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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 25/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    को ना॑नाम॒ वच॑सा सो॒म्याय॑ मना॒युर्वा॑ भवति॒ वस्त॑ उ॒स्राः। क इन्द्र॑स्य॒ युज्यं॒ कः स॑खि॒त्वं को भ्रा॒त्रं व॑ष्टि क॒वये॒ क ऊ॒ती ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः । न॒ना॒म॒ । वच॑सा । सो॒म्याय॑ । म॒ना॒युः । वा॒ । भ॒व॒ति॒ । वस्ते॑ । उ॒स्राः । कः । इन्द्र॑स्य । युज्य॑म् । कः । स॒खि॒ऽत्वम् । कः । भ्रा॒त्रम् । व॒ष्टि॒ । क॒वये॑ । कः । ऊ॒ती ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को नानाम वचसा सोम्याय मनायुर्वा भवति वस्त उस्राः। क इन्द्रस्य युज्यं कः सखित्वं को भ्रात्रं वष्टि कवये क ऊती ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कः। ननाम। वचसा। सोम्याय। मनायुः। वा। भवति। वस्ते। उस्राः। कः। इन्द्रस्य। युज्यम्। कः। सखिऽत्वम्। कः। भ्रात्रम्। वष्टि। कवये। कः। ऊती ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 25; मन्त्र » 2
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ राजकर्त्तव्यविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसः ! को वचसा सोम्याय नानाम को वा वचसा सोम्याय मनायुर्भवति क उस्रा इव सर्वान् गुणैर्वस्ते क इन्द्रस्य युज्यं सखित्वं को वा कवय ऊती भ्रात्रं वष्टीत्युत्तरं ब्रूत ॥२॥

    पदार्थः

    (कः) (नानाम) नम्रो भवति। अत्र तुजादीनां दीर्घोऽभ्यासस्येति दीर्घः। (वचसा) वचनेन (सोम्याय) सोमैश्वर्य्यसाधवे (मनायुः) मनो विज्ञानं कामयमानः (वा) (भवति) (वस्ते) कामयते (उस्राः) रश्मय इव। उस्रा इति रश्मिनामसु पठितम्। (निघं०१.५) (कः) (इन्द्रस्य) (युज्यम्) योक्तुमर्हम् (कः) (सखित्वम्) (कः) (भ्रात्रम्) भ्रातृभावम् (वष्टि) कामयते (कवये) प्राज्ञाय (कः) (ऊती) ऊत्या रक्षणादिक्रियया ॥२॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो मनसा कर्म्मणा वाचा नम्रो जायते यो रश्मिवत् प्रकाशात्मव्यवहारो यो जगदीश्वरेण मित्रत्वमाचरति सर्वैस्सह भ्रातृभावं रक्षति यश्च विद्वद्भ्यो हितं करोति स एव सर्वमिष्टं फलं लभते ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब राजकर्त्तव्यविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वानो ! (कः) कौन (वचसा) वचन से (सोम्याय) सोमरूप ऐश्वर्य्य की सिद्धि करनेवाले के लिये (नानाम) नम्र होता है (कः, वा) अथवा कौन वचन से सोमरूप ऐश्वर्य्य की सिद्धि करनेवाले के लिये (मनायुः) विज्ञान की कामना करता हुआ (भवति) होता है (कः) कौन (उस्राः) किरणों के सदृश सब को गुणों से (वस्ते) चाहता है (कः) कौन (इन्द्रस्य) ऐश्वर्य्ययुक्त के (युज्यम्) जोड़ने योग्य (सखित्वम्) मित्रपने को (कः) अथवा कौन (कवये) बुद्धिमान् के लिये (ऊती) रक्षण आदि कर्म्म से (भ्रात्रम्) भ्रातृपने की (वष्टि) कामना करता है, इस का उत्तर कहो ॥२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मन, कर्म्म और वचन से नम्र होता है, जो किरणों के तुल्य प्रकाशस्वरूप व्यवहारयुक्त, जो जगदीश्वर के साथ मित्रता करता तथा सबके साथ भ्रातृपन की रक्षा करता और जो विद्वानों के लिये हित करता है, वही सम्पूर्ण इष्टफल को प्राप्त होता है ॥२॥

