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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 12 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 12/ मन्त्र 7
    ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - यवमध्याविराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्द्रा॑ग्नी॒ अप॑स॒स्पर्युप॒ प्र य॑न्ति धी॒तयः॑। ऋ॒तस्य॑ प॒थ्या॒३॒॑ अनु॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । अप॑सः । परि॑ । उप॑ । प्र । य॒न्ति॒ । धी॒तयः॑ । ऋ॒तस्य॑ । प॒थ्याः॑ । अनु॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्राग्नी अपसस्पर्युप प्र यन्ति धीतयः। ऋतस्य पथ्या३ अनु॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्राग्नी इति। अपसः। परि। उप। प्र। यन्ति। धीतयः। ऋतस्य। पथ्याः। अनु॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 12; मन्त्र » 7
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यथेन्द्राग्नी ऋतस्यापसः परि पथ्या अनु गच्छतोऽनयोर्गतयो धीतय इवोप प्रयन्ति तथा यूयं सन्मार्गं नियमेन गच्छत ॥७॥

    पदार्थः

    (इन्द्राग्नी) वायुविद्युतौ (अपसः) कर्मणः (परि) सर्वतः (उप) समीपे (प्र) (यन्ति) गच्छन्ति (धीतयः) अङ्गुलय इव गतयः। धीतय इत्यङ्गुलिना०। निघं० २। ५। (ऋतस्य) सत्यस्य (पथ्याः) पथि साध्वीर्वीथीः (अनु) ॥७॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथेश्वरसृष्टौ सूर्य्यादिपदार्था नियमेन स्वं स्वं मार्गं गच्छन्ति तथैव मनुष्या धर्म्येण मार्गेण गच्छन्तु ॥७॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली (ऋतस्य) सत्य (अपसः) कर्म के (परि) सब ओर से (पथ्याः) मार्ग में सुखकारक सड़कों के (अनु) अनुकूल जाते हुए इन वायु बिजुलियों की गति (धीतयः) अङ्गुलियों के समान (उप) समीप में (प्र, यन्ति) प्राप्त होती हैं, वैसे ही आप लोग भी श्रेष्ठ मार्ग में नियमपूर्वक चलिये ॥७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे ईश्वर की सृष्टि में सूर्य्य आदि पदार्थ नियम के साथ अपने-अपने मार्गपर चलते हैं, वैसे ही मनुष्य लोग भी धर्मयुक्त मार्ग में चलें ॥७॥

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    विषय

    'कर्मठ-ध्यानी' पुरुष

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्राग्नी) = शक्ति व प्रकाश के तत्त्वो! (अपसः) = कर्मशील पुरुष तथा (धीतयः) = ध्यानशील पुरुष (परि उप प्रयन्ति) = चारों ओर से प्रभु के समीप प्रकर्षेण जानेवाले होते हैं। शक्ति इन्हें कर्मशील बनाती है, प्रकाश [ज्ञान] इनके ध्यान में विशेषता उत्पन्न करता है। [२] ये व्यक्ति सदा (ऋतस्य पथ्याः अनु) = ऋतमार्गों का लक्ष्य करके गतिवाले होते हैं। ये ऋतमार्ग पर चलते हैं। अमृत से सदा दूर रहते हैं। शक्ति व प्रकाश दोनों मिलकर मनुष्य को ऋतपालन के योग्य बनाते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- शक्ति व प्रकाश द्वारा ऋतमार्ग पर चलते हुए हम कर्मशील व ध्यानशील बनें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे ईश्वराच्या सृष्टीत सूर्य इत्यादी पदार्थ नियमाने आपापल्या मार्गाने चालतात, तसेच माणसांनीही धर्मयुक्त मार्गाने चालावे. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra and Agni, lord of power and lord of light and law, the pioneer forces of action and reflection go forward, all round, and close to the target, following the paths of truth and law of rectitude. (Swami Dayanand interprets Indra and Agni as wind and electric energy of space, and the movements of this energy in waves directed to the targets of purpose).

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