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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 25/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    इन्द्रं॒ परेऽव॑रे मध्य॒मास॒ इन्द्रं॒ यान्तोऽव॑सितास॒ इन्द्र॑म्। इन्द्रं॑ क्षि॒यन्त॑ उ॒त युध्य॑माना॒ इन्द्रं॒ नरो॑ वाज॒यन्तो॑ हवन्ते ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । परे॑ । अव॑रे । म॒ध्य॒मासः॑ । इन्द्र॑म् । यान्तः॑ । अव॑ऽसितासः । इन्द्र॑म् । इन्द्र॑म् । क्षि॒यन्तः॑ । उ॒त । युध्य॑मानाः । इन्द्र॑म् । नरः॑ । वा॒ज॒यन्तः॑ । ह॒व॒न्ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रं परेऽवरे मध्यमास इन्द्रं यान्तोऽवसितास इन्द्रम्। इन्द्रं क्षियन्त उत युध्यमाना इन्द्रं नरो वाजयन्तो हवन्ते ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम्। परे। अवरे। मध्यमासः। इन्द्रम्। यान्तः। अवऽसितासः। इन्द्रम्। इन्द्रम्। क्षियन्तः। उत। युध्यमानाः। इन्द्रम्। नरः। वाजयन्तः। हवन्ते ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 25; मन्त्र » 8
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पक्षपातराहित्याचरणविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! ये परेऽवरे मध्यमास इन्द्रं यान्त इन्द्रमवसितास इन्द्रं क्षियन्त इन्द्रं वाजयन्त उतापि युध्यमाना नर इन्द्रं हवन्ते त एव राज्यं कर्म कर्त्तुमर्हेयुः ॥८॥

    पदार्थः

    (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्यवन्तम् (परे) प्रकृष्टा जनाः (अवरे) निकृष्टाः (मध्यमासः) पक्षपातरहिताः (इन्द्रम्) सर्वसुखप्रदातारम् (यान्तः) प्राप्नुवन्तः (अवसितासः) कृतनिश्चयाः (इन्द्रम्) दुष्टानां हन्तारम् (इन्द्रम्) सर्वसुखधर्त्तारम् (क्षियन्तः) निवसन्तः (उत) अपि (युध्यमानाः) युद्धं कुर्वन्तः (इन्द्रम्) दुष्टानां विदारकम् (नरः) नायकाः (वाजयन्तः) विज्ञापयन्तः (हवन्ते) स्तुवन्ति स्पर्द्धयन्ति वा ॥८॥

    भावार्थः

    यस्य राज्ये श्रेष्ठा मध्यस्था निकृष्टाश्च धर्म्मात्मानो विद्वांसोऽविद्वांसश्च स्वराज्यप्रियाः शत्रूणां हन्तारः स्वस्वामिभक्ताः सन्ति तत्र सदा राष्ट्रं वर्द्धत इति वेदितव्यम् ॥८॥ अत्र प्रश्नोत्तरराजोत्तममध्यमनिकृष्टमनुष्यगुणवर्णनं राजाऽमात्यपक्षपातराहित्याचरणं चोपदिष्टमत एतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥८॥ इति द्वाविंशतितमं सूक्तं चतुर्दशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    अब पक्षपातरहित आचरण विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (परे) श्रेष्ठ (अवरे) निकृष्ट और (मध्यमासः) पक्षपात से रहित जन (इन्द्रम्) अत्यन्त ऐश्वर्यवाले को (यान्तः) प्राप्त होते हुए (इन्द्रम्) सब सुख धारण करनेवाले का (अवसितासः) निश्चय किये हुए और (इन्द्रम्) दुष्टों के मारनेवाले को (क्षियन्तः) निवास करते हुए (इन्द्रम्) सब सुख देनेवाले को (वाजयन्तः) जनाते (उत) और (युध्यमानाः) युद्ध करते हुए (नरः) नायक लोग (इन्द्रम्) दुष्टों के नाश करनेवाले की (हवन्ते) स्तुति वा ईर्ष्या करते हैं, वे ही राज्यकर्म्म करने को योग्य होवें ॥८॥

    भावार्थ

    जिसके राज्य में श्रेष्ठ, मध्यस्थ और निकृष्ट अर्थात् नीची श्रेणी में वर्त्तमान धर्म्मात्मा, विद्वान् और अविद्वान् लोग, अपने राज्य के प्रिय, शत्रुओं के नाश करनेवाले, धन और स्वामी के भक्त हैं, वहाँ सदा राज्य बढ़ता है, ऐसा जानना चाहिये ॥८॥ इस सूक्त में प्रश्न उत्तर राजा उत्तम मध्यम निकृष्ट मनुष्यों के गुणों का वर्णन राजा के मन्त्री के पक्षपात राहित्यरूप आचरण का उपदेश किया, इस से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥८॥ यह पच्चीसवाँ सूक्त और चौदहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    पदार्थ

