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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 2/ मन्त्र 4
    ऋषिः - कुमार आत्रेयो वृषो वा जार उभौ वा देवता - अग्निः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    क्षेत्रा॑दपश्यं सनु॒तश्चर॑न्तं सु॒मद्यू॒थं न पु॒रु शोभ॑मानम्। न ता अ॑गृभ्र॒न्नज॑निष्ट॒ हि षः पलि॑क्नी॒रिद्यु॑व॒तयो॑ भवन्ति ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्षेत्रा॑त् । अ॒प॒श्य॒म् । स॒नु॒तरिति॑ । चर॑न्तम् । सु॒ऽमत् । यू॒थम् । न । पु॒रु । शोभ॑मानम् । न । ताः । अ॒गृ॒भ्र॒न् । अज॑निष्ट । हि । सः । पलि॑क्नीः । इत् । यु॒व॒तयः॑ । भ॒व॒न्ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्षेत्रादपश्यं सनुतश्चरन्तं सुमद्यूथं न पुरु शोभमानम्। न ता अगृभ्रन्नजनिष्ट हि षः पलिक्नीरिद्युवतयो भवन्ति ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्षेत्रात्। अपश्यम्। सनुतरिति। चरन्तम्। सुऽमत्। यूथम्। न। पुरु। शोभमानम्। न। ताः। अगृभ्रन्। अजनिष्ट। हि। सः। पलिक्नीः। इत्। युवतयः। भवन्ति ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
    अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विवाहसम्बन्धिसन्तानविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यद्यहं यं क्षेत्राज्जातं चरन्तं सुमत् पुरु शोभमानं न यूथं न बलिष्ठं सनुतोऽपश्यं स सुख्यजनिष्ट या ब्रह्मचारिण्यः कन्याः सुनियमाः सत्यो युवावस्थायाः प्राक् पतीनगृभ्रँस्ता हि युवतयः पुत्रपौत्रातिसुखयुक्ता इत् पलिक्नीर्भवन्ति ॥४॥

    पदार्थः

    (क्षेत्रात्) संस्कृताया भार्यायाः (अपश्यम्) पश्यामि (सनुतः) सनातनात् (चरन्तम्) व्यवहरन्तम् (सुमत्) स्वयमेव (यूथम्) सेनासमूहम् (न) इव (पुरु) बहु (शोभमानम्) (न) (ताः) (अगृभ्रन्) गृह्णन्ति (अजनिष्ट) जायते (हि) (सः) (पलिक्नीः) श्वेतकेशाः (इत्) एव (युवतयः) (भवन्ति) ॥४॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यदि भवन्तः स्वसन्तानान् दीर्घं ब्रह्मचर्य्यं कारयेयुस्तर्हि ते धर्मिष्ठाः प्रज्ञायुक्ताश्चिरञ्जीविनः सन्तो युष्मभ्यमतीव सुखं प्रयच्छेयुः ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विवाहसम्बन्धी सन्तानविषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो मैं जिस (क्षेत्रात्) संस्कार की हुई स्त्री से उत्पन्न (चरन्तम्) व्यवहार करते हुए (सुमत्) आप ही (पुरु) बहुत (शोभमानम्) शोभायुक्त के (न) समान वा (यूथम्) सेनासमूह के (न) समान बलिष्ठ को (सनुतः) सनातन से (अपश्यम्) देखता हूँ (सः) वह सुखी (अजनिष्ट) होता है और जो ब्रह्मचारिणी कन्यायें उत्तम नियमोंवाली हुई युवावस्था के प्रथम पतियों को (अगृभ्रन्) ग्रहण करती हैं (ताः) वे (हि) ही (युवतयः) युवति हुईं पुत्र पौत्रों के अतिसुख के युक्त (इत्) और (पलिक्नीः) श्वेत केशोंवाली अर्थात् वृद्धावस्थायुक्त (भवन्ति) होती हैं ॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! यदि आप लोग अपने सन्तानों को अतिकाल पर्यन्त ब्रह्मचर्य्य करावें तो वे धर्मिष्ठ बुद्धियुक्त और चिरञ्जीवी हुए आप लोगों के लिये अतीव सुख देवें ॥४॥

