्वतो रक्षति सएव सर्वैः प्रजाजनैः सत्कर्त्तव्यः ॥६॥

    पदार्थः

    (साह्वान्) षोढा। अत्र दाश्वान्साह्वान्मीढ्वाँश्चेति निपातनात् सिद्धिः। (विश्वाः) अखिलाः (अभियुजः) या आभिमुख्येन युज्यन्ते ताः प्रजाः (क्रतुः) प्राज्ञः (देवानाम्) विदुषां मध्ये (अमृक्तः) अन्यैरहिंस्यः (अग्निः) पावकइव शुद्धस्वरूपः (तुविश्रवस्तमः) अतिशयेन बहुश्रुतः ॥६॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यः कञ्चन न हिनस्ति तं कोऽपि हिंसितुं नेच्छति यो बहूनि शास्त्राण्यध्येतुं वा श्रोतुमिच्छति स प्राज्ञतमो जायते यो यादृशेन भावेन प्रजायां वर्त्तते तं प्रति प्रजाअपि तादृशेन भावेनाभियुङ्क्ते ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (अमृक्तः) जो कि औरों से न मारा जा सके (साह्वान्) क्रोधरहित (क्रतुः) बुद्धिमान् और (अग्निः) अग्नि के सदृश शुद्धस्वभाव वाला (तुविश्रवस्तमः) अतिशय कर बहुत शास्त्रों को जिसने सुना हो (देवानाम्) पण्डितों के बीच में (विश्वाः) संपूर्ण (अभियुजः) अपने अनुकूल व्यवहार करनेवाली प्रजाओं की सब प्रकार रक्षा करता है, वही सब प्रजाजनों से सत्कार पाने योग्य है ॥६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो किसी को नहीं मारता उसको मारने की कोई इच्छा नहीं करता, जो पुरुष बहुत शास्त्रों को पढ़ने और सुनने की इच्छा करता है, वह अति बुद्धिमान् होता है, जो जैसी भावना से प्रजा में वर्त्ताव रखता है, उसके साथ प्रजा भी उसी भावना से वर्त्ताव रखती है ॥६॥

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    विषय

    वासनाओं का मर्षण

    पदार्थ

    [१] ये प्रभु (विश्वाः) = करनेवाली वासनाओं का (साह्वान् अभियुजः) = सब हमें अभियुक्त करनेवाली- हमारे पर आक्रमण अभिभव करनेवाले हैं। हमारी वासनाओं को प्रभु कुचल देते हैं । इन वासनाओं को कुचलकर ये देवों को शक्ति प्राप्त कराते हैं। वस्तुतः प्रभु ही (देवानां क्रतुः) = देवों की शक्ति हैं। (अमृक्तः) = वे प्रभु कभी हिंसित होनेवाले नहीं। [२] (अग्निः) = अग्रणी प्रभु (तुविश्रवस्तमः) = अत्यन्त विशाल ज्ञानवाले हैं [तुवि-महान्]। इस ज्ञान को देकर ही हमें आगे और आगे ले चलते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु हमारे वासनारूप शत्रुओं को अभिभूत करके हमें शक्तिशाली बनाते हैं। ज्ञान देकर हमें उन्नतिपथ पर बढ़नेवाला करते हैं।

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    विषय

    पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (अग्निः) अग्रणी नायक अग्नि के समान तेजस्वी पुरुषः (तुविश्रवस्तमः) बहुत ज्ञानवान्, बहुत से ऐश्वर्यों से सम्पन्न, (देवानाम्) प्राणों के बीच (अमृक्तः) अमृतः, [ ककारोपजनः ] अमर आत्मा के समान वा (देवनाम्) विजयेच्छुक वीर पुरुषों के बीच (अमृक्तः) शत्रुजनों से न मारा जा सकने योग्य, (क्रतुः) कर्मकुशल और (विश्वान् अभियुजः) समस्त अभियोक्ता, आक्रमणकारी प्रतिस्पर्द्धी शत्रुओं को (साह्वान्) पराजित करने वाला और सम्मुख आई सहयोगिनी प्रजाओं को भी वश करने वाला हो। परमेश्वर सब पृथ्वी तेज आदि तत्वों में अमृत, नित्य, सबका वशकर्त्ता महान् ‘ऋतु’ कर्त्ता एवं ज्ञाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः– १, २, ५, ७, ८ निचृद्गायत्री॥ ३, ९ विराड् गायत्री । ४, ६ गायत्री॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो कुणाला मारीत नाही त्याला मारण्याची इच्छा कोणी करीत नाही. जो पुरुष पुष्कळ शास्त्रांचे अध्ययन व श्रवण करण्याची इच्छा करतो तो अत्यंत बुद्धिमान असतो. जो ज्या भावनेने प्रजेशी वागतो त्याच्या बरोबर प्रजाही त्याच भावनेने वागते. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Patient yet most irresistible of all the front rank people, most enlightened of the noble and generous, inviolable, Agni is well read and most renowned leading light.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The learned persons' duties are indicated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! that man alone is to be respected by all people, who is inviolable, or does not harm anyone, has the power of endurance, is wise and pure like the fire. He is the best listener of many Shastras and protects the people from all directions. All the subjects are inclined towards the enlightened truthful persons.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    He who does not harm any one, none wishes to harm him also. Such a learned person desires to study or listen to many Shastras, till he becomes the best among the wise. Whatever attitude a man has towards the people, they also reciprocate in the same vein.

    Foot Notes

    (साह्वान् ) षोढा | अत्र दाश्वान् साह्लान्मीढ्वांश्वेतिनिपातनात् सिद्धिः = Having the power of endurance. (अमुक्त:) अन्यैरहिस्यः । = Inviolable, not to be harmed by any one. (अग्नि:) पावकइव शुद्धस्वरूपः = Pure by nature like the fire. (ऋतु:) प्राज्ञः । ऋतुरिति प्रज्ञानाम ( N.G. 3, 9 ) = A wise man. अनप्रकरणवशात् प्रज्ञासम्पन्नः प्राज्ञः । तुवीति बहुनाम (N.G. 3, 1 ) = Plenty.

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