    पदार्थ = ( परे ) = उच्च श्रेणी के मनुष्य  ( अवरे ) = नीच श्रेणी के मनुष्य  ( मध्यमास: ) मध्यम श्रेणी के मनुष्य  ( इन्द्रम् ) = इन्द्र को  ( हवन्ते ) = बुलाते हैं  ( यान्तः ) = मार्ग में चलनेवाले और  ( अवसितासः ) = कर्म करनेवाले ( इन्द्रम् ) = इन्द्र को बुलाते हैं  ( क्षियन्तः ) = घरों में निवास करनेवाले  ( उत ) = और  ( युध्यमानाः ) = युद्ध करनेवाले मनुष्य ( वाजयन्तः ) = धन, अन्न, बल की इच्छावाले  ( नरः ) = सब नर नारी उसी इन्द्र को बुलाते हैं।


     

    भावार्थ

    भावार्थ = संसार में उच्च कोटि के, नीच कोटि के और मध्यम कोटि के सब मनुष्य, उस सर्वशक्तिमान् जगदीश की प्रार्थना करते हैं तथा मार्ग में चलनेवाले और अपने अपने कर्त्तव्य कर्मों में लगे हुए, अपने घरों में निवास करते हुए उस जगत्पति को बुलाते हैं । युद्ध करनेवाले वीर पुरुष भी, अपनी विजय चाहते हुए, उस प्रभु को स्मरण करते और बुलाते हैं । किंबहुना संसार में धान्य बलादि की इच्छा करनेवाले सब नर-नारी, उस परम पिता के आगे प्रार्थना करते हैं। परमात्मा सब की पुकार सुनते और उनकी यथायोग्य कामनाओं को पूरा भी करते हैं ।

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    विषय

    'पर अवर - मध्यम' सभी उसे पुकारते हैं

    पदार्थ

    [१] (परे) = उत्कृष्ट सात्त्विक वृत्तिवाले लोग, (अवरे) = निकृष्ट तमोगुणी पुरुष तथा (मध्यमास:) = मध्यम रजोगुण में विचरनेवाले व्यक्ति अन्ततः (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को ही (हवन्ते) = पुकारते हैं। [२] (यान्तः) = अपने-अपने कार्य के लिए जाते हुए पुरुष (इन्द्रम्) = उस प्रभु को ही पुकारते हैं और (अवसितासः) = कार्य की समाप्ति पर पहुँचनेवाले दृढनिश्चयी पुरुष भी (इन्द्रम्) = प्रभु को ही पुकारते हैं। [३] (क्षियन्तः) = घर में निवास करते हुए, (उत्) = और इसके विपरीत (युध्यमानः) = रणांगण में युद्ध करते हुए लोग (इन्द्रम्) = उस प्रभु को ही पुकारते हैं । [४] (वाजयन्तः) = शक्तिप्राप्ति की कामनावाले पुरुष उस (इन्द्रम्) = सर्वशक्तिमान् प्रभु को ही (हवन्ते) = पुकारते हैं । वस्तुतः प्रभु ही हमारे सच्चे मित्र हैं, सब उन्नति प्रभु से शक्ति को प्राप्त करके ही होती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सभी अनन्तः प्रभु को ही पुकारते हैं । यही है कि प्रभु ही हमारे सच्चे मित्र हैं। अन्ततः वे ही सहायक होते हैं। प्रभु सूक्त का भाव कहते हैं कि -

