ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 12/ मन्त्र 6
ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः
देवता - इन्द्राग्नी
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
इन्द्रा॑ग्नी नव॒तिं पुरो॑ दा॒सप॑त्नीरधूनुतम्। सा॒कमेके॑न॒ कर्म॑णा॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । न॒व॒तिम् । पुरः॑ । दा॒सऽप॑त्नीः । अ॒धू॒नु॒त॒म् । सा॒कम् । एके॑न । कर्म॑णा ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्राग्नी नवतिं पुरो दासपत्नीरधूनुतम्। साकमेकेन कर्मणा॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्राग्नी इति। नवतिम्। पुरः। दासऽपत्नीः। अधूनुतम्। साकम्। एकेन। कर्मणा॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 12; मन्त्र » 6
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
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अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे सभासेनेशौ ! यथेन्द्राग्नी साकमेकेन कर्मणा नवतिं पुरो दासपत्नीरधूनुतं तथैव युवां सेनादिभिः शत्रून् कम्पयतम् ॥६॥
पदार्थः
(इन्द्राग्नी) वाय्वग्नी (नवतिम्) एतत्सङ्ख्याताः (पुरः) पालिकाः (दासपत्नीः) ये दस्यन्त्युपक्षिण्वन्ति शत्रून् ते दासास्तेषां पत्नीरिव वर्त्तमानाः किरणाः (अधूनुतम्) (साकम्) सह (एकेन) (कर्मणा) क्रियया ॥६॥
भावार्थः
सभाध्यक्षादिमनुष्यैरैकमत्येन दुष्टान्निवार्य्य श्रेष्ठान् सत्कृत्य धर्म्येणाचरणेन राज्यशासनं कर्त्तव्यम् ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे सभापति सेनापतियो ! जैसे (इन्द्राग्नी) वायु और अग्नि को (साकम्) एक साथ (एकेन) (कर्मणा) एक कर्म से (नवतिम्) नब्बे संख्यायुक्त (पुरः) पालन करनेवाली (दासपत्नीः) शत्रुओं को युद्ध में दूर फेंकनेवाले पुरुषों की स्त्रियों के तुल्य वर्त्तमान सूर्य्य की किरणें (अधूनुतम्) कंपाती हैं वैसे आप दोनों सेना आदिकों से शत्रुओं को कम्पावें ॥६॥
भावार्थ
सभाध्यक्षादि मनुष्यों को चाहिये कि परस्पर एक सम्मति से दुष्ट पुरुषों को उत्तम स्थानों से दूर कर और श्रेष्ठ पुरुषों का सत्कार करके धर्म्मपूर्वक व्यवहार से राज्यप्रबन्ध करें ॥६॥
विषय
दासों की नगरियों का विध्वंस
पदार्थ
[१] हमारे शरीरों में वासनाएँ हमारा क्षय करनेवाली हैं। इसीलिए ये 'दास' कहलाती हैं (दसु उपक्षये) ये वासनाएँ हमारे अन्दर अपने निवास स्थान बना लेती हैं। 'काम' इन्द्रियों में, 'क्रोध' मन में तथा 'लोभ' बुद्धि में अपना किला बनाता है। इस प्रकार वासनाओं की शतश: पुरियाँ यहाँ बन जाती हैं। इन्द्र और अग्नि, शक्ति व प्रकाश के तत्त्व इनका विनाश करते हैं। हे (इन्द्राग्नी) = शक्ति व प्रकाश के तत्त्वो! (दासपत्नी:) = काम आदि जिनके पति हैं, ऐसी (नवतिं पुरः) = इन नव्बे नगरियों को (साकम्) = साथ मिलकर, (एकेन कर्मणा) = एक अद्भुत कर्म से (अधूनुतम्) = कम्पित कर देते हो । [२] शक्ति व प्रकाश अलग-अलग इन असुरपुरियों का विध्वंस नहीं कर पाते। ये मिलकर ही इनका विनाश कर पाते हैं। यही भाव 'साकं' शब्द से व्यक्त किया गया है। 'एकेन कर्मणा' शब्द का अर्थ 'अद्भुत कर्म' है । वस्तुतः इन नगरियों का विध्वंस स्वयं अपने में एक महान् कर्म है।
भावार्थ
भावार्थ- हम शक्ति व प्रकाश का समन्वय करते हुए वासनाओं का विध्वंस कर डालें।
विषय
सेनाध्यक्ष सभाध्यक्षों का कर्त्तव्य।
भावार्थ
(इन्द्राग्नी) वायु और सूर्य के समान बलवान् और तेजस्वी पुरुष (पुरः) अपने सामने स्थित (नवतिम्) ९० (नवे) (दासपत्नीः) शत्रुनाशक सैनिकों को अपने भीतर पालन करने वाली सेनाओं को (एकेन कर्मणा) एक ही समान कर्म के (साकम्) साथ (अधूनुतम्) सञ्चालन करें। इसी प्रकार वे अपने आगे आई ९० शत्रु-सेनाओं को भी एक ही पराक्रम से भय से कम्पित करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्राग्नी देवते॥ छन्दः – १, ३, ५, ८, ९ निचद्वि रा गायत्री। २, ४, ६ गायत्री। ७ यवमध्या विराड् गायत्री च॥ नवर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
सभाध्यक्ष इत्यादींनी परस्पर एका संमतीने दुष्ट पुरुषांचे निवारण करून श्रेष्ठ पुरुषांचा सत्कार करून धर्मपूर्वक व्यवहाराने राज्यप्रबंध करावा. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Indra and Agni, shake up, inspire and arouse with a single clarion call the ninety fortresses yonder of the allied and supporting forces of the benevolent ruler of the republics.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The rulers duties are further explained.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O President of the Assembly and Chief Commander of the Army! the air and fire, shake with one action ninety rays of the sun. They protect from various diseases and face all the objects. In the same manner, you should shake all enemies with your army and other means.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
It is the duty of the President of the Assembly and other officers of the State to wipe out all the wicked with determination but unitedly and by honoring the righteous persons. They should administer the State with righteous conduct.
Translator's Notes
Unfortunately the commentator has not here elucidated what are the ninety rays of the sun referred to in the mantra. It is a matter of research.
Foot Notes
(इन्द्राग्नी ) वाय्वग्नी | = The air and fire. (दासपत्नी:) ये दरयन्त्युपक्षिण्वन्ति शत्रुन् ते दासास्तेषां पत्नीरिव वर्त्तंमानाः किरणाः । = The rays of the sun which protect the destroyers of the enemies like their wives.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The rulers duties are further explained.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O President of the Assembly and Chief Commander of the Army! the air and fire, shake with one action ninety rays of the sun. They protect from various diseases and face all the objects. In the same manner, you should shake all enemies with your army and other means.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
It is the duty of the President of the Assembly and other officers of the State to wipe out all the wicked with determination but unitedly and by honoring the righteous persons. They should administer the State with righteous conduct.
Translator's Notes
Unfortunately the commentator has not here elucidated what are the ninety rays of the sun referred to in the mantra. It is a matter of research.
Foot Notes
(इन्द्राग्नी ) वाय्वग्नी | = The air and fire. (दासपत्नी:) ये दरयन्त्युपक्षिण्वन्ति शत्रुन् ते दासास्तेषां पत्नीरिव वर्त्तंमानाः किरणाः । = The rays of the sun which protect the destroyers of the enemies like their wives.
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