ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 2/ मन्त्र 10
ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः
देवता - अग्निर्वैश्वानरः
छन्दः - जगती
स्वरः - निषादः
वि॒शां क॒विं वि॒श्पतिं॒ मानु॑षी॒रिषः॒ सं सी॑मकृण्व॒न्त्स्वधि॑तिं॒ न तेज॑से। स उ॒द्वतो॑ नि॒वतो॑ याति॒ वेवि॑ष॒त्स गर्भ॑मे॒षु भुव॑नेषु दीधरत्॥
स्वर सहित पद पाठवि॒शाम् । क॒विम् । वि॒श्पति॑म् । मानु॑षीः । इषः॑ । सम् । सी॒म् । अ॒कृ॒ण्व॒न् । स्वऽधि॑तिम् । न । तेज॑से । सः । उ॒त्ऽवतः॑ । नि॒ऽवतः॑ । या॒ति॒ । वेवि॑षत् । सः । गर्भ॑म् । ए॒षु । भुव॑नेषु । दी॒ध॒र॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
विशां कविं विश्पतिं मानुषीरिषः सं सीमकृण्वन्त्स्वधितिं न तेजसे। स उद्वतो निवतो याति वेविषत्स गर्भमेषु भुवनेषु दीधरत्॥
स्वर रहित पद पाठविशाम्। कविम्। विश्पतिम्। मानुषीः। इषः। सम्। सीम्। अकृण्वन्। स्वऽधितिम्। न। तेजसे। सः। उत्ऽवतः। निऽवतः। याति। वेविषत्। सः। गर्भम्। एषु। भुवनेषु। दीधरत्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 10
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
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अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
यं विशां कविं विश्पतिं मानुषीरिषस्तेजसे स्वधितिं न सीमकृण्वन् स उद्वतो निवतो संयाति स एषु भुवनेषु वेविषद्नर्भं दीधरत् ॥१०॥
पदार्थः
(विशाम्) प्रजानाम् (कविम्) क्रान्तप्रज्ञम् (विश्पतिम्) प्रजापालकम् (मानुषीः) मनुष्याणामिमाः (इषः) इच्छा (सम्) (सीम्) सर्वतः (अकृण्वन्) (स्वधितिम्) वज्रम् (न) इव (तेजसे) (सः) (उद्वतः) उपस्थितान् मार्गान् (निवतः) न्यग्भूतानधस्थान् (याति) गच्छति (वेविषत्) भृशं व्याप्नोति (सः) (गर्भम्) (एषु) (भुवनेषु) स्थित्यधिकरणेषु (दीधरत्) धारयति ॥१०॥
भावार्थः
यथा गर्भोऽदृश्यो भवति तथा वह्निरपि सर्वेषु पदार्थेषु वर्त्तते यदि मनुष्या इमं साधकं कुर्युस्तर्ह्येतद्युक्तेन यानैर्भूम्याकाशमार्गानध ऊर्ध्वगतींश्च कर्तुं शक्नुयुः प्रजाश्च पालयितुम् ॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
जिस (विशाम्) प्रजाओं में (कविम्) प्रविष्ट बुद्धिवाले (विश्पतिम्) प्रजापालक विद्वान् को (मानुषीः) मनुष्यों की (इषः) इच्छा (तेजसे) तेज के लिये (स्वधितिम्) वज्र के (न) समान (सीम्) सब ओर से (अकृण्वन्) परिपूर्ण करती हैं (सः) वह (उद्वतः) ऊपर से और (निवतः) नीचे के मार्गों को (संयाति) अच्छे प्रकार जाता है और (सः) वह (एषु) इन (भुवनेषु) स्थिति करने के आधाररूप लोक-लोकान्तरों में (वेविषत्) निरन्तर व्याप्त होता है और (गर्भम्) गर्भ को (दीधरत्) धारण करता है ॥१०॥
भावार्थ
जैसे गर्भ अदृश्य होता है, वैसे अग्नि भी सब पदार्थों में वर्त्तमान है, जो मनुष्य इसको साधक करें तो इस अग्नि से युक्त यानों से भूमि और आकाश मार्गों को और नीचे ऊपरली गतियों को कर सकें और प्रजा भी पाल सकें ॥१०॥
विषय
मानवोचित इच्छाएँ
पदार्थ
[१] (मानुषीः इषः) = मानवोचित इच्छाएँ (सीम्) = निश्चय से उस प्रभु को अपने में (सं अकृण्वन्) = संस्कृत करती हैं जो कि (कविम्) = क्रान्तप्रज्ञ हैं और (विशां विश्पतिम्) = प्रजाओं के पालक हैं। प्रभु को अपने में इस प्रकार संस्कृत करते हैं, (न) = जैसे कि (स्वधितिम्) = परशु को (तेजसे) = [तैक्ष्यार्थं] तेज करने के लिये संस्कृत किया करते हैं। परशु को सान पर घिसकर तेज करते हैं, इसी प्रकार अपनी बुद्धि का परिमार्जन करके ये प्रभु का दर्शन करते हैं, यही प्रभु का संस्कृत करना है। प्रभुदर्शन के अभिलाषी के लिये आवश्यक है कि वह पाशविक भोगविषयक इच्छाओं से ऊपर उठे। उसमें मानव के योग्य इच्छाएँ ही हों (मानुषी: इष:) । (२) वैसे तो वे प्रभु (उद्वत:) = उत्कृष्ट प्रदेशों में तथा (निवतः) = निम्न प्रदेशों में सर्वत्र वेविषत् व्याप्त होता हुआ याति गति करता है। (सः) = वह (एषु भुवनेषु) = इन लोकों में (गर्भम्) = गर्भ को (दीधरत्) = धारण करता है। सब पदार्थों के गर्भ में वे प्रभु हैं। अपनी व्यापकता से वे सर्वत्र हैं, परन्तु महत्त्व तो इस बात का है कि हम अपनी बुद्धि को परिष्कृत करके प्रभुदर्शन करनेवाले बनें । पाशविक-इच्छाओं से ऊपर उठें। मानव-इच्छाओं को महत्त्व दें।
