ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 12/ मन्त्र 5
ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः
देवता - इन्द्राग्नी
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
प्र वा॑मर्चन्त्यु॒क्थिनो॑ नीथा॒विदो॑ जरि॒तारः॑। इन्द्रा॑ग्नी॒ इष॒ आ वृ॑णे॥
स्वर सहित पद पाठप्र । वा॒म् । अ॒र्च॒न्ति॒ । उ॒क्थिनः॑ । नी॒थ॒ऽविदः॑ । ज॒रि॒तारः॑ । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । इषः॑ । आ । वृ॒णे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र वामर्चन्त्युक्थिनो नीथाविदो जरितारः। इन्द्राग्नी इष आ वृणे॥
स्वर रहित पद पाठप्र। वाम्। अर्चन्ति। उक्थिनः। नीथऽविदः। जरितारः। इन्द्राग्नी इति। इषः। आ। वृणे॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 12; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे इन्द्राग्नी इव वर्त्तमानौ सभासेनेशौ ये नीथाविद उक्थिनो जरितारो वां प्रार्चन्ति तेभ्योऽहमिष आवृणे ॥५॥
पदार्थः
(प्र) (वाम्) युवाम् (अर्चन्ति) सत्कुर्वन्ति (उक्थिनः) गुणप्रशंसकाः (नीथाविदः) ये नीथान् विनयान् विन्दन्ति ते (जरितारः) स्तावकाः (इन्द्राग्नी) विद्युत्सूर्याविव वर्त्तमानौ (इषः) अन्नादीनि (आ) समन्तात् (वृणे) प्राप्नुयाम् ॥५॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये पदार्थानां गुणकर्मस्वभावान् जानन्ति त एव युद्धं, न्यायं च कर्तुं शक्नुवन्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (इन्द्राग्नी) बिजुली और सूर्य्य के सदृश प्रकाश सहित विद्यमान सभापति सेनापतियो ! जो (नीथाविदः) नम्रतायुक्त (उक्थिनः) उत्तम गुणों की प्रशंसा करने तथा (जरितारः) ईश्वर की स्तुति करनेवाले (वाम्) तुम दोनों को (प्र, अर्चन्ति) विशेष सत्कार करते हैं उनसे मैं (इषः) अन्न आदि को (आ, वृणे) सब ओर से प्राप्त होऊँ ॥५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो पुरुष पृथिवी आदि पदार्थों के गुण कर्म स्वभावों को जानते हैं, वे ही युद्ध और न्यायाचरण कर सकते हैं ॥५॥
विषय
स्तवनमार्ग पर चलना-वासना क्षय
पदार्थ
[१] हे (इन्द्राग्नी) = इन्द्र और अग्नि, (वाम्) = आपको (उक्थिन:) = स्तोता लोग-आपके गुणों का उच्चारण करनेवाले लोग (प्र अर्चन्ति) = प्रकर्षेण पूजित करते हैं। (नीथाविदः) = मार्ग को जाननेवाले लोग, अर्थात् मार्ग पर चलनेवाले लोग आपका अर्चन करते हैं। (जरितार:) = वासनाओं को जीर्ण करनेवाले लोग आपका अर्चन करते हैं। प्रभुस्तवन से [उक्थ] मार्गदर्शन होता है [नीथा] और शक्ति प्राप्त करके विघ्नों को हम दूर करनेवाले बनते हैं [जरितारः] । यही उन्नति का मार्ग है। [२] मैं इन इन्द्र और अग्नि से ही (इष:) = प्रेरणाओं को (आवृणे) = वरता हूँ-प्रेरणाओं को प्राप्त करने का प्रयत्न करता हूँ। मेरा प्रत्येक कार्य शक्ति व प्रकाश-वर्धन के लिए होता है।
भावार्थ
भावार्थ- बल व प्रकाश प्राप्त करनेवाले व्यक्ति (क) प्रभु स्तवन करते हैं, (ख) भक्ति मार्ग पर चलते हैं, (ग) वासनाओं को जीर्ण करने का प्रयत्न करते हैं।
विषय
वायु-सूर्यवत् विद्वानों और वीरों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (इन्द्राग्नी) विद्युत् सूर्य के समान तेजस्वी पुरुषो ! (उक्थिनः) उत्तम ज्ञान और गुणों वाले, (नीथाविदः) विनयाचारों और उत्तम मार्गों को जानने वाले, (जरितारः) विद्वान् पुरुष (वाम् अर्चन्ति) आप दोनों का सन्मान करते हैं। मैं भी (इषे) अन्नादि ऐश्वर्य,उत्तम प्रेरणा और अभिलाषा की पूर्ति के लिये (आवृणे) आप दोनों को वरण करता हूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्राग्नी देवते॥ छन्दः– १, ३, ५, ८, ९ निचद्वि रा गायत्री। २, ४, ६ गायत्री। ७ यवमध्या विराड् गायत्री च॥ नवर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे पृथ्वी इत्यादी पदार्थांचे गुण, कर्म, स्वभाव जाणतात तेच युद्ध व न्यायाचरण करू शकतात. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra and Agni, the singers of hymns, pioneers of highways and celebrants honour and worship you. I choose to celebrate you for the sake of sustenance, support and energy.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of the rulers are mentioned.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O President of the Assembly and the Chief Commander of the Army! you who are like electricity and sun. May I obtain food and other necessary things from the persons, who admire the virtues, and are humble and praise the righteous persons.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those persons only are able to fight and dispense justice who know the properties and functions of all objects.
Foot Notes
(नीथाविदः) ये नीथान् विनयान् विन्दन्ति ते। = Humble. (इन्द्राग्नी) विद्युत्सूर्याविव वर्त्तमानौ । = Who are like electricity and the sun.
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