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    विषय

    युज्य-सखा-भाव

    पदार्थ

    [१] (कः) = कोई विरल व्यक्ति ही (सोम्याय) = अत्यन्त शान्त प्रभु के लिए (वचसा) = स्तुतिवाणियों द्वारा (नानाम) = नमन करता है। (वा) = अथवा कोई विरल व्यक्ति ही (मनायुः भवति) = विचारपूर्वक क्रियाओं को करनेवाला होता है [मन्-ई गतौ] । यह मनायु ही (उस्त्रा:) = ज्ञानरश्मियों को वस्ते धारण करता है। प्रभु के प्रति नमन 'उपासना काण्ड' है, ज्ञानपूर्वक कर्मों को करना 'कर्मकाण्ड' है, ज्ञानरश्मियों का धारण 'ज्ञानकाण्ड' है। इस प्रकार यह व्यक्ति तीनों काण्डों का अपने जीवन में समन्वय करता है । [२] (कः) = कोई विरल व्यक्ति ही (इन्द्रस्य) उस परमैश्वर्यशाली प्रभु के (युज्यम्) = मेल को (वष्टि) = चाहता है । (कः) = कोई व्यक्ति ही (सखित्वम्) = प्रभु का सखा बनने की कामनावाला होता है । (कः) = कोई विरल पुरुष ही (भ्रात्रम्) = उस प्रभु के साथ भ्रातृत्व की कामना करता है। (कः) = कोई ही (कवये) = उस क्रान्तदर्शी प्रभु के लिए (ऊती) = अपने कर्मों द्वारा तर्पणवाला होता है। उसकी सदा यही कामना होती है कि मैं इस प्रकार से कर्म करूँ कि प्रभु का प्रिय बन पाऊँ ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम अपने जीवन में 'उपासना, कर्म व ज्ञान' का समन्वय करें। हम प्रभु को ही अपना 'मेलवाला, साथी व भाई' जानें । उत्तम कर्मों द्वारा प्रभु को प्रीणित करने का प्रयत्न करें।

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    विषय

    उसके प्रिय सहयोगी ।

    भावार्थ

    (सोम्याय) ‘सोम’ अर्थात् उत्तम ऐश्वर्यो के योग्य और ज्ञानशान्ति आदि गुणों से युक्त शिष्य पुत्रादि के हितकारी गुरु के आदरार्थ (वचसा) वचन द्वारा (कः नानाम) कौन विनीत होता है ? और (कः) कौन पुरुष (मनायुः) ज्ञान की कामना करता ? (कः) कौन पुरुष (उस्राः) किरणों को सूर्य के तुल्य, गौओं को गोपालक के तुल्य, उत्तम अन्नदात्री भूमियों को राजा के तुल्य (वस्ते) आच्छादित करता है, उनमें रहता और उनका पालन करता है ? (कः) कौन (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवान्, अज्ञानहन्ता गुरु के (युज्यं) सहयोग और सौहार्द की (वष्टि) कामना करता है ? (कः) कौन (सखित्वं वष्टि) उसके मित्र भाव की कामना करता है, (कः भ्रात्रं वष्टि) कौन उसके साथ भाई-चारा करना चाहता है ? (कवये) क्रान्तदर्शी विद्वान् को (ऊती) रक्षा,ज्ञान आदि साधन के लिये (कः वष्टि) कौन चाहता है ? [ उत्तर ] (मनायुः) ज्ञान का इच्छुक, होकर (यः उस्राः वस्ते) जो वेद वाणियों के ग्रहणार्थ गुरु के अधीन वास करता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १ निचृत् पंक्तिः । २,८ स्वराट् पंक्तिः । ४, ६ भुरिक् पंक्तिः । ३, ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो मन कर्म, वचनाने नम्र असतो. किरणांप्रमाणे प्रकाशस्वरूप आत्मव्यवहारयुक्त, जगदीश्वराबरोबर मैत्री करतो व सर्वांबद्दल बंधुप्रेम बाळगतो, विद्वानांचे हित करतो तोच संपूर्ण इष्टफळ प्राप्त करतो. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Who bows with words of prayer to Indra for the gift of peace, pleasure, honour and excellence of body, mind and soul? And who submits to him in search of knowledge and self-awareness? Who loves the lights of the dawn and the lovely cows in the morning? Who waits on Indra for help and protection? Who feels anxious for friendship and fraternity with him? Who prays for security and poetic vision to the lord of omniscience? Answer: Who ever wants to do good unto all including the self as servant of Divinity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of a king are dealt with in the form of questions.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned persons ! who bows with his humble words before a person bringing about the prosperity (of a State). And who seeks excuses for the desire of acquiring knowledge be fore him? Who desires to cover all with noble virtues like the rays of the sun? Who desires sincere friendship with God-the Lord of the world? And who desires to establish brotherhood with a wiseman with his protective actions.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    That man alone can get all desirable fruit who is humble in his mind, action and speech, who illumines all like the rays of the sun, who has friendship with God through noble actions, who keeps fraternity with all and who does good to the enlightened persons. (The answers to the above questions are contained in the mantra itself, which have been explained by the commentator in the purport. Ed).

    Foot Notes

    (सोम्याम) सोमैश्वम्र्य साधवे । = For the person bringing about the prosperity to the State. (उस्रा:) रश्मय इव । = Like the rays. (मनायुः) मनोविज्ञानं कामयमानः । = Desiring to acquire true knowledge.

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