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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 46 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 46/ मन्त्र 8
    ऋषिः - प्रतिक्षत्र आत्रेयः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    उ॒त ग्ना व्य॑न्तु दे॒वप॑त्नीरिन्द्रा॒ण्य१॒॑ग्नाय्य॒श्विनी॒ राट्। आ रोद॑सी वरुणा॒नी शृ॑णोतु॒ व्यन्तु॑ दे॒वीर्य ऋ॒तुर्जनी॑नाम् ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । ग्नाः । व्य॒न्तु॒ । दे॒वऽप॑त्नीः । इ॒न्द्रा॒णी । अ॒ग्नायी॑ । अ॒श्विनी॑ । राट् । आ । रोद॑सी॒ इति॑ । व॒रु॒णा॒नी । शृ॒णो॒तु॒ । व्यन्तु॑ । दे॒वीः । यः । ऋ॒तुः । जनी॑नाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत ग्ना व्यन्तु देवपत्नीरिन्द्राण्य१ग्नाय्यश्विनी राट्। आ रोदसी वरुणानी शृणोतु व्यन्तु देवीर्य ऋतुर्जनीनाम् ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत। ग्नाः। व्यन्तु। देवऽपत्नीः। इन्द्राणी। अग्नायी। अश्विनी। राट्। आ। रोदसी। इति। वरुणानी। शृणोतु। व्यन्तु। देवीः। यः। ऋतुः। जनीनाम् ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 46; मन्त्र » 8
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 28; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    राजवद्राज्ञ्यः स्त्रीणां न्यायं कुर्य्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    यो राडिन्द्राण्यग्नाय्यश्विनी देवपत्नीर्न्यायकरणाय स्त्रीणां ग्ना व्यन्तु रोदसी इव वरुणानी जनीनां वाच आ शृणोतु उतापि देवीर्ऋतुरिव क्रमेण जनीनां यो न्यायस्तं व्यन्तु ॥८॥

    पदार्थः

    (उत) (ग्नाः) वाणी (व्यन्तु) व्याप्नुवन्तु (देवपत्नीः) देवानां विदुषां स्त्रियः (इन्द्राणी) इन्द्रस्य परमैश्वर्ययुक्तस्य स्त्री (अग्नायी) अग्नेः पावकवद्वर्त्तमानस्य पत्नी (अश्विनी) आशुगामिनः स्त्री (राट्) या राजते (आ) (रोदसी) द्यावापृथिव्याविव (वरुणानी) वरस्य भार्य्या (शृणोतु) (व्यन्तु) कामयन्ताम् (देवीः) विदुष्यः (यः) (ऋतुः) (जनीनाम्) जनित्रीणां भार्य्याणाम् ॥८॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथा राज्ञां समीपे पुरुषा अमात्या भवन्ति तथा राज्ञीनां निकटे स्त्रियो भवन्तु ॥८॥ अत्र विद्वदग्न्यादिराजराज्ञीकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्याणां महाविदुषां विरजानन्दसरस्वतीस्वामिनां शिष्येण दयानदसरस्वतीस्वामिना विरचिते सुप्रमाणयुक्त ऋग्वेदभाष्ये पञ्चमे मण्डले षट्चत्वारिंशत्तमं सूक्तं तथा चतुर्थाष्टके द्वितीयोऽध्यायोऽष्टाविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा के समान रानी स्त्रियों का न्याय करें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    (यः) जो (राट्) प्रकाशमान (इन्द्राणी) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त पुरुष की स्त्री और (अग्नायी) अग्नि के सदृश तेजस्वी पुरुष की स्त्री (अश्विनी) शीघ्र चलनेवाले की स्त्री और (देवपत्नीः) विद्वानों की स्त्रियाँ न्याय करने के लिये स्त्रियों की (ग्नाः) वाणियों को (व्यन्तु) व्याप्त हों और (रोदसी) अन्तरिक्ष तथा पृथिवी के सदृश (वरुणानी) श्रेष्ठ जन की स्त्री (जनीनाम्) उत्पन्न करनेवाली स्त्रियों की वाणियों को (आ, शृणोतु) सब प्रकार से सुने और (उत) भी (देवीः) विद्यायुक्त स्त्रियाँ (ऋतुः) ऋतु के सदृश क्रम से उत्पन्न करनेवाली स्त्रियों का जो न्याय उसकी (व्यन्तु) कामना करें ॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपालङ्कार है । जैसे राजाओं के समीप पुरुष मन्त्री होते हैं, वैसे रानियों के समीप स्त्रियाँ मन्त्री होवें ॥८॥ यह श्रीमत्परमहंस परिव्राजकाचार्य महाविद्वान् विरजानन्द सरस्वती स्वामीजी के शिष्य श्रीमद्दयानद सरस्वती स्वामीजी से रचे हुए, उत्तम प्रमाणयुक्त ऋग्वेदभाष्य के पाँचवें मण्डल में छयालीसवाँ सूक्त और चतुर्थ अष्टक में द्वितीय अध्याय और अट्ठाईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    स्त्रियों के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०- ( उत) और ( देव-पत्नीः ) उत विद्वानों का पत्नियां भी (ग्ना:) उत्तम २ वेद वाणियों का ( व्यन्तु ) ज्ञान लाभ करें । (इन्द्राणी) ऐश्वर्यवान् राजा की स्त्री, ( अग्नायी ) तेजस्वी नायक, और विद्वान् की स्त्री और ( अश्विनी ) विवाह में वद्ध स्त्री पुरुषों में से (राट् ) विशेष तेजस्विनी स्त्री और ( रोदसी ) दुष्टों को रुलाने वाले सेनापति और सब के उपदेष्टा गुरु और रोग भगा देने वाले वैद्य की स्त्री, तथा ( वरुणानी ) श्रेष्ठ पुरुष की स्त्री, ये भी ( शृणोतु ) ज्ञान का श्रवण करें। ( देवीः ) सभी उत्तम वा कामना युक्त स्त्रियें (यः जनीनां ऋतुः ) जो पुत्र उत्पादन करने वाली युवति स्त्रियां का ऋतु काल हो उस काल में ( व्यन्त ) पतियों के पास कामनायुक्त होकर जावें । इत्यष्टाविंशो वर्गः ॥ ॥ इति चतुर्थे द्वितीयोऽध्यायः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रतिक्षत्र आत्रेय ऋषिः ॥ १ – ६ विश्वेदेवाः॥ ८ देवपत्न्यो देवताः ॥ छन्दः—१ भुरिग्जगती । ३, ५, ६ निचृज्जगती । ४, ७ जगती । २, ८ निचृत्पंक्तिः ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    देवपत्नियों का आगमन