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    विषय

    माता पुत्र के दृष्टान्त से आचार्य शिष्य और राजा और पृथिवी का वर्णन

    भावार्थ

    भा०-जिस प्रकार ( क्षेत्रात् चरन्तं शोभमानं बालकं ) अपने उत्पत्ति क्षेत्र मातृ-शरीर से उत्पन्न हुए पुत्र को बाहर आते लोग देखते हैं और उसको ( न ताः अगृभ्रन्) माताएं जब अधिक काल तक गर्भ में धारण नहीं कर सकतीं और ( स हि सुमत् अजनिष्ट ) वह स्वयं ही अनायास उत्पन्न होता है, इसी प्रकार ( युवतयः पलिक्नीः इत् भवन्ति) युवति माताएं भी बच्चा जनते जनते स्वयं ही वृद्धा होजाती हैं इसी प्रकार (क्षेत्रांत्) युद्ध क्षेत्र से ( सनुतः ) छुपे छुपे, सुरक्षित रूप में ( पुरु शोभमानं ) बहुत अधिक शोभा से युक्त ( यूथं न ) सैन्य वा गौओं के समूह के समान ही ( चरन्तं) विचरते हुए वीर पुरुष को मैं प्रजाजन (अप-श्यम् ) देखूं । उसको (ताः ) वे परराष्ट्र की सेनाएं भी ( न अगृभ्रन् ) पकड़ न सकें । और उसकी निज प्रजाएं (पलिक्नीः इत् ) वृद्धाओं के के समान निर्बल रहकर भी ( युवतयः भवन्ति ) युवतियों के समान हृष्ट पुष्ट होजावें । और इसी प्रकार पर सेनाएं ( युवतयः पलिक्नीः इत् भवन्ति ) जवान, हृष्ट पुष्ट भी वृद्धा के समान निर्बल एवं वृद्ध होजावें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कुमार आत्रेयो वृशो वा जार उभौ वा । २, वृशो जार ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्द: – १, , , ८ त्रिष्टुप् । ४, , , १० निचत्रिष्टुप् । ११ विराट् त्रिष्टुप् । २ स्वराट् पक्तिः । ६ भुरिक् पंक्तिः । १२ निचदतिजगती ॥ द्वादशचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    वासनाओं से लिप्त न होना और युवा बने रहना

    पदार्थ

    [१] आचार्य गर्भ में (सनुत:) = अन्तर्हित होकर रहते हुए इस कुमार को आज (क्षेत्रात्) = आचार्य गर्भ से (चरन्तम्) = बाहर विचरते हुए को (अपश्यम्) = देखता हूँ । अध्ययन काल में आचार्य गर्भ में रहकर आज यह आचार्य गर्भ से बाहर आया है। अध्ययन को पूरा करके आज उत्पन्न हुए हुए इस कुमार को देखने के लिये सभी विद्वान् आये हैं 'तं जातं द्रष्टुमिभिसंयन्ति देवाः'। इसका (यूथम्) = इन्द्रियगण (न) = जैसे (सुमत्) = उत्तम ज्ञानवाला है, उसी प्रकार (पुरुशोभमानम्) = खूब ही शोभावाला है। शक्ति-सम्पन्न होने से इसकी प्रत्येक इन्द्रिय सुन्दर प्रतीत होती है । [२] (ता:) = वे संसार में प्रसिद्ध विषयवासनाएँ (न अगृभ्रन्) = इसे नहीं ग्रहण कर पायीं। यह विषयवासनाओं का शिकार नहीं हुआ। (सः) = वह कुमार (हि) = निश्चय से (अजनिष्ट) = प्रादुर्भूत शक्तियोंवाला हुआ है। विषय वासनाओं का शिकार न होने पर (पलिक्नीः इत्) = पलित केश वृद्ध प्रजाएं भी (इत्) = निश्चय से (युवतयः) = युवतियाँ (भवन्ति) = हो जाती हैं। विषय-वासनाएँ ही तो जीर्ण करती हैं। इनके अभाव में यौवन व सौन्दर्य ठीक बना रहता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- आचार्य विद्यार्थी को अपने रक्षण में रखता हुआ इस प्रकार तप = परिपक्व करता है कि यह वासनाओं में लिप्त नहीं होता और तेजस्विता से शोभा सम्पन्न बना रहता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जर तुम्ही आपल्या संतानांना दीर्घकालपर्यंत ब्रह्मचर्य पाळण्यास शिकविले तर ते धार्मिक बुद्धिमान व दीर्घायू बनून तुम्हाला अत्यंत सुख देतील. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    I see him born of the mother, mother earth and Mother Nature, see him roaming around since eternity by himself like an army on the march, commanding great beauty and grace. When he is born they hold him not, withhold him not, they cannot, and the young mothers, having given him birth, grow old and grey haired, and then they grow youthful again.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The relationship between the marriage and good progeny is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! the son whom I have beheld is born of a well-cultured wife. Dealing honestly, shining by him self (because of his virtues) like the formation of armies and very mighty, he is always happy. Those Brahmacharnis, (unmarried girls) who duly observe set rules of the Brahmacharya (continence) select their husbands in youth, and become endowed with the happiness of sons and grandsons, when they become grey-headed (old).

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! if you enjoin upon your children to observe Brahmacharya for a pretty long period, they would give you much happiness being righteous, wise and long-lived.

    Foot Notes

    (सुमत् ) स्वयमेव । = Himself. (पलिक्नी:) श्वेतकेशाः । Grey haired.

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