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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 7/ मन्त्र 4
    ऋषि: - इष आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    स स्मा॑ कृणोति के॒तुमा नक्तं॑ चिद्दू॒र आ स॒ते। पा॒व॒को यद्वन॒स्पती॒न्प्र स्मा॑ मि॒नात्य॒जरः॑ ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । स्म॒ । कृ॒णो॒ति॒ । के॒तुम् । आ । नक्त॑म् । चि॒त् । दू॒रे । आ । स॒ते । पा॒व॒कः । यत् । वन॒स्पती॑न् । प्र । स्म॒ । मि॒नाति॑ । अ॒जरः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स स्मा कृणोति केतुमा नक्तं चिद्दूर आ सते। पावको यद्वनस्पतीन्प्र स्मा मिनात्यजरः ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। स्म। कृणोति। केतुम्। आ। नक्तम्। चित्। दूरे। आ। सते। पावकः। यत्। वनस्पतीन्। प्र। स्म। मिनाति। अजरः ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 7; मन्त्र » 4
    अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यद्योऽजरः पावको वनस्पतीन् स्माऽऽकृणोति नक्तं चिद् दूरे सते केतुं प्रयच्छति दूरे सन् स्मा दुष्टान् दोषान् प्रा मिनाति स सर्वत्र सत्कृतो जायते ॥४॥

    पदार्थः

    (सः) (स्मा) एव (कृणोति) (केतुम्) प्रज्ञाम् (आ) (नक्तम्) रात्रौ (चित्) (दूरे) (आ) (सते) सत्पुरुषाय (पावकः) पवित्रकरः (यत्) यः (वनस्पतीन्) वनानां पालकान् (प्र) (स्मा) अत्रोभयत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (मिनाति) हिनस्ति (अजरः) नाशरहितः ॥४॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! ये विद्वांसो दूरेऽपि स्थिता अहर्निशमग्निवद्वनस्पतिवच्च परोपकारिणो जायन्ते त एव जगद्भूषणा भवन्ति ॥४॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (यत्) जो (अजरः) नाश से रहित (पावकः) पवित्र करनेवाला (वनस्पतीन्) वनों के पालनेवालों का (स्मा) ही (आ, कृणोति) अनुकरण करता (नक्तम्) रात्रि में (चित्) भी (दूरे) दूर देश में (सते) सत्पुरुष के लिये (केतुम्) बुद्धि देता और दूर स्थान में वर्त्तमान हुआ (स्मा) ही दुष्ट और दोषों का (प्र, आ, मिनाति) अच्छे प्रकार नाश करता है (सः) वह सर्वत्र सत्कृत होता है ॥४॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! विद्वान् दूर भी वर्त्तमान हुए रात्रि दिन अग्नि वा वनस्पतियों के सदृश परोपकारी होते हैं, वे संसार के भूषण अंलकार होते हैं ॥४॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! जरी विद्वान दूर असतील तरी रात्र व दिवस, वनस्पती व अग्नी यांच्याप्रमाणे परोपकारी असतात. ते जगाचे भूषण ठरतात. ॥ ४ ॥

    English (1)

    Meaning

    He, the power unaging, pure and purifying, gives signals of his light and guidance even for those who are far away when he leaves behind the night and rides the waves of light over the tops of trees.

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