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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 7/ मन्त्र 8
    ऋषिः - इष आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    शुचिः॑ ष्म॒ यस्मा॑ अत्रि॒वत्प्र स्वधि॑तीव॒ रीय॑ते। सु॒षूर॑सूत मा॒ता क्रा॒णा यदा॑न॒शे भग॑म् ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शुचिः॑ । स्म॒ । यस्मै॑ । अ॒त्रि॒ऽवत् । प्र । स्वधि॑तिःऽइव । रीय॑ते । सु॒ऽसूः । अ॒सू॒त॒ । मा॒ता । क्रा॒णा । यत् । आ॒न॒शे । भग॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुचिः ष्म यस्मा अत्रिवत्प्र स्वधितीव रीयते। सुषूरसूत माता क्राणा यदानशे भगम् ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शुचिः। स्म। यस्मै। अत्रिऽवत्। प्र। स्वधितिःऽइव। रीयते। सुऽसूः। असूत। माता। क्राणा। यत्। आनशे। भगम् ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 7; मन्त्र » 8
    अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ राजशासनविषयमाह ॥

    अन्वयः

    यद्या शुचिः क्राणा माता यस्मै स्वधितीवात्रिवत्सुषूरसूत प्र रीयते सा स्म भगमानशे ॥८॥

    पदार्थः

    (शुचिः) पवित्रः (स्म) (यस्मै) (अत्रिवत्) (प्र) (स्वधितीव) वज्रधर इव (रीयते) श्लिष्यति (सुषूः) सुष्ठु जनयित्री (असूत) सूते (माता) जननी (क्राणा) कुर्वती (यत्) या (आनशे) प्राप्नोति (भगम्) ऐश्वर्य्यम् ॥८॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । यदि मातापितरौ कृतब्रह्मचर्य्यौ विधिवत्सन्तानानुत्पादयेतां तर्हि सुखैश्वर्य्यं लभेताम् ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब राजशिक्षा विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    (यत्) जो (शुचिः) पवित्र (क्राणाः) करती हुई (माता) माता (यस्मै) जिसके लिये (स्वधितीव) वज्र के धारण करनेवाले के सदृश और (अत्रिवत्) अविद्यमान तीनवाले के सदृश (सुषूः) उत्तम प्रकार उत्पन्न करनेवाली (असूत) उत्पन्न करती और (प्र, रीयते) मिलती है (स्म) वही (भगम्) ऐश्वर्य्य को (आनशे) प्राप्त होती है ॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो माता-पिता ब्रह्मचर्य्य किये हुए विधिपूर्वक सन्तानों को उत्पन्न करें तो सुख और ऐश्वर्य्य को प्राप्त होवें ॥८॥

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    विषय

    सहस्वान् नप्ता, अग्नि सेनापति, उसके कत्तव्य । यज्ञ की व्याख्या ।

    भावार्थ

    भा०- ( शुचिः स्वधितिः अत्रिवत् रीयते ) जिस प्रकार काष्ठों को खा जाने वाले अग्नि के लिये शुद्ध चमकती धार वाली कुल्हाड़ी चलती है, उसी प्रकार ( यस्मै ) जिसको ( अत्रिवत् ) भोक्ता के तुल्य स्वामी वा त्रिविध एषणाओं से रहित व्यागी के समान निःस्वार्थ जान कर उसके लिये ( शुचिः) शुद्ध चित्त वाली ( स्वधितिः ) स्वयं अपने को वा 'स्व' अर्थात् धन समृद्धि धारण करने वाली प्रजा शुद्ध पवित्र, सती साध्वी पत्नी के समान अनन्यभाव से ( प्र रीयते ) भली प्रकार से प्राप्त होती है और (यत्) जिसकी (माता) सबकी उत्पादक माता पृथिवी (सु-सूषी:) उत्तम जननी, माता के तुल्य उत्तम रीति से ऐश्वर्यं देने और अभिषेक करने वाली होकर ( भगं क्राणा) सब प्रकार के ऐश्वर्य उत्पन्न करती हुई ( आनशे ) जिसे प्राप्त होती है वही उत्तम नायक है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    इष आत्रेय ऋषिः ॥ अग्निदेवता ॥ छन्द-१ विराडनुष्टुप् । २ अनुष्टुप ३ भुरिगनुष्टुप् । ४, ५, ८, ९ निचृदनुष्टुप् ॥ ६, ७ स्वराडुष्णिक् । निचृद्बृहती॥ नवचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    उपासना व स्वाध्याय

    पदार्थ

    [१] वह व्यक्ति (शुचिः) = पवित्र बनता है, (यस्मै) = जिसके लिये वे प्रभु (अत्रिवत्) = [अत्ति इति अत्रिः] सब वासनाओं को दग्ध करनेवाले के समान और (स्वधिति इव) = वासनाओं के वृक्षों को काटनेवाले परशु के समान (प्र रीयते स्म) = प्रकर्षेण प्राप्त होते हैं। उपासक के जीवन को प्रभु पवित्र कर डालते हैं। [२] (माता) = वेदमाता भी (सुषूः) = उत्तम भावों को जन्म देनेवाली होती हुई (असूत) = इसके जीवन में दिव्य गुणों को जन्म देती है, (यत्) = जब कि (भगम्) = ऐश्वर्य को (क्राणा) = [कुर्वाणा] करती हुई (आनशे) = इसके जीवन में व्याप्त होती है। वेदमाता ऐश्वर्य को उत्पन्न करती हुई इस उपासक को दिव्य गुणोंवाला बनाती है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु ध्यान से सब वासनाएँ विनष्ट होती हैं। वेद के स्वाध्याय से, ज्ञान की उपासना से सब दिव्य गुणों का ऐश्वर्य प्राप्त होता है ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे माता-पिता ब्रह्मचर्यपूर्वक व विधिपूर्वक संतानांना उत्पन्न करतात त्यांना सुख व ऐश्वर्य प्राप्त होते. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    For him, i.e., the supplicant yajaka, the man free from threefold suffering of body, mind and soul, Agni, bright and pure, releases the honour and splendour of life like currents of thunder power, which mother nature spontaneously generates for him and which flows to him incessantly.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Something about the proper administrator of the State is stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    A mother, performing good deeds gives birth to a son, who is like a brave upholder of the thunderbolt, or is like the fatal weapons or who is like a man free from the sufferings of three kinds (worldly, divine or spiritual. Ed.). She and her husband whom she loves intensely and for whose delight she delivers provide much happiness and prosperity.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    If parents generate children according to the Vedic injunctions after completing Brahmacharya, they may enjoy happiness and prosperity.

    Foot Notes

    (रीयते) श्लिष्यति । री-गतिरेषणयोः (क्रया.) = Loves intensely, embraces. (ऋाणां ) कुर्वती | = Perform good deeds. (स्वद्वितीय) वज्रघर इव स्वधितिरिति वज्रनाम । = Like a man wielding thunderbolt-like weapons.

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