ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 8/ मन्त्र 1
दू॒तं वो॑ वि॒श्ववे॑दसं हव्य॒वाह॒मम॑र्त्यम्। यजि॑ष्ठमृञ्जसे गि॒रा ॥१॥
स्वर सहित पद पाठदू॒तम् । वः॒ । वि॒श्वऽवे॑दसम् । ह॒व्य॒ऽवाह॑म् । अम॑र्त्यम् । यजि॑ष्ठम् । ऋ॒ञ्ज॒से॒ । गि॒रा ॥
स्वर रहित मन्त्र
दूतं वो विश्ववेदसं हव्यवाहममर्त्यम्। यजिष्ठमृञ्जसे गिरा ॥१॥
स्वर रहित पद पाठदूतम्। वः। विश्वऽवेदसम्। हव्यऽवाहम्। अमर्त्यम्। यजिष्ठम्। ऋञ्जसे। गिरा॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 8; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
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अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथाग्निविषयमाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्याः ! वो यं दूतमिव वर्तमानममर्त्यं विश्ववेदसं यजिष्ठं हव्यवाहं गिरा वयं विजानीमः। हे विद्वन् ! येन त्वं कार्य्याण्यृञ्जसे तं यूयं विज्ञाय सम्प्रयुङ्ध्वम् ॥१॥
पदार्थः
(दूतम्) उत्तमं दूतमिवं वर्त्तमानं वह्निम् (वः) युष्माकम् (विश्ववेदसम्) विश्वस्मिन् विद्यमानम् (हव्यवाहम्) यो हव्यान्यादातुमर्हाणि वहति गमयति प्रापयति वा तम् (अमर्त्यम्) नाशरहितम् (यजिष्ठम्) अतिशयेन सङ्गमयितारम् (ऋञ्जसे) प्रसाध्नोसि (गिरा) वाण्या ॥१॥
भावार्थः
हे मनुष्याः ! अयमेव विद्युदग्निर्दूतवत्कार्यसाधकोऽस्तीति यूयं वित्त ॥१॥
हिन्दी (1)
विषय
अब आठ ऋचावाले आठवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निविषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (वः) तुम्हारे बीच जिस (दूतम्) उत्तम दूत के सदृश वर्त्तमान (अमर्त्यम्) नाश से रहित (विश्ववेदसम्) सब में विद्यमान (यजिष्ठम्) अत्यन्त मिलानेवाले (हव्यवाहम्) ग्रहण करने योग्य पदार्थों को पहुँचाने वा प्राप्त करानेवाले को (गिरा) वाणी से हम लोग जानते हैं। हे विद्वन् ! जिससे आप कार्य्यों को (ऋञ्जसे) सिद्ध करते हो, उसको आप लोग जान के कार्य्य में लगाइये ॥१॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! यही बिजुलीरूप अग्नि दूत के सदृश कार्यों को सिद्ध करनेवाला है, ऐसा आप लोग जानो ॥१॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात अग्नी व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
भावार्थ
हे माणसांनो ! हाच विद्युतरूपी अग्नी दूताप्रमाणे कार्य सिद्ध करणारा आहे, हे तुम्ही जाणा. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O scholar and master of the science of fire and energy, with your words and thought you study and develop the power of Agni, carrier of communications, all round operative in the universe, bearer of food and fragrances, imperishable, and most creative, productive, cooperative and valuable catalytic agent of the natural and human world. O men and women of the world, the scientist develops it for you all.
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