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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 34/ मन्त्र 2
    ऋषिः - संवरणः प्राजापत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    आ यः सोमे॑न ज॒ठर॒मपि॑प्र॒ताम॑न्दत म॒घवा॒ मध्वो॒ अन्ध॑सः। यदीं॑ मृ॒गाय॒ हन्त॑वे म॒हाव॑धः स॒हस्र॑भृष्टिमु॒शना॑ व॒धं यम॑त् ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । यः । सोमे॑न । ज॒ठर॑म् । अपि॑प्रत । अम॑न्दत । म॒घऽवा॑ । मध्वः॑ । अन्ध॑सः । यत् । ई॒म् । मृ॒गाय॑ । हन्त॑वे । म॒हाऽव॑धः । स॒हस्र॑ऽभृष्टिम् । उ॒शना॑ । व॒धम् । यम॑त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ यः सोमेन जठरमपिप्रतामन्दत मघवा मध्वो अन्धसः। यदीं मृगाय हन्तवे महावधः सहस्रभृष्टिमुशना वधं यमत् ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। यः। सोमेन। जठरम्। अपिप्रत। अमन्दत। मघऽवा। मध्वः। अन्धसः। यत्। ईम्। मृगाय। हन्तवे। महाऽवधः। सहस्रऽभृष्टिम्। उशना। वधम्। यमत् ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 34; मन्त्र » 2
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्विषये पाकगुणानाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! य उशना मघवा सोमेन जठरमापिप्रत मध्वोऽन्धसो भुक्त्वामन्दत यद्यो महावधो मृगाय हन्तवे सहस्रभृष्टिं वधमीं यमत् सः सर्वं सुखं लभते ॥२॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (यः) (सोमेन) सोमलतोद्भवेन (जठरम्) उदराग्निम् (अपिप्रत) पूरयेत् (अमन्दत) आनन्देत् (मघवा) बहुधनः (मध्वः) मधुरादिगुणयुक्तस्य (अन्धसः) अन्नादेः (यत्) यः (ईम्) सर्वतः (मृगाय) मृगम् (हन्तवे) हन्तुम् (महावधः) महान् वधो नाशनं येन (सहस्रभृष्टिम्) भृष्टयो भञ्जनानि दहनानि यस्मात्तम् (उशना) कामयमानः (वधम्) (यमत्) नियच्छेत् ॥२॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या वैद्यकशास्त्ररीत्या सोमलताद्योषधिरसेन सह संस्कृतान्यन्नानि भुञ्जते तेऽतुलं सुखमाप्नुवन्ति ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वद्विषय में पाक के गुणों को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (यः) जो (उशना) कामना करता हुआ (मघवा) बहुत धन से युक्त (सोमेन) सोमलता से उत्पन्न रस से (जठरम्) उदर की अग्नि को (आ, अपिप्रत) अच्छे प्रकार पूर्ण करे और (मध्वः) मधुर आदि गुणों से युक्त (अन्धसः) अन्न आदि का भोग करके (अमन्दत) आनन्द करे और (यत्) जो (महावधः) अत्यन्त नाश करनेवाला (मृगाय) हरिण को (हन्तवे) मारने के लिये (सहस्रभृष्टिम्) हजारों दहन जिससे उस (वधम्) वध को (ईम्) सब प्रकार से (यमत्) देवे, वह सब सुख को प्राप्त होता है ॥२॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य वैद्यकशास्त्र की रीति से सोमलता आदि ओषधियों के रस के साथ संस्कारयुक्त किये गये अन्नों का भोग करते हैं, वे अतुल सुख को प्राप्त होते हैं ॥२॥

