ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 57/ मन्त्र 6
ऋ॒ष्टयो॑ वो मरुतो॒ अंस॑यो॒रधि॒ सह॒ ओजो॑ बा॒ह्वोर्वो॒ बलं॑ हि॒तम्। नृ॒म्णा शी॒र्षस्वायु॑धा॒ रथे॑षु वो॒ विश्वा॑ वः॒ श्रीरधि॑ त॒नूषु॑ पिपिशे ॥६॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒ष्टयः॑ । वः॒ । म॒रु॒तः॒ । अंस॑योः । अधि॑ । सहः॑ । ओजः॑ । बा॒ह्वोः । वः॒ । बल॑म् । हि॒तम् । नृ॒म्णा । शी॒र्षऽसु॑ । आयु॑धा । रथे॑षु । वः॒ । विश्वा॑ । वः॒ । श्रीः । अधि॑ । त॒नूषु॑ । पि॒पि॒शे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋष्टयो वो मरुतो अंसयोरधि सह ओजो बाह्वोर्वो बलं हितम्। नृम्णा शीर्षस्वायुधा रथेषु वो विश्वा वः श्रीरधि तनूषु पिपिशे ॥६॥
स्वर रहित पद पाठऋष्टयः। वः। मरुतः। अंसयोः। अधि। सहः। ओजः। बाह्वोः। वः। बलम्। हितम्। नृम्णा। शीर्षऽसु। आयुधा। रथेषु। वः। विश्वा। श्रीः। अधि। तनूषु। पिपिशे ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 57; मन्त्र » 6
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मरुद्विषये यानचालनफलमाह ॥
अन्वयः
हे ऋष्टयो मरुतो ! वोंऽसयोर्यत्सह ओजो बाह्वोर्वो बलं हितं शीर्षस्वधि नृम्णाऽऽयुधा रथेषु वो विश्वा श्रीरधि पिपिशे वस्तनूषु श्रीरधि पिपिशे ता यूयं सङ्गृह्णीत ॥६॥
पदार्थः
(ऋष्टयः) ज्ञानवन्तः (वः) युष्माकम् (मरुतः) मनुष्याः (अंसयोः) भुजदण्डमूलयोः (अधि) उपरि (सहः) सहनम् (ओजः) पराक्रमः (बाह्वोः) (वः) युष्माकम् (बलम्) (हितम्) स्थितम् (नृम्णा) नरो रमन्ते येषु तानि (शीर्षसु) मस्तकेषु (आयुधा) शस्त्रास्त्राणि (रथेषु) सङ्ग्रामार्थेषु यानेषु (वः) युष्माकम् (विश्वा) सर्वाणि (वः) (श्रीः) धनं शोभा वा (अधि) (तनूषु) शरीरेषु (पिपिशे) आश्रीयते ॥६॥
भावार्थः
ये मनुष्याः शरीरात्मबलिष्ठा भूत्वाऽऽयुधविद्यायां निपुणा भूत्वोत्तमयानादिसामग्रीसहिताः पुरुषार्थयन्ते ते श्रीमन्तो जायन्ते ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मरुद्विषय में यान चलाने के फल को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (ऋष्टयः) ज्ञानवान् (मरुतः) मनुष्यो ! (वः) आप लोगों के (अंसयोः) भुजारूप दण्डों के मूलों में जो (सहः) सहन और (ओजः) पराक्रम तथा (बाह्वोः) बाहु सम्बन्धी (वः) आप लोगों का (बलम्) बल (हितम्) स्थित (शीर्षसु) मस्तकों (अधि) पर (नृम्णा) और मनुष्य रमते हैं जिनमें ऐसे (आयुधा) शस्त्र और अस्त्र (रथेषु) संग्रामार्थ वाहनों में वा (वः) आप लोगों के (विश्वा) सम्पूर्ण (श्रीः) धन वा शोभा (अधि, पिपिशे) अधिक आश्रय की जाती और (वः) आप लोगों के (तनूषु) शरीरों में धन वा शोभा अधिक आश्रयण की जाती, उनका आप लोग संग्रहण कीजिये ॥६॥
भावार्थ
जो मनुष्य शरीर और आत्मा से बलिष्ठ और आयुधों की विद्या में निपुण होकर उत्तम वाहन आदि सामग्रियों से युक्त हुए पुरुषार्थ करते हैं, वे धनवान् होते हैं ॥६॥
विषय
missing
भावार्थ
भा०-हे ( मरुतः ) वायु के समान बलवान् शूरवीर पुरुषो ! ( वः अंसयोः अधि ) आप लोगों के कंधों पर ( ऋष्टयः) शत्रुनाशक हथियार हों और ( वः बाह्वोः ) आप लोगों की बाहुओं में (सहः ) शत्रु को पराजय करने में समर्थ ( ओजः बल ) पराक्रम और बल ( हितम् ) विद्यमान हों। और ( शीर्षसु ) आप लोगों के शिरों पर (नृम्णा ) मनुष्यों को अच्छा लगाने वाले मुकुट, पगड़ी आदि हों और ( वः रथेषु ) आप लोगों के रथों पर ( आयुधानि ) शस्त्र अस्त्र, हों, और ( वः तनूषु अधि ) आप लोगों के शरीरों पर (विश्वा श्रीः पिपिशे) समस्त प्रकार की लक्ष्मी, विराज कर सुशोभित करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ४, ५ जगती । २, ६ विराड् जगती । ३ निचृज्जगती । ७ विराट् त्रिष्टुप् । ८ निचृत्-त्रिष्टुप ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
