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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 63 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 63/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अर्चनाना आत्रेयः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    स॒म्राजा॑ उ॒ग्रा वृ॑ष॒भा दि॒वस्पती॑ पृथि॒व्या मि॒त्रावरु॑णा॒ विच॑र्षणी। चि॒त्रेभि॑र॒भ्रैरुप॑ तिष्ठथो॒ रवं॒ द्यां व॑र्षयथो॒ असु॑रस्य मा॒यया॑ ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒म्ऽराजौ॑ । उ॒ग्रा । वृ॒ष॒भा । दि॒वः । पती॑ इति॑ । पृ॒थि॒व्याः । मि॒त्रावरु॑णा । विच॑र्षणी॒ इति॒ विऽच॑र्षणी । चि॒त्रेभिः॑ । अ॒भ्रैः । उप॑ । ति॒ष्ठ॒थः॒ । रव॑म् । द्याम् । व॒र्ष॒य॒थः॒ । असु॑रस्य । मा॒यया॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सम्राजा उग्रा वृषभा दिवस्पती पृथिव्या मित्रावरुणा विचर्षणी। चित्रेभिरभ्रैरुप तिष्ठथो रवं द्यां वर्षयथो असुरस्य मायया ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम्ऽराजौ। उग्रा। वृषभा। दिवः। पती इति। पृथिव्याः। मित्रावरुणा। विचर्षणी इति विऽचर्षणी। चित्रेभिः। अभ्रैः। उप। तिष्ठथः। रवम्। द्याम्। वर्षयथः। असुरस्य। मायया ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 63; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे राजामात्यौ ! यथा वृषभा पृथिव्या दिवस्पती विचर्षणी मित्रावरुणा चित्रेभिरभ्रैः सहोप तिष्ठथोऽसुरस्य मायया रवं द्यां कुरुथस्तथोग्रा सम्राजौ युवां प्रजा उपतिष्ठथः कामैः प्रजाः वर्षयथः ॥३॥

    पदार्थः

    (सम्राजौ) यौ सम्यक् राजेते तौ (उग्रा) तेजस्विनौ (वृषभा) बलिष्ठौ वृष्टिहेतू (दिवः) प्रकाशस्य (पती) पालयितारौ (पृथिव्याः) भूमेः (मित्रावरुणा) वायुसवितारौ (विचर्षणी) प्रकाशकौ (चित्रेभिः) अद्भुतैः (अभ्रैः) घनैः (उप) (तिष्ठथः) समीपस्थौ भवथः (रवम्) शब्दम् (द्याम्) प्रकाशम् (वर्षयथः) (असुरस्य) मेघस्य (मायया) आच्छादनादिना प्रज्ञया वा ॥३॥

    भावार्थः

    हे प्रजाजना ! ये राजाऽमात्यादयो न्यायविनयाभ्यां प्रकाशमाना दुष्टेषु तेजस्विनः कठोरदण्डप्रदाः सूर्य्यवायुवत्कामवर्षकाः सन्ति ते यशस्विनः प्रजाप्रियाश्च जायन्ते ॥३॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे राजा और मन्त्रीजनो ! जैसे (वृषभा) बलिष्ठ वृष्टि के कारण (पृथिव्याः) भूमि के और (दिवः) प्रकाश के (पती) पालन करनेवाले (विचर्षणी) प्रकाशक (मित्रावरुणा) वायु और सूर्य्य (चित्रेभिः) अद्भुत (अभ्रैः) मेघों के साथ (उप, तिष्ठथः) समीप में स्थित होते हैं और (असुरस्य) मेघ के (मायया) आच्छादन आदि से वा बुद्धि से (रवम्) शब्द को और (द्याम्) प्रकाश को करते हैं, वैसे (उग्रा) तेजस्वी (सम्राजौ) उत्तम प्रकार शोभित होनेवाले आप दोनों प्रजाओं के समीप स्थित होते हैं, और कामनाओं से प्रजाओं को (वर्षयथः) वृष्टियुक्त करते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    हे प्रजाजनो ! जो राजा और मन्त्री आदि जन न्याय और विनय से प्रकाशमान, दुष्टों में तेजस्वी और कठोर दण्ड के देनेवाले, सूर्य्य और वायु के सदृश मनोरथों की वृष्टि करतेवाले हैं, वे यशस्वी और प्रजाओं के प्रिय होते हैं ॥३॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे प्रजाजनहो! जे राजा व मंत्री इत्यादी न्याय व विनयाने प्रसिद्ध, दुष्टांना उग्र व कठोर दंड देणारे, सूर्य व वायूप्रमाणे मनोरथांची वृष्टी करणारे असतात ते यशस्वी होतात व प्रजेमध्ये प्रिय असतात. ॥ ३ ॥

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Mitra and Varuna, ruler and leading lights like sun and shower, shining in majesty, blazing with splendour, brave and generous, guardians of heaven and light of the earth, watchful observers of the world, wielding wondrous clouds of rain and power, you stay close by us and send down showers of rain and roar of thunder by the awful force of light and winds of nature’s breath of life.

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