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    विषय

    उस इन्द्र राजा के लिये सब की पुकार । (

    भावार्थ

    (परे) उत्तम, बहुत ज्ञानी जन, (अवरे) निकृष्ट कोटि के अल्प ज्ञानी और (मध्यमासः) बीच की श्रेणी के लोग (इन्द्रं हवन्ते) इन्द्र, ऐश्वर्यवान् प्रभु को ही पुकारते हैं । (यान्तः) वे प्रयाण करते हुए और (अवसितासः) स्थिर निश्चय वाले भी उसी (इन्द्रं हवन्ते) ‘इन्द्र’ शत्रुहन्ता पुरुष की याद करते हैं, (क्षियन्तः) राष्ट्र में निवास करने वाले (उत) और (युद्ध्यमानाः) युद्ध करने हारे और (वाजयन्तः नरः) युद्ध, ऐश्वर्य, ज्ञान और बल का सम्पादन करने वाले (नरः) वीर नायक जन भी (इन्द्रं हवन्ते) ऐश्वर्यवान् शत्रु दल के विदारक वीर पुरुष को ही पुकारते हैं । (२) सभी राजा के समान परमेश्वर की उपासना करते हैं । इति चतुर्दशी वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः- १ निचृत् पंक्तिः । २,८ स्वराट् पंक्तिः । ४, ६ भुरिक् पंक्तिः । ३, ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्याच्या राज्यात श्रेष्ठ, मध्यम व निकृष्ट लोक तसेच धर्मात्मा विद्वान व अविद्वान लोक, स्वराज्यप्रिय, शत्रूसंहारक, स्वस्वामीभक्त आहेत तेथेच राज्य वर्धित होते, हे जाणले पाहिजे. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    People at the farthest and at the nearest, highest and lowest, and people at the middle, all call upon Indra, lord of honour and excellence. People on the move and those at the end of the journey call upon Indra, lord of peace and security. People settled in the home and warriors on the battle field call upon Indra, lord of prosperity and victory. And the leaders of the people and the men fighting for food, struggling for energy and panting for speed and progress call upon Indra, lord giver of food, energy and advancement.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The impartial administration is praised.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The men of the most exalted nature, men of impartial nature, men who go from place to place and men of strong determination, rely upon a king, because he destroys the wicked and upholds happiness to all- the men engaged in teaching and fight and the enemies. All people praise him and call upon Indra or invite him. Such persons can carry on the work of the State.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should know that such state only can ever prosper, in which men of the exalted nature, men absolutely impartial and men at the lower rungs, whether learned or not learned love their own kingdom-Swarajya and destroy enemies and protect to the loyal to the king.

    Foot Notes

    (अवसितासः ) कृतनिश्चयाः । = Men of strong determination. (वाजयन्त:) विज्ञापयन्तः । = Teach, instruct. (मध्यमासः) पक्षपातरहिताः । = Impartial.

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    ইন্দ্রং পরেঽবরে মধ্যমাস ইন্দ্রং যান্তোঽবসিতাশ ইন্দ্রম্ ।

    ইন্দ্রং ক্ষিয়ন্ত উত যুধ্যমানা ইন্দ্রং নরো বাজয়ন্তো হবন্তে।।৬৫।।

    (ঋগ্বেদ ৪।২৫।৮)

    পদার্থঃ (পরে) উচ্চ শ্রেণীর মনুষ্য, (অবরে) নিচ শ্রেণীর মনুষ্য (মধ্যমাসঃ) মধ্যম শ্রেণীর মনুষ্য সকলেই (ইন্দ্রম্) পরমাত্মাকে  (হবন্তে) আহ্বান করেন। (বাজয়ন্তঃ) যে কোন কিছু পাবার ইচ্ছায় (যান্তঃ) সৎমার্গে চলা (অবসিতাশঃ) কর্মশীল ব্যক্তি (ইন্দ্রম্) সেই পরমাত্মাকে ডাকেন। (ক্ষিয়ন্তঃ) ঘরে নিবাসকারী ব্যক্তিগণ (ইন্দ্রম্) এই ইন্দ্র পরমাত্মাকে (উত) এবং (যুধ্যমানাঃ) যুদ্ধকারী মনুষ্য এবং (নরঃ) নর-নারী সকলে (ইন্দ্রম্) তাঁকেই আহ্বান করেন।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ সংসারে উঁচু মর্যাদা, নিচ মর্যাদা এবং মধ্যম মর্যাদাসম্পন্ন সকল মনুষ্য সেই সর্বশক্তিমান জগদীশ্বরের প্রার্থনা করেন। সত্য মার্গে চলনশীল, আপন আপন কর্তব্যে শামিল এবং আপন ঘরে নিবাসকারী ব্যক্তিগণ সেই জগৎপতিকে আহ্বান করেন। যুদ্ধকারী বীর পুরুষও আপন বিজয় কামনা করে সেই তাঁকেই স্মরণ ও আহ্বান করেন। সংসারে নানাপ্রকার ধন ধান্য বল আদি ইচ্ছাযুক্ত সকল নর-নারী সেই পরম পিতাকেই প্রার্থনা করেন। পরমাত্মা সকলের ডাক শোনেন এবং তাঁদের যথাযোগ্য কামনাকে পূরণ করেন।।৬৫।।

     

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