विषय
ओजस्वी वीर योद्धा
पदार्थ
[१] हे (मरुतः) = वीर सैनिको! (वः अंसयो:) = तुम्हारे दोनों कन्धों पर (ऋष्टयः) = तलवारें व अस्त्र विशेष हैं (वः) = तुम्हारी (बाह्रोः) = बाहुवों में सहः शत्रुओं का मर्षण करनेवाला (ओजः) = ओज व (बलम्) = बल (अधिहितम्) = आधिक्येन निहित है, तुम्हारी भुजाएँ खूब ही बल-सम्पन्न हैं । [२] (शीर्षसु) = तुम्हारे सिरों में भी (नृम्णा) = [courage, strength] उत्साह व शक्ति है, तुम्हारा दिमाग भी शक्ति के भावों से भरा है। (वः रथेषु) = तुम्हारे रथों पर (आयुधा) = अस्त्र रखे हैं। (वः तनूषु) = तुम्हारे शरीरों पर (विश्वा) = सम्पूर्ण (श्रीः) = शोभा (अधिपिपिशे) = आधिक्येन शोभायमान होती है । इन सैनिकों का मस्तिष्क व शरीर तेजस्विता व उत्साह से भरा हुआ है।
भावार्थ
भावार्थ-वीरों के कन्धों पर अस्त्र हैं, बाहुवों में बल, मस्तिष्क में उत्साह व शरीर में शोभा ही शोभा है।
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे शरीर व आत्म्याने बलवान व शस्त्रास्त्र विद्येत निपुण होऊन उत्तम याने इत्यादींनी सज्ज होऊन पुरुषार्थ करतात, ती धनवान होतात. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Maruts, leading lights of humanity, on your shoulders you bear the blazing lances and the burdens of forbearance with courage and splendour of life, while the force of action is concentrated in your hands. On your heads you carry the care and comfort of humanity with the arms and ammunitions of protection and progress in your chariots. Indeed, the entire wealth and honour, beauty and grace of life reflects in your body and personality.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The result of the driving of various vehicles by them maruts (heroes) is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O highly learned and wise men ! spears are on your two shoulders, in your arms are placed strength, power and might. Manly thoughts dwell in your heads, your chariots meant for the battle are powerful weapons and every beauty has been laid on your bodies.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those persons become prosperous who being endowed with physical and spiritual and experts in the science of arms are always industrious. They possess very good vehicles and other materials. You should gather all these things.
Foot Notes
(ऋष्टयः) ज्ञानवन्तः । ऋषी -गतौ । अत्र ज्ञानार्थं इति निर्दिष्टपूर्वम् । ऋष्टयः शस्त्रास्त्राणि इति महर्षि दयानन्द एवं ऋ० 5-54-11 भाष्ये । नृम्णनि -सुराज्य सुनियम ऋत्नादीभि महर्षिरेव यजु 38, 14 भाष्ये | = Highly learned and wise. (नृम्णा ) नरो रमन्ते येषु तानि | = In which men are delight good thought.
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