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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 16/ मन्त्र 6
    ऋषिः - उत्कीलः कात्यः देवता - अग्निः छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    श॒ग्धि वाज॑स्य सुभग प्र॒जाव॒तोऽग्ने॑ बृह॒तो अ॑ध्व॒रे। सं रा॒या भूय॑सा सृज मयो॒भुना॒ तुवि॑द्युम्न॒ यश॑स्वता॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒ग्धि । वाज॑स्य । सु॒ऽभ॒ग॒ । प्र॒जाऽव॑तः । अग्ने॑ । बृ॒ह॒तः । अ॒ध्व॒रे । सम् । रा॒या । भूय॑सा । सृ॒ज॒ । म॒यः॒ऽभुना॑ । तुवि॑ऽद्युम्न । यश॑स्वता ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शग्धि वाजस्य सुभग प्रजावतोऽग्ने बृहतो अध्वरे। सं राया भूयसा सृज मयोभुना तुविद्युम्न यशस्वता॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शग्धि। वाजस्य। सुऽभग। प्रजाऽवतः। अग्ने। बृहतः। अध्वरे। सम्। राया। भूयसा। सृज। मयःऽभुना। तुविऽद्युम्न। यशस्वता॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 16; मन्त्र » 6
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 16; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे तुविद्युम्न सुभगाऽग्ने त्वं प्रजावतो बृहतो वाजस्याध्वरे शग्धि तेन भूयसा मयोभुना यशस्वता राया संसृज अस्मान् संसर्जय ॥६॥

    पदार्थः

    (शग्धि) शक्नुहि (वाजस्य) अन्नादेर्विज्ञानस्य वा (सुभग) प्राप्तोत्तमैश्वर्य्य (प्रजावतः) प्रशस्ताः प्रजा विद्यन्ते यस्मिंस्तस्य (अग्ने) विद्वन् (बृहतः) महतः (अध्वरे) अहिंसादिलक्षणे व्यवहारे (सम्) सम्यक् (राया) धनेन (भूयसा) बहुना (सृज) (मयोभुना) यो मयांसि सुखानि भावयति तेन (तुविद्युम्न) बहुधनकीर्त्तियुक्त (यशस्वता) बहुयशो विद्यते यस्मिंस्तेन ॥६॥

    भावार्थः

    मनुष्यैर्विदुषां सङ्गेनेयम्प्रार्थना कार्य्या। हे विद्वांसोऽस्मान् विद्याविनयनधनसुखैः सह संयोजयतेति ॥६॥ अत्राऽग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति षोडशं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (तुविद्युम्न) बहुत धन और कीर्त्ति से युक्त (सुभग) उत्तम ऐश्वर्य्यधारी (अग्ने) विद्वान् पुरुष ! आप (प्रजावतः) प्रशंसा करने योग्य प्रजायुक्त (बृहतः) श्रेष्ठ (वाजस्य) अन्न आदि वा विज्ञान के (अध्वरे) अहिंसा आदि स्वरूप व्यवहार में (शग्धि) सामर्थ्य स्वरूप हो उस (भूयसा) बड़े (मयोभुना) सुखकारक (यशस्वता) अधिक यश सहित (राया) धन से हमको (संसृज) संयुक्त कीजिये ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों के सङ्ग से यह प्रार्थना करें कि हे विद्वानों ! हम लोगों को विद्या विनय और धन सुखों से संयुक्त करो ॥६॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वानों के गुणों के वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ संगति है, यह जानना चाहिये ॥ यह सोलहवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    यज्ञ से समृद्धि

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = विद्वन् ! तू (अध्वरम्) = अहिंसित उत्तम व्यवहार में (प्रजावतः) = प्रजा से युक्त (बृहत:) = बड़े (वाजस्य) = बल को प्राप्त करने में (शग्धि) = समर्थ हो बलवान् बन। [२] हे (सुभग) = विभूतियों के स्वामिन् ! हे (तुविद्युम्न) = ऐश्वर्यों के स्वामिन् तू (मयोभुना) = सुख उत्पादक यशस्वता कीर्त्ति से सम्पन्न राया धन से (संसृज) = हमें सम्पन्न कर ।

    भावार्थ

    भावार्थ- मनुष्य को हिंसा रहित उद्यमों द्वारा समृद्ध बनना चाहिये । इस सूक्त में मनुष्यों को तेजस्वी, बलवान् और सम्पन्न बनने की प्रेरणा दी गयी है। अग्रिम सूक्त भी इसी की पुष्टि करता है -

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    विषय

    पक्षान्तर में प्रभु से प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) नायक राजन् विद्वन् ! तू (अध्वरं) हिंसा रहित प्रजापालन आदि उत्तम व्यवहार के पालन के कार्य में (प्रजावतः) प्रजा से युक्त (बृहतः) बड़े (वाजस्य) ज्ञान और ऐश्वर्य को प्राप्त करने में (शग्धि) समर्थ हो और उसके द्वारा स्वयं (शग्धि) शक्तिशाली बन। हे (सुभग) उत्तम ऐश्वर्य के स्वामिन् ! हे (तुविद्युम्न) बहुत से ऐश्वर्यो के स्वामिन् ! तू (मयोभुना) सुख को उत्पन्न करने वाले (यशस्वता) कीर्त्ति और अन्न से सम्पन्न (राया) ऐश्वर्य से (सं सृज) हमें समृद्ध कर इति षोडशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    उत्कीलः कात्य ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः– १, ५ भुरिगनुष्टुप। २, ६ निचृत् पंक्तिः। ३ निचृद् बृहती। ४ भुरिग् बृहती ॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी विद्वानाच्या संगतीने ही प्रार्थना करावी की हे विद्वानांनो! आम्हाला विद्या, विनय व धन या सुखांनी युक्त करा. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, lord of knowledge, wealth and power, gracious and prosperous, rise high in extensive programmes for the growth of food and energy, and human and social development, and enable us too to rise and be strong. O lord of prosperity and honour, grace us with plentiful, honourable and blissful wealth and help us rise on and on.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of duties of learned persons still continues.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O prosperous and glorious learned person enable us to get good food or knowledge and make rich in noble progeny and abundant in non-violent sacrifice and other dealings. Flood us with riches yet more plenteous, bringing weal and high renown. O garious one!

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should address this prayer or request to the highly learned persons living in their company. O enlightened men ! please bless us with wisdom, humility, wealth and happiness.

    Foot Notes

    ( वाजस्य ) अन्नादेर्विज्ञानस्य वा । = Of good food etc. or of the knowledge. ( मयोभुवा ) यो मयांसि सुखानि भावयति तेन । मय इति सुखनाम (N.G. 3, 6) = Bringing weal or happiness.

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