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    विषय

    अन्न-भोजन वत् राष्ट्रैश्वर्य भोग ।

    भावार्थ

    भा०- (यः) जो राजा ( सोमेन ) ऐश्वर्य वा अन्न से उदर के तुल्य ( जठरम् ) अपने राष्ट्र के भीतरी भाग को (आ अपिप्रत ) सब ओर से भर लेता है । वह ( मघवा ) उत्तम ऐश्वर्यवान् होकर ( मध्वः ) मधुर ( अन्धसः ) अन्नादि से ( अमन्दत ) खूब तृप्ति और आनन्द लाभ करे । और (यत्) जो ( ईम् ) सब ओर केवल ( हन्तवे मृगाय महावधः ) हननशील हिंसक सिंह के पेट भरने के लिये अन्य जीवों के भारी बध के सदृश शत्रु राजा वा स्वयं हिंसाव्यसनी राजा की सन्तुष्टि के लिये भारी जनसंहार हो तो ऐसे ( सहस्त्रभृष्टिम् ) हजारों जनों और जीवों को आग से भून देने वाले ( वधं ) हत्याकाण्ड संग्रामादि को, ( उशनाः) समस्त प्राणियों को सुखी चाहने वाला, उनका प्यारा दयार्द्र हृदय राजा वा तेजस्वी विद्वान् अवश्य ( यमत् ) रोक दे । ऐसे जनसंहार न होने दे ( २ ) इसी प्रकार यदि धनाड्य लोग अपना पेट अन्नों के रसों और बनस्पतियों से पूर्ण कर लेते हैं वे जीवन का अधिक सुख पाते हैं, यह जो मृग को मारने के लिये भारी शिकार, वध की आयोजना होती है इस मांस के कारवार में सहस्त्रों जीव अग्नि पर भुन जाते हैं ऐसे हत्याकाण्ड को जीवों के प्रति दयाशील राजा आवश्य रोक दे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    संवरणः प्राजापत्य ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः—१ भुरिक् त्रिष्टुप् । ६, ९ त्रिष्टुप् । २, ४, ५ निचृज्जगती । ३, ७ जगती । ८ विराड्जगती ॥ नवर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    महावधः वधं यमत्

    पदार्थ

    १. (यः) = जो (सोमेन) = सोम के द्वारा [वीर्यशक्ति के द्वारा] (जठरम्) = अपने जठर को - शरीर मध्य को–(अपिप्रत्) = पूरित करता है, वह (मघवा) = ज्ञानैश्वर्यवाला होता हुआ (मध्वः) = जीवन को मधुर बनानेवाले (अन्धसः) = सोम से (अमन्दत) = आनन्दित होता है। सोमरक्षण से ज्ञानाग्नि का दीपन होकर ज्ञान बढ़ता है और शरीर की नीरोगता होकर आनन्द व उल्लास की प्राप्ति होती है । २. यह तब होता है, (यत्) = जब कि (ईम्) = निश्चय से (महावधः) = महान् क्रियाशीलता रूप वज्रायुधवाला (उशना) = प्रभु प्राप्ति की कामनावाला पुरुष (मृगाय हन्तवे) = [काम: पशुः, क्रोधः पशुः] काम, क्रोध रूप पशुओं को मारने के लिए (सहस्त्रभृष्टिम्) = हजारों शत्रुओं को भून डालनेवाले (वधम्) = क्रियाशीलता रूप वज्र को यमत्- हाथ में ग्रहण करता है। क्रियाशील बनकर ही तो हम शत्रुओं का नाश कर पाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से ज्ञानैश्वर्य को प्राप्त करके हम आनन्द को प्राप्त करेंगे। सोमरक्षण के लिए हम क्रियाशीलता द्वारा वासना को दूर भगानेवाले हों। यह क्रियाशीलता ही सर्वमहान् वध [आयुध] है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे वैद्यकशास्त्राच्या रीतीने सोमलता इत्यादी औषधींच्या रसाबरोबर योग्य आहार करतात, ती अतुल सुख प्राप्त करतात. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    He, lord of wealth, honour and power, who satisfies his hunger with soma and exults in honey sweets of food offered, and who, wielding the mighty thunderbolt of justice and punishment, out of love for life and the people raises his bolt of a thousand potentials to punish and destroy the wild beast of violence and ferocity: that is Indra, that is the ruler.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The significance of cooking as a science is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! that man enjoys all happiness who is desirous of doing good to all and is endowed with abundant wealth. He fills his belly with the juice of Soma and other creepers or herbs and eats good food consisting of sweet and other articles. He prevents people from using deadly weapons for killing deers and other creatures.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The persons who take well-cooked food with the nourishing juice of Soma and other plants prepared according to the Ayurveda or science of life, enjoy exalted happiness.

    Foot Notes

    (सहस्त्रभृष्टिम् ) सहस्त्रं भृष्टयो भंजनानि दहनानि-यस्मात्तम् । (भृष्टि ) भृजी -भर्जने (भ्वा० )। = Which actuates thousands of way-a powerful and dreadful weapon. (उशनाः) कामयमान: । (उशनाः) वश कान्तौ (अदा० ) कान्तिः कामना । = Desiring the welfare of all. (यमत्) नियच्छेत् । य -उपरमे (अदा० )। = Controls restrains or prevents.

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