ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 78/ मन्त्र 8
ऋषिः - सप्तवध्रिरात्रेयः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
यथा॒ वातो॒ यथा॒ वनं॒ यथा॑ समु॒द्र एज॑ति। ए॒वा त्वं द॑शमास्य स॒हावे॑हि ज॒रायु॑णा ॥८॥
स्वर सहित पद पाठयथा॑ । वातः॑ । यथा॑ । वन॑म् । यथा॑ । स॒मु॒द्रः । एज॑ति । ए॒व । त्वम् । द॒श॒ऽमा॒स्य॒ । स॒ह । अव॑ । इ॒हि॒ । ज॒रायु॑णा ॥
स्वर रहित मन्त्र
यथा वातो यथा वनं यथा समुद्र एजति। एवा त्वं दशमास्य सहावेहि जरायुणा ॥८॥
स्वर रहित पद पाठयथा। वातः। यथा। वनम्। यथा। समुद्रः। एजति। एव। त्वम्। दशऽमास्य। सह। अव। इहि। जरायुणा ॥८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 78; मन्त्र » 8
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे दशमास्य ! यथा वातो यथा वनं यथा समुद्र एजति तथैवा त्वं जरायुणा सहाऽवेहि ॥८॥
पदार्थः
(यथा) येन प्रकारेण (वातः) वायुः (यथा) (वनम्) जङ्गलम् (यथा) (समुद्रः) उदधिः (एजति) कम्पते चलति वा (एवा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (त्वम्) (दशमास्य) दशसु मासेषु जातः (सह) (अव) (इहि) आगच्छ (जरायुणा) देहावरणेन ॥८॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । स एव गर्भस्तत्स्थो बालकश्चोत्तमो जायते यो दशमे मासे जायते ॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (दशमास्य) दश महीनों में उत्पन्न हुए ! (यथा) जिस प्रकार से (वातः) वायु और (यथा) जिस प्रकार से (वनम्) जङ्गल (यथा) जिस प्रकार से (समुद्रः) समुद्र (एजति) कम्पित होता वा चलता है वैसे (एवा) ही (त्वम्) आप (जरायुणा) देह के ढाँपनेवाले के (सह) सहित (अव, इहि) आइये ॥८॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । वही गर्भ और उसमें स्थित बालक उत्तम होता है, जो दशवें महीने में होता है ॥८॥
विषय
गर्भविज्ञान, उत्तम प्रसवविज्ञान ॥
भावार्थ
भा०- ( यथा वातः ) जिस प्रकार वायु (एजति) वेग से चलता है, ( यथा वनं ) और जैसे 'वन' स्वयं वायु के झोकों से कांपता है वा जिस प्रकार ( समुद्रः एजति ) समुद्र कांपता है । (एव) उसी प्रकार हे ( दशमास्य ) दश मास में परिपक्क होने वाले गर्भ ! तू ( जरायुणा सह )जेर के साथ (अव इहि ) नीचे आजा । गर्भ में अपान का बल, जल तथा बालक होते हैं उनके तीन उपमान हैं समुद्र, वन और वात ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सप्तवध्रिरात्रेय ऋषिः।। अश्विनौ देवते । ७, ९ गर्भस्राविणी उपनिषत् ॥ छन्दः— १, २, ३ उष्णिक् । ४ निचृत्-त्रिष्टुप् । ५, ६ अनुष्टुप् । ७, ८, ९ निचृद्-नुष्टुप् ।।
विषय
वातः वनं समुद्रः
पदार्थ
[१] (यथा वातः) = जैसे वायु स्वाभाविक गतिवाली होती है, (यथा वनम्) = जैसे वायु के चलने पर वन गतिवाला होता है और (यथा समुद्रः एजति) = जैसे समुद्र कम्पित हो उठता है । (एवा) = इस प्रकार, हे (दशमास्य) = गर्भ में दस मास तक शान्तभाव से रह चुके कुमार! (त्वम्) = तू (जरायुणा सह) = गर्भ वेष्टन जेर के साथ (आ इहि) = बाहिर आजा [२] वायु, वन व समुद्र जैसे स्वाभाविक गति में होते हैं, इसी प्रकार गर्भस्थ बालक स्वाभाविक गति से बाहिर आनेवाला हो ।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना के होने पर गर्भस्थ बालक में समय पर स्वाभाविक गति होकर बाहिर आने की प्रवृत्ति होती है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो दहाव्या महिन्यात जन्मतो तोच गर्भ व त्यात स्थित बालक उत्तम असते. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O baby in the womb, just as the breeze, as the forest, as the sea ripples with vitality, so may you vibrate and move in the womb and, maturing in ten months, be born along with the sheath of life.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of childbirth is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Like the wind, as the wood, (forests. Ed.) and ocean are agitated, so your ten month babe be invested membrane, descend or with (covered under. Ed.) the uterine come forth.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
That womb and the child in it is good which is born in the ten month.
Foot Notes
(एजति) कम्पते चलति वा । = Agitates, Shakes.
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