भावार्थ
भावार्थ- बुद्धि परिष्कृत करके, मानवोचित इच्छाओं को धारण करते हुए हम उस व्यापक प्रभु का दर्शन करें।
विषय
उसके कर्त्तव्य ।
भावार्थ
जिस प्रकार (मानुषीः इषः) मनुष्यों की सेनाएं (तेजसे) तीक्ष्णता उत्पन्न करने या चमकाने या तेज की वृद्धि करने के लिये (स्वधितिम्) शस्त्र को (सम् अकृण्वन्) अच्छी प्रकार चमकाते या उसको अपने पर सजाते हैं उसी प्रकार (इषः मानुषीः) धनैश्वर्यादि के इच्छुक मनुष्य प्रजागण (विशां तेजसे) प्रजागणों के तेज को बढ़ाने के लिये (विशां स्वधितिं) प्रजाओं के ‘स्व’ अर्थात् धनैश्वर्यं को धारण और पालन करने में समर्थ, (कविं) क्रान्तदर्शी, (विश्पतिम्) समस्त प्रजाओं के पालक पुरुष को (सीम् सम् अकृण्वन्) सब प्रकार संस्कृत करें । उसे अभिषेक द्वारा सुशोभित करें । (सः) वह (उद्वतः) ऊपर के और (निवतः) नीचे के सब स्थानों, पदों को (याति) प्राप्त करे अथवा (उद्वतः) उत्तम बलशाली और (निवतः) नीचे, अधीन सामन्तों को भी प्रयाण द्वारा वश करे । (सः) वह (एषु भुवनेषु) इन सब भुवनों या प्रदेशों के बीच में (गर्भम्) भीतरी रहस्य भाग को (वेविषत्) व्यापले और उसको (दीघरत्) धारण करे । (२) मनुष्य की सब कामना उसी सबके पालक परमेश्वर को अपने चित्त में धारण करें । वह उत्तम, अधम सबमें व्यापक है वही इन सब भुवनों के बीच व्यापक सबको धारण करता है । इत्यष्टादशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्वैश्वानरो देवता॥ छन्दः–१, ३, १० जगती। २, ४, ६, ८, ९, ११ विराड् जगती। ५, ७, १२, १३, १४, १५ निचृज्जगती च ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जसा गर्भ अदृश्य असतो तसा अग्नीही सर्व पदार्थात वर्तमान असतो. जो माणूस त्याची साधना करतो तो या अग्नीने युक्त यानांनी भूमी व आकाश मार्गाने वर-खाली गती करू शकतो व प्रजेचे पालनही करू शकतो. ॥ १० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
The oblations of fragrant food offered by yajnic people into the fire intensify and sharpen like razor’s edge the catalytic and creative power of Agni, protector and promoter of the people and the imaginative visionary among them, for the refinement of their valour and brilliance. The same Agni as the fire and passion of virility goes up and down everywhere, inspires every heart and, in these worlds, bears the fetus in the womb of existence for continuance.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of Agni are re-emphasized.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Human beings wishing the fulfilment of their desires give elevation by their praises to the Lord and Protector of beings. He cannot be seen with the material eyes, as they add luster by polishing to a thunderbolt (or axe). Speeding everywhere, the fame of learned persons goes through high and low places, and the same goes further to embryo condition in formative stage in these regions.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As the embryo is invisible outwardly, so is fire hidden in all objects. If the technologists make it a means of swift locomotion, then with its combination, they can manufactures various vehicles to travel on earth and in the sky, and thus protect or preserve the people well.
Foot Notes
(स्वधितिम् ) वज्रम् | स्वधतिरिति वज्रनाम ( NG. 2, 20 ) Thunderbolt or axe. (इष:) इच्छाः । = Desires.
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