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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 30/ मन्त्र 11
    ऋषिः - बभ्रु रात्रेयः देवता - इन्द्र ऋणञ्चयश्च छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यदीं॒ सोमा॑ ब॒भ्रुधू॑ता॒ अम॑न्द॒न्नरो॑रवीद्वृष॒भः साद॑नेषु। पु॒रं॒द॒रः प॑पि॒वाँ इन्द्रो॑ अस्य॒ पुन॒र्गवा॑मददादु॒स्रिया॑णाम् ॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । ई॒म् । सोमाः॑ । ब॒भ्रुऽधू॑ताः । अम॑न्दन् । अरो॑रवीत् । वृ॒ष॒भः । साद॑नेषु । पु॒र॒म्ऽद॒रः । प॒पि॒ऽवान् । इन्द्रः॑ । अ॒स्य॒ । पुनः॑ । गवा॑म् । अ॒द॒दा॒त् । उ॒स्रिया॑णाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदीं सोमा बभ्रुधूता अमन्दन्नरोरवीद्वृषभः सादनेषु। पुरंदरः पपिवाँ इन्द्रो अस्य पुनर्गवामददादुस्रियाणाम् ॥११॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। ईम्। सोमाः। बभ्रुऽधूताः। अमन्दन्। अरोरवीत्। वृषभः। सदनेषु। पुरंऽदरः। पपिऽवान्। इन्द्रः। अस्य। पुनः। गवाम्। अददात्। उस्रियाणाम् ॥११॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 30; मन्त्र » 11
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ वीरराजविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे राजन् ! यथेन्द्रोऽस्य मेघस्य सादनेषु पपिवान् पुरन्दर उस्रियाणां गवां पुनस्तेजोऽददाद् वृषभः सन्नरोरवीद् यद्येन बभ्रुधूताः सोमा ईं जायन्ते यतः प्राणिनोऽमन्दँस्तथा त्वं प्रजासु वर्त्तस्व ॥११॥

    पदार्थः

    (यत्) यतः (ईम्) सर्वतः (सोमाः) सोमौषधिवद्वर्त्तमानाः (बभ्रुधूताः) बभ्रुभिर्धृतविद्यैर्धूताः पवित्रीकृताः (अमन्दन्) आनन्दन्ति। (अरोरवीत्) भृशं शब्दायते (वृषभः) वर्षकः (सादनेषु) स्थानेषु। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (पुरन्दरः) यः पुराणि दृणाति सः (पपिवान्) य पिबति सः (इन्द्रः) सूर्यः (अस्य) (पुनः) (गवाम्) (अददात्) ददाति (उस्रियाणाम्) किरणानाम् ॥११॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यो राजा सूर्यमेघस्वभावः सन्नष्टौ मासान् प्रजाभ्यः करं गृह्णाति चतुरो मासान् यथेष्टान् पदार्थान् ददात्येवं सकलाः प्रजा रञ्जयति स एव सर्वत ऐश्वर्य्यवान् भवति ॥११॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब वीरराजविषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे राजन् ! जैसे (इन्द्रः) सूर्य (अस्य) इस मेघ के (सादनेषु) स्थानों में (पपिवान्) पीवने और (पुरन्दरः) पुरों को नाश करनेवाला (उस्रियाणाम्) किरणों और (गवाम्) गौओं के (पुनः) फिर तेज को (अददात्) देता है (वृषभः) वृष्टि करनेवाला हुआ (अरोरवीत्) अत्यन्त शब्द करता है (यत्) जिससे (बभ्रुधूताः) विद्या को धारण किये हुओं से पवित्र किये गये (सोमाः) सोम ओषधि के सदृश वर्त्तमान पदार्थ (ईम्) सब ओर से उत्पन्न होते हैं, जिससे प्राणी (अमन्दन्) आनन्दित होते हैं, वैसे आप प्रजाओं में वर्त्ताव कीजिये ॥११॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो राजा सूर्य्य और मेघ के स्वभाव के सदृश स्वभाववाला हुआ धर्म्मशास्त्र में कहे हुए अष्ट मास परिमाण परिमित प्रजाओं से कर लेता है और चार मास यथेष्ट पदार्थों को देता है, इस प्रकार सब प्रजाओं को प्रसन्न करता है, वही सब प्रकार से ऐश्वर्यवान् होता है ॥११॥

