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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 19/ मन्त्र 11
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    नू ष्टु॒त इ॑न्द्र॒ नू गृ॑णा॒न इषं॑ जरि॒त्रे न॒द्यो॒३॒॑ न पी॑पेः। अका॑रि ते हरिवो॒ ब्रह्म॒ नव्यं॑ धि॒या स्या॑म र॒थ्यः॑ सदा॒साः ॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नु । स्तु॒तः । इ॒न्द्र॒ । नु । गृ॒णा॒नः । इष॑म् । ज॒रि॒त्रे । न॒द्यः॑ । न । पी॒पे॒रिति॑ पीपेः । अका॑रि । ते॒ । ह॒रि॒ऽवः॒ । ब्रह्म॑ । नव्य॑म् । धि॒या । स्या॒म॒ । र॒थ्यः॑ । स॒दा॒ऽसाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नू ष्टुत इन्द्र नू गृणान इषं जरित्रे नद्यो३ न पीपेः। अकारि ते हरिवो ब्रह्म नव्यं धिया स्याम रथ्यः सदासाः ॥११॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नु। स्तुतः। इन्द्र। नु। गृणानः। इषम्। जरित्रे। नद्यः। न। पीपेरिति पीपेः। अकारि। ते। हरिऽवः। ब्रह्म। नव्यम्। धिया। स्याम। रथ्यः। सदाऽसाः ॥११॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 19; मन्त्र » 11
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 2; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे हरिव इन्द्र ! येन विदुषा ते नव्यम्ब्रह्माऽकारि तस्मै जरित्रे स्तुतस्संस्त्वन्नद्यो न नु पीपेः। गृणानः सन्निषन्नु देहि एवम्भूतस्य रथ्यः सदासा वयं धियाऽनुकूलाः स्याम ॥११॥

    पदार्थः

    (नु) सद्यः (स्तुतः) प्राप्तप्रशंसः (इन्द्र) प्रशंसनीयकर्म्मन् (नु) (गृणानः) सत्यं स्तुवन् (इषम्) अन्नं विज्ञानं वा (जरित्रे) स्तावकाय (नद्यः) सरितः (न) इव (पीपेः) वर्धय (अकारि) क्रियते (ते) तव (हरिवः) प्रशस्तपुरुषयुक्त (ब्रह्म) महद्धनम् (नव्यम्) नूतनम् (धिया) प्रज्ञया कर्म्मणा वा (स्याम) भवेम (रथ्यः) रमणीयबहुरथादियुक्ताः (सदासाः) ससेवकाः ॥११॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । हे राजन् ! ये प्रशंसितानि कर्म्माणि कुर्य्युस्तांस्त्वं सततं सत्कुर्य्यास्ते च भवदनुकूलास्सन्तः सर्वे यूयं धर्मार्थकामसाधका भवतेति ॥११॥ अथेन्द्रमेघसेनासेनापतिराजप्रजाविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥११॥ इत्येकोनविंशतितमं सूक्तं द्वितीयो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (हरिवः) उत्तम पुरुषों से युक्त (इन्द्र) प्रशंसा करने योग्य कर्म्म करनेवाले ! जिस विद्वान् से (ते) आपका (नव्यम्) नवीन (ब्रह्म) बड़ा धन (अकारि) किया जाता है उस (जरित्रे) स्तुति करनेवाले के लिये (स्तुतः) प्रशंसा को प्राप्त हुए आप (नद्यः) नदियों के (न) सदृश (नु) शीघ्र (पीपेः) वृद्धि दिलाइये और (गृणानः) सत्य की प्रशंसा करते हुए (इषम्) अन्न वा विज्ञान को (नु) शीघ्र दीजिये, इस प्रकार के हुए सम्बन्ध में (रथ्यः) रमण करने योग्य बहुत रथादिकों से युक्त (सदासाः) सेवकों के सहित हम लोग (धिया) बुद्धि वा कर्म्म से अनुकूल (स्याम) होवें ॥११॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे राजन् ! जो प्रशंसित कर्म्म करें, उनका आप निरन्तर सत्कार करिये और वे आपके अनुकूल हुए और तुम लोग सब धर्म्म, अर्थ और काम के साधक हूजिये ॥११॥ इस सूक्त में इन्द्र, मेघ, सेना, सेनापति, राजा, प्रजा और विद्वान् के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥११॥ यह उन्निसवाँ सूक्त और द्वितीय वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    स्तुत: गृणान:

    पदार्थ

    मन्त्र व्याख्या १६.२१ पर अर्थ द्रष्टव्य है । अगले सूक्त का भी यही विषय है-

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    विषय

    राजा विद्वानों का पालन करे ।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! तू (नू स्तुतः) अन्यों से निरन्तर स्तुति करने योग्य और (गृणानः) अन्यों को उत्तम धर्म, न्यायानुकुल वचन का उपदेश करता हुआ (नद्यः न) नदियें जिस प्रकार अपने तटपर बसे को अन्न आदि से पुष्ट करती हैं उसी प्रकार तू भी (जरित्रे) विद्वान् पुरुष को (इषं) अन्नादि से (पीपेः) पुष्ट कर । हे (हरिवः) उत्तम पुरुषों और अश्वों के स्वामिन् ! (ते) तेरे लिये यह (नव्यम् ) नया, उत्तम (ब्रह्म) ऐश्वर्य (अकारि) किया जाता है, हम तेरे अधीन (धिया) उत्तम कर्म और उत्तम बुद्धि से युक्त होकर (सदासाः) भृत्यादि सहित सुख से (रथ्यः) रथादि सम्पन्न होकर (स्याम) रहें । इति द्वितीयो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः । इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १ विराट् त्रिष्टुप् । २, ६ निचृत्त्रिष्टुप ३, ५, ८ त्रिष्टुप्। ४, ६ भुरिक् पंक्तिः। ७, १० पंक्तिः । ११ निचृतपंक्तिः ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे राजा ! जे प्रशंसित कर्म करतात त्यांचा तू निरंतर सत्कार कर. त्यांच्या अनुकूलतेने तू धर्म, अर्थ, काम, मोक्षाचा साधक बन. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Sung and celebrated thus, Indra, O ruler of the world, create, bear and bring food, energy and knowledge for the celebrants just as the rivers flow for us all. And thus, this the latest song of homage and adoration is offered to you to the best of our knowledge and intelligence. Bless us, we pray, with intelligence and knowledge so that we may be warriors of the chariot in the service of Divinity and humanity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of the king are further stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O king! good men always admire truth, augment the knowledge and food grains for a devotee of God. Like the rivers, you have earned great and new wealth of wisdom and other kinds. May we be agreeable to you with our intellect or actions along with our attendants, who possess chariots and other vehicles?

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O king ! you must always honor the persons who do noble deeds. Let them be agreeable to you and all of you puts be the accomplishers of Dharma (righteousness), Artha (wealth), Karna (fulfilment of noble desires) and Moksha (emancipation).

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