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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 12 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 12/ मन्त्र 8
    ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्द्रा॑ग्नी तवि॒षाणि॑ वां स॒धस्था॑नि॒ प्रयां॑सि च। यु॒वोर॒प्तूर्यं॑ हि॒तम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । त॒वि॒षाणि॑ । वा॒म् । स॒धऽस्था॑नि । प्रयां॑सि । च॒ । यु॒वोः । अ॒प्ऽतूर्य॑म् । हि॒तम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्राग्नी तविषाणि वां सधस्थानि प्रयांसि च। युवोरप्तूर्यं हितम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्राग्नी इति। तविषाणि। वाम्। सधऽस्थानि। प्रयांसि। च। युवोः। अप्ऽतूर्यम्। हितम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 12; मन्त्र » 8
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 12; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुना राजधर्मविषयमाह।

    अन्वयः

    हे इन्द्राग्नी वायुविद्युताविव वर्त्तमानौ सेनासेनाध्यक्षौ ! वां सधस्थानि प्रयांसि तविषाणि च युवोरप्तूर्य्यं हितं भवतु ॥८॥

    पदार्थः

    (इन्द्राग्नी) वायुविद्युताविव सेनासेनाध्यक्षौ (तविषाणि) बलानि (वाम्) युवयोः (सधस्थानि) समानस्थानानि (प्रयांसि) कमनीयानि (च) (युवोः) (अप्तूर्य्यम्) कर्मानुष्ठानाय त्वरितव्यम् (हितम्) सुखसाधकम् ॥८॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि वायुविद्युत्संयोगवत्सेनासेनाध्यक्षावविरुद्धौ स्यातां तर्हि सर्वे कामाः सिध्येयुः ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर राजधर्म विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (इन्द्राग्नी) वायु बिजुली के सदृश ऐक्यमत से वर्त्तमान सेना और सेना के मुख्य अधिष्ठाता ! (वाम्) आप दोनों के (सधस्थानि) तुल्य स्थान में विद्यमान (प्रयांसि) कामना करने योग्य (तविषाणि) बल पराक्रम (च) और (युवोः) आपदोनों के (अप्तूर्य्यम्) कर्म करने के लिये शीघ्रता (हितम्) सुखसाधक हो ॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो वायु और बिजुली के संयोग के समान परस्पर सेना और सेना के स्वामी प्रेमभाव से विरोध छोड़ के वर्त्ताव करें, तो संपूर्ण मनोरथ सिद्ध हों ॥८॥

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    विषय

    शक्ति व प्रकाश का समन्वय

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्राग्नी) = शक्ति व प्रकाश के तत्त्वो ! (वाम्) = आप दोनों के (तविषाणि) = बल (च) = और (प्रयांसि) = प्रयत्न (सधस्थानि) = मिलकर होनेवाले हैं। प्रकाश के बिना शक्ति अधूरी है, शक्ति के बिना प्रकाश अधूरा है। दोनों के मेल में ही मानव का कल्याण है। [२] (युवो:) = आप दोनों में ही (अप्सूर्यम्) = कर्मों द्वारा वासनाओं का संहार (हितम्) = रखा है। शक्ति व प्रकाश द्वारा जब मनुष्य कर्मों में लगा रहता है तब वासनाओं का शिकार नहीं होता।

    भावार्थ

    भावार्थ– शक्ति व प्रकाश का समन्वय करके हम कर्मों में लगे रहें, यह कर्मव्यापृति हमारी वासनाओं का विनाश करेगी।

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    विषय

    सेनाध्यक्ष सभाध्यक्षों का कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे वायु और सूर्य के समान तेजस्वी बलवान् पुरुषो ! जिस प्रकार वायु और सूर्य दोनों के (तविषाणि) बल वा शक्तियां और (प्रयांसि) प्रजाओं को तृप्त करने वाले अन्न जलादि (सधस्थानि) एक ही स्थान पर परस्पर सम्बद्ध रहते हैं और उन दोनों पर ही (अप्तूर्यम्) वृष्टि जलों का लाना निर्भर होता है । उसी प्रकार (वां) तुम दोनों के (तविषाणि) सब बल, कर्म और (प्रयांसि च) प्रजाओं को प्रिय और हृष्ट पुष्ट करने वाले कार्य (सधस्थानि) एक स्थान पर ही हों अर्थात् वे परस्पर अनुकूल रहें। (युवोः) तुम दोनों पर ही (अप्तूर्यम्) कार्यों को शीघ्र सम्पादन करने और प्रजाओं के सञ्चालन का कार्य भी स्थित है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्राग्नी देवते॥ छन्दः – १, ३, ५, ८, ९ निचद्वि रा गायत्री। २, ४, ६ गायत्री। ७ यवमध्या विराड् गायत्री च॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे वायू व विद्युतच्या संयोगाप्रमाणे सेना व सेनेचा स्वामी विरोध सोडून परस्पर प्रेमाने व्यवहार करतील तर संपूर्ण मनोरथ सिद्ध होतील. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra and Agni, your forces, strategic concentrations of the forces deployed and collective resources, are well disposed, and integrated, and your zeal for making a move is instantaneous, everything being just at hand.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of a ruler are told further.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Army and its' Commander ! you are like the air and electricity. May your common dwelling places, (barracks), sufficient strength and promptness in discharging your duties, bestow happiness on all.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    If like the combination of air and the electricity, the army and its commander are in harmony with each other, all their desire and targets may be fulfilled soon. The army standing ready in the barracks crashes severely on the enemy.

    Foot Notes

    (इन्द्राग्नी) वायुविद्युताविव सेनासेनाध्यक्षौ । = The army and its commander who are like the air and electricity, ( (प्रयांसि) कमनीयानि। = Desirable. (हितम् ) सुखसाधकम् । = Accomplisher of happiness. (तविषाणि ) बलानि। = Strength.

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