ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 7/ मन्त्र 9
आ यस्ते॑ सर्पिरासु॒तेऽग्ने॒ शमस्ति॒ धाय॑से। ऐषु॑ द्यु॒म्नमु॒त श्रव॒ आ चि॒त्तं मर्त्ये॑षु धाः ॥९॥
स्वर सहित पद पाठआ । यः । ते॒ । स॒र्पिः॒ऽआ॒सु॒ते॒ । अग्ने॑ । शम् । अस्ति॑ । धाय॑से । आ । ए॒षु॒ । द्यु॒म्नम् । उ॒त । श्रवः॑ । आ । चि॒त्तम् । मर्त्ये॑षु । धाः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ यस्ते सर्पिरासुतेऽग्ने शमस्ति धायसे। ऐषु द्युम्नमुत श्रव आ चित्तं मर्त्येषु धाः ॥९॥
स्वर रहित पद पाठआ। यः। ते। सर्पिःऽआसुते। अग्ने। शम्। अस्ति। धायसे। आ। एषु। द्युम्नम्। उत। श्रवः। आ। चित्तम्। मर्त्येषु। धाः ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 7; मन्त्र » 9
अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथाग्निशब्दार्थविद्वद्विषयमाह ॥
अन्वयः
हे अग्ने ! यो धायसे ते सर्पिरासुते शमस्ति तद्धरत्येषु मर्त्येषु द्युम्नमा धाः श्रव आ धा उत चित्तमा धास्तस्मै त्वमैश्वर्यं देहि ॥९॥
पदार्थः
(आ) (यः) (ते) तव (सर्पिरासुते) सर्पिभिः सर्वतो जनिते (अग्ने) विद्वन् (शम्) सुखम् (अस्ति) (धायसे) धात्रे (आ) (एषु) (द्युम्नम्) यशो धनं वा (उत) (श्रवः) अन्नम् (आ) (चित्तम्) संज्ञानम् (मर्त्येषु) (धाः) दधाति ॥९॥
भावार्थः
यदि कश्चित् कस्मैचिद्विद्यां धनं विज्ञानञ्च दधाति तर्हि तस्मा उपकृतोऽपि प्रत्युपकाराय तादृशमेव सत्कारं कुर्यात् ॥९॥
हिन्दी (1)
विषय
अब अग्निशब्दार्थ विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) विद्वन् (यः) जो (धायसे) धारण करनेवाले के लिये (ते) आपका (सर्पिरासुते) घृतों से सब प्रकार उत्पन्न किये गये में (शम्) सुख (अस्ति) है उसको ग्रहण करता (एषु) इन (मर्त्येषु) मनुष्यों में (द्युम्नम्) यश वा धन को (आ, धाः) धारण करता (श्रवः) अन्न को (आ) धारण करता (उत) और (चित्तम्) संज्ञान को (आ) धारण करता है, उसके लिये आप ऐश्वर्य्य दीजिये ॥९॥
भावार्थ
जो कोई किसी के लिये विद्या धन और विज्ञान को धारण करता है तो उसके लिये उपकार किया भी पुरुष प्रत्युपकार के लिये वैसे ही सत्कार को करे ॥९॥
मराठी (1)
भावार्थ
जर एखाद्याने एखाद्यासाठी विद्या व धन आणि विज्ञानाचा स्वीकार केला तर उपकारित पुरुषानेही प्रत्युपकारासाठी तसेच करावे. ॥ ९ ॥
English (1)
Meaning
Agni, lord of light, giver of peace and power, when the ghrta has been offered into the fire and the flames arise, then let there be a shower of peace for the bearer of oblations, your gift for the yajaka. O lord, bear and bring wealth of honour and excellence, food and energy, and a noble mind with wisdom and vision and vest the same in these dedicated people.
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