    पदार्थ

    [१] (उत) = और (ग्राः) = छन्दोमयी वेदवाणियाँ जो (देवपत्नी:) = देव पुरुषों की पत्नियों के समान हैं, वे (व्यन्तु) = हमारे जीवन में दीप्त हों [वी to shine ] । (इन्द्राणी) = इन्द्र पत्नी, (अग्नायी) = अग्निपत्नी, (अश्विनी) = अश्विदेवों की पत्नी (राट्) = राजमाना हो । इन्द्र, अग्नि, अश्विदेवों की शक्ति हमारे जीवन में दीप्त हो । इन्द्र बनकर हम बल के कर्मों को करनेवाले हों, सब आसुरभावों का संहार कर सकें। अग्नि बनकर अपने जीवन को प्रकाशमय बनायें। अश्विदेवों की आराधना से हम प्राणशक्ति-सम्पन्न हों। [२] (रोदसी) = रुद्र पत्नी, (वरुणानी) = वरुण की पत्नी (आशृणोतु) = हमारी पुकार को सुनो। 'रुद्र' रोगों का द्रावण करनेवाला है तथा 'वरुण' पापों का निवारण करनेवाला है। हमारे जीवन में न रोग हों, न पाप हों। इस प्रकार (देवी:) = ये सब देवपत्नियाँ (व्यन्तु) = हमारे जीवनों में दीप्त हों। हमारे जीवन में (जनीनाम्) = इन देवपत्नियाँ का (यः ऋतुः) = जो काल है, वह दीप्त हो । अर्थात् हमारे जीवन में वह समय आये जब ये सब देवपत्नियाँ हमारे जीवन को शोभायमान करें। ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमारा जीवन छन्दोमयी वेदवाणियों से तथा दिव्यशक्तियों से सुशोभित हो । देवपत्नियों से जीवन को अलंकृत करके यह 'प्रतिरथ' बनता है, सब शत्रुओं से मुकाबिला करने में समर्थ होता है। शत्रुओं को जीतकर यह 'आत्रेय' होता है। यह वेदमाता को पुकारता हुआ कहता है कि -

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे राजे लोकांजवळ पुरुष मंत्री असतात तशा राण्यांजवळ स्त्रिया मंत्री असाव्यात. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May the brilliant divinities of nature and women of noble and divine disposition, protective and progressive, be good and responsive to our voices of prayer. May motherly lightning energy, heat and healing energies, earth and heaven, spirit of justice and soothing cool of waters, and the cycle of seasons respond. May mother ruler, mother leader, health care matrons, fertility of women, scholars of earth, heavens and oceans, be kind and responsive to our progress.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The queens should administer justice among the women like the kings.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The wife of the person endowed with wealth, the wife of the purifier like fire, the wife of an active quick going person, the wives of the enlightened men shine on account of her virtues. May all such highly learned listen to the requests for administering justice. Let the wife of a noble person listen to the requests of women like the heaven and earth. Let the enlightened women administer justice by them.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Like the male ministers among the kings, there should be female ministers among the queens also.

    Foot Notes

    (ग्नाः) वाणीः । ग्ना इति वाङ्नाम (NG 1, 11) = Speeches. (ध्यन्तु ) कामयन्ताम् । वा गतिव्याप्तिप्रजनकान्त्यासनखादनेषु । अत्र-कान्त्यर्थः । कान्ति: कामना = May desire. (जनीनाम् ) जनित्रीणाम् भार्य्यणाम् । देवानां वे पत्नीर्जनयः (काठक संहिता 18, 7, Taittiriya Samhita 1, 7, 2 ) = Of women.

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