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    विषय

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    भावार्थ

    भा०- (यत्) जब ( सीमाः ) ऐश्वर्य युक्त अध्यक्ष जन (बभ्रुधृताः ) अपने भरण पोषण करने वाले स्वामी से प्रेरित एवं भययुक्त होकर ( ईम् ) अपने प्रबल स्वामी की ( अमन्दन् ) स्तुति करते हैं तब वह ( वृषभः) बलवान् धुरन्धर पुरुष ( सदनेषु ) नाना सभाओं के बीच या नाना अधिकारपदों पर ( अरोरवीत् ) आज्ञाएं प्रकट करे । ( अस्य ) इस राष्ट्र का ( पपिवान् ) पालनकर्त्ता और उपभोक्ता (पुरन्दरः इन्द्रः ) शत्रु गणों से लड़ने में समर्थ बलवान् राजा ( उस्त्रियाणाम गवाम् ) उत्तम २ फलोत्पादक भूमियों को ( पुनः अदात् ) वार २ प्रदान करे । उनको अध्यक्षों में विभक्त करे । अथवा वह उत्तम रूप से निकलने वाली उदात्त वाणियों वा आज्ञाओं को पुनः २ प्रदान करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बभ्रुरात्रेय ऋषिः ॥ इन्द्र ऋणञ्चयश्च देवता ॥ छन्दः–१,५, ८, ९ निचृत्त्रिटुप् । १० विराट् त्रिष्टुप् । ७, ११, १२ त्रिष्टुप् । ६, १३ पंक्तिः । १४ स्वराट् पंक्तिः । १५ भुरिक् पंक्तिः ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    वासना विनाश व ज्ञानदुग्धपान

    पदार्थ

    १. (यत्) = जब (ईम्) = निश्चय से (सोमा:) = सोमकण (बभ्रुधूताः) = अपना धारण करनेवाले से शोधित किये हुए (अमन्दन्) = उस बभ्रु के जीवन को आनन्दयुक्त करते हैं, तो यह (वृषभः) = सोमरक्षण से शक्तिशाली बना हुआ मनुष्य ( सादनेषु) = अपने गृहों में (अरोरवीत्) = खूब ही प्रभु का स्तवन करता है— प्रभु के स्तोत्रों का उच्चारण करता है। सोमरक्षण मनुष्य को प्रभु - श्रवण बनाता है। सोमी पुरुष सदा प्रभु भक्त होता है। २. इस समय (पुरन्दरः) = काम, क्रोध, लोभ आदि असुरों की पुरियों का विदारण करनेवाला, (पपिवान्) = सोम का पान [रक्षण] करनेवाला (इन्द्रः) = शक्तिशाली प्रभु (अस्य) = इस स्तोता को (पुनः) = फिर (उस्त्रियाणाम्) = ज्ञानदुग्ध को देनेवाली (गवाम्) = वेदवाणी रूप गौओं को (अददात्) = देता है। इस स्तोता के लिए वासनाओं को विनष्ट करके, ज्ञानदुग्धदात्री वेदवाणी रूप गौओं को प्राप्त कराता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से हमारी वृत्ति प्रभुस्तवन की होती है। इस स्तोता को प्रभु वासनाविनाश के साथ ज्ञानदुग्धदात्री वेदवाणीरूप धेनुओं को प्राप्त कराता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो राजा सूर्याच्या, मेघाच्या स्वभावाचा असून धर्मशास्त्रात सांगितलेल्या अष्ट मास परिमाणाप्रमाणे प्रजेकडून कर घेतो व चार मासात यथेष्ट पदार्थ देतो व प्रजेला प्रसन्न करतो तोच सर्व प्रकारे ऐश्वर्यवान बनतो. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    When the somas, honours and pleasures of the earth, created, distilled and energised by the sagely scholars and people of yajnic creativity, exhilarate Indra, the ruler and his order, then the generous and valorous lord roars in the assemblies and in the homesteads and he, breaker of the enemy strongholds, having drunk of the honour and glory of the nation, again gives to the nation fertile lands, cows, open sunlight and words of holy speech.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of a brave king are stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O king! the sun which is the drinker of the water in the abodes of the clouds and destroys many germs of diseases in the bodies, and gives splendor to the rays, and speech. It (sun) is the cause of the rains and makes sound. The Soma and other plants are discovered and purified by the learned persons in order to grow and live rejoicing. You should deal with the people in the same manner.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The king who is of the nature of sun, and cloud, collects revenues from the subjects for eight months, and supplies them with all desired objects and gladdens them. Such a king becomes prosperous from all sides. (crop-raising goes on for 8 months generally in an year. Ed.).

    Foot Notes

    (बभ्रघूताः ) बभ्रभिर्धृत विद्यैधूताः पवित्रीकृताः । बभ्रु -भुञ्ञ, धारणयोषणयोः अत्र शुद्धयर्थः । = Purified by the Vedas of knowledge. (उस्रियाणाम् ) किरणानाम् उस्रा इति रश्मिनाम (NG 1, 5) अत्रोस्त्रिया । पद प्रयोग उस्रापर्यार्थरुपेता । = Of the rays,

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